एक्सपोज़ टुडे,प्रयागराज।
महंत नरेंद्र की गिरी की आत्महत्या के बाद चर्चा में आए प्रयागराज स्थित बाघम्बरी मठ के कई ऐसे राज हैं जो अब परत दर परत खुल रहे है।
इतिहास के पन्ने खंगालने पर पता लगता है। मठ की स्थापना राजा अकबर के समय में बाबा बालकेसर गिरि महाराज के द्वारा की गयी थी।
अकबर द्वारा बाघम्बरी मठ के साथ प्रयागराज जिले में अन्य स्थानों पर भी जमीन दान दी गयी थी। कुछ समय पूर्व तक अखाड़े में जमीन से संबंधित ताम्रपत्र मौजूद थे।
यूं शुरू हुई मठ परंपरा
बाघम्बरी मठ के पहले महंत बाबा बाल केसर गिरि महाराज थे। उसके बाद से बाघम्बरी मठ की परम्परा चली।
बाघम्बरी मठ दशनाम संन्यासी परंपरा के गिरि नामा संन्यासियों की गद्दी है। बाबा बाल केसर गिरि महाराज के बाद अनेक संत इस गद्दी पर विराजमान हुए।
वर्ष 1978 में महंत विचारानंद गिरि महाराज इस गद्दी के महंत थे। यात्रा के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उन्होंने शरीर त्याग दिया।
उनसे पूर्व महंत पुरूषोत्तमानंद इस गद्दी पर थे। महंत विचारानंद की मृत्यु के बाद श्रीमहंत बलदेव गिरि इस बाघंबरी गद्दी के उत्तराधिकारी हुए।
इस परम्परा में वर्ष 2004 में अखाड़े के संतों ने महंत बलदेव गिरि पर गद्दी छोड़ने का दवाब बनाया।
बलदेव गिरि फक्कड़ संत थे सो मठ छोड़ कर चल दिए।
इसके बाद आए महंत भगवान गिरि। दो साल के भीतर ही भगवान गिरी को गले में कैंसर का रोग हो गया। उनका भी निधन 2006 में हो गया। कवर
महंत भगवान गिरि की मृत्यु के बाद श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि ने अपना दावा पेश किया और अखाड़े पर दवाब बनाकर 2006 में नरेन्द्र गिरि महंत बन गए।
ऐसे शुरू हुआ विवाद
विवाद तब भी हुआ। क्योंकि उस समय श्री महंत नरेंद्र पुरी थे गिरी तो बाद में लगाया। गद्दी पर महंती के दावे के समय नरेन्द्र गिरि के गुरु हरगोविंद पुरी के गुरु भाई मुलतानी मढ़ी के बालकिशन पुरी ने नरेन्द्र पुरी को गद्दी का महंत बनाए जाने का विरोध किया। उनका कहना था कि बाघम्बरी गद्दी गिरि नामा संन्यासियों की है।
ऐसे में पुरी नामा संन्यासी का महंत बनना उचित नहीं है। इस पर नरेन्द्र गिरि ने उनके साथ झगड़ा किया और अपने लोगों के साथ मिलकर अभद्रता की। अपमान होने से क्षुब्ध बालकिशन पुरी अपना बोरिया बिस्तर झोली झंडा उठाकर तत्काल चलते बने और राजस्थान के खिरम में धूनी रमाई।
कहा तो ये भी जाता है कि हरगोविंद पुरी के शिष्य नरेन्द्र पुरी से नरेन्द्र गिरि बन कर बाघम्बरी मठ का महंत बन गए। इसके बाद से ही बाघम्बरी मठ की हजारों वर्ष पुरानी जमीनों बेचने और अवैध पट्टे पर देने के साथ साथ व्यवसाय की भांति धन की आवाजाही का सिलसिला शुरू हो गया। कई बार अयोग्य लोगों को महामंडलेश्वर बनाने को लेकर भी महंत नरेंद्र गिरी विवादों में रहे।
दाती महाराज और सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर बनाए जाने पर संत समाज ही उनके खिलाफ खड़ा हो गया। फिर नरेंद्र गिरी के शिष्य आशीष गिरी के रहस्यमय ढंग से कथित तौर पर आत्महत्या करने को लेकर भी विवाद छिड़ा था। अब खुद नरेंद्र गिरी की कथित आत्महत्या सवालों के कठघरे में खड़ी है।