लेखक मुकेश नेमा,एडिशनल कमिश्नर एक्साइज है।
एक्सपोज़ टुडे, भोपाल।
गणेश जी से जो सबसे काम की बात सीखी है हमने ,वह है गणेश परिक्रमा ! पता है ना आपको ये कहानी ,जब ये तय होना था कि पूजा करते वक्त सबसे पहले किस देवता की पूजा की जाये ,तो सब देवताओं ने अपनी दावेदारी ठोकी ,प्रतियोगिता हुई
,आख़िर मे जो दो देवता बचे ,दोनो ही महादेव के बेटे थे कार्तिकेय और गणेश ,अब ये भी हो सकता है महादेव की निगाहों मे चढ़ने के लिये बाकी देवता जानबूझकर हार गये हो ,बहरहाल यह तय किया गया कि इन दोनो मे से जो पहले पृथ्वी की तीन परिक्रमायें करके लौट आयेगा वह प्रथम पूजा का अधिकारी होगा ,कार्तिकेय तो अपने बडे पँख वाले फुर्तीले मोर पर बैठ कर फुर्र से उड़ लिये ,हष्ट पुष्ट गणेशजी अपने नन्हें से चूहे पर बैठ कर जाते भी तो कैसे ! जाते ,नियमानुसार कार्यवाही करते तो हारना तय था सो दिमाग़ लड़ाया उन्होने ,महादेव ग़ौरी की परिक्रमा की ,चरण स्पर्श किये दोनो के और यह घोषित किया कि बाप की परिक्रमा ,पृथ्वी परिक्रमा जैसी ही होती है ,इसलिये तकनीकी रूप से मै परिक्रमा पूरी कर चुका,लिहाजा मै जीता हूँ
,भोलेबाबा अपने चतुर पुत्र की तार्किकता से प्रसन्न हुये ,मान गये और गणेशजी विजेता तो घोषित हुये ही ,बुद्धि के इस सामयिक उपयोग के कारण बुद्धि के देवता की उपाधि से भी विभूषित किये गये ! थके हारे कार्तिकेय जब परिक्रमा कर के लौटे तब तक खेल हो चुका था ,लड्डू खाते मिले उन्हें गणेशजी ! पर कार्तिकेय करते भी तो क्या करते ,महादेव राजी थे गणेश जी से ,सो आज भी जब भी पूजा होती है ,पहला तिलक गणेशजी का ही होता है !
रही बात कार्तिकेय की तो उन्हे कैलास से बहुत दूर साऊथ मे पोस्टिंग मिली और वे अब तो वे वहीं बस गये हैं !
सो मुद्दे की बात वो है ,जिससे मैनें अपनी बात शुरू की थी ,
हमने गणेश जी से यही चतुराई सीखी है ,सरकारी काम काज मे तो यही रीत है ,काम करने टक्करें खाते रहते है ,लम्बे लम्बे कानूनी चक्कर खाते रहते है ,नियमानुसार काम करने मे थक हार कर ,पसीना पसीना होते रहते है ,लोगों के उलाहने सुनते सुनते बुढापे मे जब लड्डुओं के थाल तक पहुँचते है तो थाल सफ़ाचट मिलता है उसे ,वह पाता है कि बडे साहब की छोटी सी परिक्रमा करने वाले पर्याप्त समय पहले भोग लगा चुके ,और अब थाल धोकर रखना ही शेष है !
गणेश जी ने ही सिखाया हमे कि हमसे बड़े ऐसे लोग ,जिनके पास लड्डुओं के भंडार घर की चाबी है उनसे व्यवहार बनाये रखने में ही समझदारी है ! जो गणेश जी की इस सरल सीख की उपेक्षा करते है वो भूखे मरते हैं और किसी बियाबान ,सूखे इलाक़े का निर्वासन झेलते हैं !
गणेश के भक्त है ,इसलिये जानते है हम कि प्रथम पूजा हमेशा ही बडे साहब की परिक्रमाये करने वाले की ही होना है ,हर चतुर सरकारी छोटा साहब अपने बडे साहब की परिक्रमा करता है ,और रेस जीतता है ,बेहतर पोस्टिग पाने का शार्टकट है ये ,जिसे यथासमय यह ज्ञान प्राप्त हो जाता है वह दूसरो को पछाड़ कर हमेशा बढ़िया पोस्टिंग लेता है ! वक्त से पहले प्रमोशन पाता है ,रिटायरमेंट के बाद डेपुटेशन पाने का पात्र होता है और जीवन भर आकंठ तृप्त और आनंदित बना रहता है !
प्रथम पूज्य बने रहने का बडा आसान सा नुस्ख़ा है ये ,अपने महादेव को ,अपने साहब को राजी रखिये ,मौक़े बेमौके उनकी परिक्रमा करते रहिये ! यथासंभव उसे प्रणाम और चरणस्पर्श करने के अवसर तलाशिये !
नियमानुसार लम्बी परिक्रमाये करने का यह बेहतर विकल्प है ,चूँकि हमे लड्डू पसंद है और हम थकना नही चाहते ,हम जीतने के आकाक्षीं हैं ,इसलिये हम हमेशा से यही करते आये है और भविष्य मे भी हमेशा यही करते रहेंगे !
सरकारी बंदा परिक्रमा करता है लड्डू पाने के लिये ! खुद करता है और खुद की करने वालो से राजी बना रहता है ! लड्डू बाँटते वक्त उन्हे ही प्राथमिकता देता है जो उसकी परिक्रमा कर रहा हो ! लड्डू बाँटने वाले का हाथ बहुत लंबा नही होता ऐसे मे जो पास होता है ! जो बार बार पास चला आता है वही पाता है !
गणेश जी मुझ सहित ,हर चतुर सरकारी बाबू आपका आभारी है ,आप ये काम का ,सरल सा सूत्र ना बताते तो ज़िंदगी कितनी कठिन होती हमारी !
गणेश जी आपकी जय हो !