November 29, 2024

आजादी के 72 बरस बाद भी पाषाण युग में जीने को मजबूर

छतरपुर। भले ही आजादी के 72 बरस बीत चुके हो लेकिन मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के कुछ गांव ऐसे हैं जो पाषण युग में ही जी रहे हैं। ये गांव तीन तरफ पहाड़ी और एक तरफ नदी से घिरे हुए हैं। इन गांवों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। इन गांवों में बीमारियाँ महामारी की तरह फ़ैल रही है। इस गांव की आवाजाही के लिए इकलौता पुल पांच बरस से पूरा होने का इंतजार कर रहा है। गांव में कई महीनों से बिजली नहीं आई है।

हम बात कर रहे हैं छतरपुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर और तहसील मुख्यालय से 15 किमी दूर स्थित खुवां और नागौरी गांव की। यहां रहने वाले लोग तकलीफदेह जिंदगी जीने को मजबूर हैं। गांव में आने जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। पांच साल पहले पुल निर्माण का कार्य जरूर शुरू हुआ लेकिन वह भी अब तक अधूरा है। पुल न होने के कारण ग्रामीणों को पहाड़ और नदी के बीच से उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरकर गांव तक आना-जाना पड़ता है। हालात यह है कि ग्रामीणों को राशन लेने के लिए भी नदी पार 15 किलोमीटर दूर दूसरे गांव जाना पड़ता है। वह भी कभी नहीं मिलता है तो आना-जाना बेकार हो जाता है।

यही नहीं गांव में महामारी जैसे हालात हैं। गंदगी, मच्छर, दूषित पानी, भारी गर्मी और लाईट न होने के कारण हर घर में कोई न कोई बीमार रहता है। रास्ता न होने के कारण कोई इलाज के लिए नहीं जा पाता। दूसरी तरफ डॉक्टर भी यहां आने से कतराते हैं। लोगों की मानें तो पिछले वर्ष बीमारी के चलते कई लोगों की मौत हो चुकी है और इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही हैं।
गांव में कई महीनों से लाइट ही नहीं है। बच्चों को छोटी बैटरी या सेल टार्च की रोशनी में पढ़ना पड़ता है। शाम के बाद तो ज़िंदगी मानो खत्म सी हो जाती है। बारिश में कीड़े- मकोड़े, सांप, बिच्छु का डर बना रहता है।

पिछले 70 सालों से यहां कोई 8 वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सका। इससे आगे की शिक्षा लेने के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता है। पुल न होने के कारण रोजाना नदी पार कर जाना असंभव होता है। इसलिए मजबूरन पढ़ाई को विराम देना पड़ता है।

गांव में मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण बच्चों की शादियों में भी दिक्कत आती है। गांव की ऐसी हालत के कारण कोई इस गांव में अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता। गांव की बेटियों की शादी भी दूसरे गांव जाकर करनी पड़ती है। इस गांव में आज तक कोई बारात नहीं आई है। गर्भवती महिला को डिलीवरी के लिए भी खटिया पर लेकर जाना होता है।

Written by XT Correspondent