November 22, 2024

कई नए वर्षों के उल्लास वाला देश है भारत।

(लेखक प्रवीण कक्कड़ पूर्व पुलिस अधिकारी हैं और पूर्व मुख्यमंत्री के पूर्व विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।)

एक्सपोज़ टुडे।
ठिठुरती ठंड में नया साल दस्तक दे चुका है। जगह-जगह नए साल के कार्यक्रम हो रहे हैं। बधाइयों का तांता लगा है। कोरोना की तीसरी लहर की चेतावनी अभी सुनाई दे रही हैं, लेकिन अभी तो जश्न कायम है। इस नए साल का स्वागत जो हम कर रहे हैं असल में यह ग्रेगेरियन पंचांग से शुरू हुआ नववर्ष है। इस पंचांग को आए अब 2022 वर्ष हो गए हैं। वर्ष क्या है, अपनी-अपनी सभ्यता की उम्र नापने की एक इकाई है। भारत तो विविध संस्कृति और सभ्यताओं से बना देश है। कुल मिलाकर कई नए वर्षों के जश्न और उल्लास वाला देश है भारत।
भारतीय दृष्टिकोण से देखें तो शक संवत हमारा मुख्य संवत होता है। इसी के आधार पर हम काल की गणना करते हैं। इसके अलावा विक्रम संवत भी भारत में खासा प्रचलित है।
अगर ध्यान से देखें तो ग्रेगेरियन पंचांग और भारतीय पंचांग में बुनियादी अंतर यह है कि ग्रेगोरियन पंचांग में दिन, महीने और साल इन सभी की गणना सूर्य की स्थिति के आधार पर होती है। इस तरह से यह सौर पंचांग है। जबकि भारतीय पंचांग में वर्ष की गणना सूर्य के आधार पर और दिन और महीनों की गणना चंद्रमा की कलाओं के आधार पर होती है। इस तरह यह सौर और चंद्रमा का मिला हुआ पंचांग है।
किसी भी सभ्यता में नववर्ष की शुरुआत वहां की स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर होती है। इसीलिए यूरोप के देशों में जनवरी का महीना नए साल का इस्तकबाल करता है तो भारतीय पंचांग में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नया साल होता है। खेत में रबी की फसल तैयार हो जाती है और हर तरफ तरफ खुशनुमा माहौल होता है, इसलिए भारतीय विद्वानों ने चैत्र से अपना नया साल शुरू किया।
भारत में अलग-अलग संस्कृतियों के लिहाज से भी नव वर्ष आते हैं। पंजाब में अप्रैल को बैसाखी के दिन नव वर्ष होता है। बंगाली नव वर्ष मार्च के महीने में आता है। तमिल में जनवरी के महीने में पोंगल मनाया जाता है। यह मकर संक्रांति के साथ ही पड़ता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा और सिंधी समाज चेटी चांद को अपना नववर्ष मनाते हैं।
यानी भारत नए साल को मनाने के मामले में भी किसी एक महीने या 1 दिन से बंधा हुआ नहीं है। यही हमारी सांस्कृतिक विविधता और प्राचीन इतिहास की परंपरा है। भारत अनेकता में एकता का उपमहाद्वीप है। जहां सबको अपने अपने हिसाब से उत्सव मनाने की आजादी है।
लेकिन यह सब वर्णन करने का मतलब यह नहीं है कि 1 जनवरी 2022 को हम लोगों ने जो नववर्ष मनाया उसका महत्व कहीं से कम हो जाता है। व्यावहारिक स्थिति यह है कि अब हम लोग सरकारी और निजी हर तरह के कार्यक्रम में ग्रेगेरियन पंचांग को मान रहे हैं। ज्यादातर टाइम टेबल अंग्रेजी तारीख और महीनों के हिसाब से ही बनते हैं और उन्हीं से भारत की समाज और शासन व्यवस्था चल रही है।
भारतीय कैलेंडर का इस्तेमाल हमारे तीज त्यौहार और मांगलिक कार्यक्रमों के आयोजन तक सीमित रह गया है। यह बात अलग है कि हमारे सांस्कृतिक गीत, कहावतें और रस्म आज भी भारतीय कैलेंडर के हिसाब से ही चलते हैं।
तो इस तरह हम लोग पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण सबके कैलेंडर को निगाह में रखते हुए आगे की ओर बढ़ते हैं और भारत इस तरह से अतीत को संजोए हुए और भविष्य को ग्रहण करते हुए नई दिशा में बढ़ता चला जाता है।
नए वर्ष के मौके पर कैलेंडर के बहाने भारत की संस्कृति की विविधता की चर्चा करने का मौका मिल गया। बहरहाल आप सब नए साल का जश्न मनाए। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वर्ष 2022 पर वर्ष 2021 की काली छाया ना पड़े। वर्ष 2021 हम सब लोगों के जीवन का सबसे कठिन वर्ष रहा। जिसमें लाखों लोगों को कोरोना महामारी के कारण अपनी जान गवानी पड़ी।
हम मानें या ना मानें लेकिन एक बार फिर से कोरोनावायरस दस्तक दे रहा है। इसलिए हम सब सावधान हो जाएं, सजग रहें और ऐसा कोई काम ना करें जिससे बीमारी को फैलने में बढ़ावा मिले।

Written by XT Correspondent