खंडवा। मध्यप्रदेश देश का ऐसा राज्य बनने का तमगा हांसिल कर सकता है, जो स्कूली पाठ्यक्रम में स्थानीय बोली को शामिल करता हो। आदिवासी भाषा व बोली कोरकू, गोंडी और भीली को कक्षा पहली से 12वीं तक के पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए प्राथमिक रूप से काम शुरू हो चुका है। प्रदेशभर के विषय विशेषज्ञों का एक कार्य समूह इस पर मंथन में जुट गया है। पाठ्य सामग्री तैयार किए जाने के लिए पैडागॉजी, बाल मनोविज्ञान, जनजातीय भाषा के खंडवा की कैरीकुलम व मटेरियल ब्रांच प्रभारी रचना वैद्य सहित 25 से ज्यादा विषय विशेषज्ञों की टीम की बुधवार को राजधानी में समूह चर्चा हुई, जिसमें फ्रेमवर्क तैयार हुआ।
गौरतलब है कि देश में कहीं भी पाठ्यक्रम में स्थानीय बोली शामिल नहीं है, जबकि शिक्षाविद् इसकी पैरोकारी करते हैं।
खंडवा से हुई थी इस पहल की शुरूआत
बीते साल जून-जुलाई में तत्कालीन कलेक्टर विशेष गढ़पाले द्वारा जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) के विषय विशेषज्ञों से स्थानीय बोली निमाड़ी व कोरकू पर काम कराते हुए बुकलेट का निर्माण कराया। उद्देश्य स्कूली बच्चों को मातृ भाषा से मानक भाषा की ओर ले जाकर उनके सीखने की ललक को बढ़ाना था। हिंदी, अंग्रेजी के साथ ही चित्र उकेरते हुए निमाड़ी व कोरकू में बुकलेट तैयार करने में डाइट खंडवा के प्राचार्य संजीव भालेराव, प्रभारी रचना वैद्य, हिंदी भाषा प्रभारी अशोक नेगी, मूल्यांकन प्रभारी निधि गंगेले, राजीव उपरित व अन्य ने सहयोग किया।
राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल संचालक आईरीन सिंथिया जेपी का कहना है कि आदिवासी कल्याण विभाग एवं राज्य शिक्षा केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में बोली/भाषा- कोरकू, गोंडी, भीली एवं संस्कृति को कक्षा 1 से 12 के पाठ्यक्रम में समावेश किए जाने के लिए प्राथमिक रूप से कार्य करने के लिए विशेषज्ञों का दल बनाया गया है।