November 21, 2024

दिल तो बच्चा है जी!

 

लेखिका डॉ. अनन्या मिश्र, आईआईएम इंदौर में मेनेजर- कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन एवं मीडिया रिलेशन के पद पर है। 

एक्सपोज़ टुडे।
याद है बचपन में 
मात्र कुछ तकिए और एक कम्बल की मदद से हम कैसे एक छोटा सा महल बना लेते थे? बड़े तौलिए को नन्हें कन्धों पर डाल कर सुपरमैन बन जाते थे? और कैसे पलंग से ज़मीन पर कूद कर पहाड़ से छलांग लगा लेते थे?

जैसे-जैसे हम बड़े होते हैंहमारे कुछ भाव क्षीण होने लगते हैं,लेकिन साथ ही कम होने लगती है सकारात्मक सोच, असीम कल्पना और सहजता। हम कभी नौकरी की चिंता करते हैं तो कभी रिश्तों की ज़िम्मेदारी की, कभी पैसों की बचत की तो कभी हमारे और सभी के स्वास्थ्य की बड़े होने के बाद भी दिल में पहले से मौजूद थोड़ा सा बचपना हमें शालीनता के रक्षा कवच में लिपटे भय को परास्त करने में मदद कर सकता है और इस दुनिया को एक नए नज़रिए से देखने के लिए प्रेरित कर सकता है

सत्य है कि नई चीजें सीखने की हमारी क्षमता उम्र के साथ हम खोने लगते हैं वैज्ञानिक शोधों के अनुसार बच्चों को विकासवाद द्वारा बहुत अच्छे शिक्षार्थी बनने के लिए ही बनाया गया है – ताकि वे अपने आसपास की दुनिया में दिलचस्प और महत्वपूर्ण  सभी के बारे में जान सकें। समय के साथअपने वातावरण में कुछ भी नया और रोमांचक करने के लिए आकर्षित होने और अवसर तलाशने के बजाहम केवल उन चीजों पर ध्यान देना शुरू करते हैं जो हम जानते हैं कि हमारे लिए प्रासंगिक हैं इससे हमारे विचार, दृष्टि और कर्म भीसंकुचित होने लगते हैं और हम समग्र संभावनाओं को महत्त्व देते हुए नन्हीं खुशियाँ खो देते हैं

पिछले कुछ दशकों मेंउद्योग जगत के दिग्गजों ने भी इस विचार का दोहन किया है नीत्शे और आइंस्टीन जैसे दार्शनिकों ने भी कभी-कभी अपने भीतर छुपे बच्चे को प्राथमिकता देने की बात कही है वयस्कों के रूप में सफलता प्राप्त करने के लिए बच्चों की तरह सोचना भी आवश्यक है। कोरोना के साथ ही कार्यस्थलों में बदलते परिदृश्य के चलते अब कई ऑफिस अबक्यूबिकल-आधारित तंत्र को त्याग चुके हैं गूगल जैसी शीर्ष कंपनियों ने तो काफी समय पहले से ही अपने परिसर को रंगीनबना लिया था उनके कर्मचारियों को कार्यस्थल पर वीडियो गेम खेलने, अपनी रूचि का काम करने, थकान होने पर आराम करने, इत्यादि की सुविधा है यह थोड़ा बचकाना लगता हैलेकिन आज यही आवश्यक है। यह कर्मचारी को स्वयं की खोज करने का अवसर देने वाली प्रणाली और उनका शोषण करने वाली प्रणाली के बीच अंतर के बारे में है। शोषण करने वाले कार्यस्थल के अनुसार कर्मचारियों ने बस उन चीजों पर ध्यान देना चाहिए जो उनके (संगठन) के लक्ष्यों के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक हैं। वहीं एक प्रणाली जो उन्हें आगे बढ़ने का और विकास का अवसर देती है वही आज ज्यादा प्रासंगिक मानी जा रही है। हालाँकि, हाल ही के एक शोध के अनुसारसफलता के लिए आपको वास्तव में उन दोनों चीजों में संतुलन और सामंजस्य बनाने की ज़रूरत है।

हम बचपन में जब माँ या पापा के साथ किसी किराने की दुकान पर जाते थे, तो चॉकलेट की जिद करते थे माँ-पापा ना बोल देते, लेकिन हम हार नहीं मानते। हम बार-बार सवाल करते,अलग-अलग तरीके से अपनी इच्छा पूरी करवाने की कोशिश करते, वो वाली चॉकलेट न मिल सके तो छोटी वाली दो चॉकलेट मांगते और नहीं तो बस एक ही… लेकिन चुप नहीं होते डरते नहीं हमारे वयस्क जीवन में हमें अब कोई ‘नाबोलता है, तो हम उसे तुरंत स्वीकार करने लगे हैं हम स्वयं भले ही ‘ना नहीं बोल पाते क्यों? बच्चे कभी जवाब में ‘नास्वीकार नहीं करते हैं वे अपनी अज्ञानता से नहीं डरते और स्वतंत्र भाव रखते हैं किन्तु समय के साथअसफलताएं हमारे आत्मविश्वास को चकनाचूर कर देती हैंशिष्टाचार हमारे व्यवहार को निर्धारित करता हैऔर हम वयस्कों के लिए पूरी तरह से खुला और ईमानदार होना अधिक कठिन हो जाता है।

बच्चों का खुला दिमाग उन्हें नई चीजें सीखने में भी मदद करता है। हम कोई भी उत्पाद देखते हैं, या कोई भी स्थिति में होते हैं,तो पहले से ही उसके प्रति एक आंकलन, पूर्वानुमान और विचार निर्धारित कर लेते हैं हमारे पास हमेशा एक राय होती है, जो हमें बच्चों की तरह निडरता से वास्तविकता को स्वीकारने और फिर उसे अपने हिसाब से मोड़ने से रोकती है हमें उन्हीं विशेषताओं के साथ आगे बढ़ना होगा इसके लिए सबसे ज़रूरी है खेल  जैसे बच्चे खेलते हैं  निश्चल मन से ये हमें लगातार तनाव को कम करनेऊर्जा के स्तर को बढ़ानेलोगों के दृष्टिकोण को समझनेआशावाद बढ़ाने और रचनात्मकता को बढ़ावा देने में सहायक हैं इसी प्रकार कोई नई रूचि  जैसे वाद्य यंत्र सीखना, गायन, नृत्य, चित्रकला भी दिमाग का व्यायाम करती हैं और ऊर्जा विकसित करती हैं  जैसे बचपन में हम स्कूल में पढाई के साथ-साथ इन सभी रचनात्मक गतिविधियों में भी भाग लेते थे

छह दिन स्कूल जाने के बाद रविवार कितना अनिवार्य होता था! हम तरोताजा हो कर सोमवार को पुनः स्कूल जाने के लिए उत्साहित होते थे वर्तमान में हम रविवार को भी अक्सर ऑफिस के काम करते हैं, या सप्ताह भर से बचे हुए घर के काम अवकाश वाली धारणा समाप्त ही हो चुकी है और सोमवार ‘मंडे ब्लूज़’ में बदल गया है कुछ संगठन कर्मचारियों को अपने काम के समय का 15 से 20 प्रतिशत उन क्षेत्रों में व्यतीत करने की स्वतंत्रता देते हैं जिनमें उनकी रूचि हो उन्हीं से संस्थान की समग्र प्रगति सुनिश्चित होती है कहानियां पढना, नए गंतव्यों की यात्रा करना, दोस्तों से मिलना, इत्यादि मन के लिए बहुत अच्छा है। 

यहाँ आवश्यक है कि आप अपने विचारों को स्वतंत्र कर रहे हैं तो खुद पर समयधन और संसाधन जैसे कारकों का प्रतिबन्ध न लगाएं स्वयं को स्वीकार करें बच्चे सभी से प्रेम करते हैंऔर खुद से तो वे इतना करते हैं कि उन्हें अपने शरीरक्षमताओं और भावनाओं में कोई कमी नहीं दिखती  तब तक, जब तकउन्हें संदेह करना नहीं सिखाया जाता मैं योग्य नहीं हूंमैं अपर्याप्त हूंमैं मूल्यवान नहीं हूंमैं प्यार करने योग्य नहीं हूं… जैसी सोच विकसित होने के साथ ही हमारा बचपना खंडित होने लगता है ये विश्वासये मूल भयवर्तमान मानव स्थिति का हिस्सा हैंऔर वे सशक्त विकल्प बनाने की हमारी क्षमता को बाधित करते हैं।

हम अपने भीतर को छोड़कर हर जगह तृप्ति की तलाश करते हैं। हम दुनिया से अनुमोदन मांगते हैं हम भूल गए हैं कि हम पहले से ही संपूर्ण और पूर्ण हैंऔर पहले से ही आश्चर्यजनक रूप से प्रेमपूर्ण और हर्षित हैं! यह हमारी प्राकृतिक अवस्था है। हमारे पास पहले से ही वह सब कुछ है जो हमें खुश रहने के लिए चाहिए। यह सत्य हम बच्चे के रूप में जानते थे, और जानते हैं… बस ज़रूरत है एक बार पुनः इसे याद करने की,क्योंकि खुशियाँ हमारी हैं, हम में है और हम से हैं  और दिल?दिल तो बच्चा है जी!

Written by XT Correspondent