लेखिका डॉ. अनन्या मिश्र, आईआईएम इंदौरसीनियर मैनेजर – कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन एवं मीडिया रिलेशन के पद पर हैं।
एक्सपोज़ टुडे।
“साहस खड़े होने और बोलने के लिए आवश्यक है; बैठ करसुनने के लिए और भी अधिक साहस चाहिए।” – विंस्टन चर्चिल
आखिरी बार कब आपने किसी की बात वाकई में सुनने के लिए सुनी थी, प्रतिक्रिया देने के लिए नहीं? कब आपने पूरी बात सुनने के बाद जवाब दिया, और पहले से अपने मस्तिष्क में जवाब तैयार नहीं किया? हम मनुष्य बोलने में अत्यधिक विश्वास रखते हैं और हर कोई बोलना चाहता है। हर कोई बताना चाहता है कि उसमें कितना ज्ञान हैं। उसे हर विषय की जानकारी है। निस्संदेह यह एक साहसी कार्य है।
लेकिन कभी चुप रहे हैं? सत्य जानने के बाद भी? आप सही हैं और दूसरा गलत है तो भी? शायद नहीं। क्योंकि चुप रहने कोकमजोरी मान लिया जाता है। चुप रहने का अर्थ यह नहीं कि कोई व्यक्ति सुप्त अवस्था में है। हो सकता है वह अति सक्रीय हो। वह निरंतर मनन कर रहा हो। शायद वह बेहतरीन समाधान पेश करेगा। दूसरों की बात सुनने के लिए भी उतनी ही उत्कृष्ट हिम्मत की ज़रूरत होती है और उससे भी बढ़कर, स्थिति और सामने वाले को स्वीकारने और उसके विचारों को सम्मान देने की।
भगवद्गीता में श्री कृष्ण अर्जुन को सुनने की कला पर सुझाव दिए हैं – “मुझ में लीन होकर अपने मन से सुनो; मुझसे प्रेम कर के सुनो“। अगर हम किसी विषय का अध्ययन करना चाहते हैं, तो हमें उससे प्रेम करना होगा। बिना प्रेम के न तो हम उसपर ध्यान दे सकेंगे, न हमें ज्ञानार्जन में आनंद आएगा। हो सकता है हमें एकाग्रता की कमी महसूस हो। हमें समझना कठिन लगे।किन्तु शायद ये एकाग्रता की क्षीणता को प्रेम से दूर कर सकते हैं। यह आवश्यक घटक है। मेरे अनुसार अगर आप सार्वजनिक रूप से बोल नहीं सकते लेकिन ध्यान से सुन सकते हैं, तो आप साहसी हैं। इस बात से निराश न हों कि आप दूसरों जितना अच्छा नहीं बोल सकते। आप अच्छा सुन सकते हैं – और यह आपकी विशेषता है।
वैसे सत्य तो यह है कि सुनना हमारी वक्तृत्व कला को भी सुधारता है। अगर हम एक पल के लिए भी चुप रहें, तो हम कुछ नया और अच्छा सोच सकते हैं। मौन के लिए साहस की आवश्यकता होती है। विचार सुनने से आप उन्हें आत्मसात कर पाएँगे, बेहतर प्रस्ताव रख पाएंगे और इस प्रकार आपकी बोलने की कला में भी सुधार होगा। सुनें कि सामने वाला क्या बोलना चाह रहा है। वक्ता के शब्दों पर ध्यान दें और उनके अर्थ समझें। जानें, कि उन शब्दों में से आपके लिए क्या उपयोगी है।जब आप लगातार बोलते हैं तो आप वो बोल रहे होते हैं जो आप पहले से जानते थे। किन्तु जब आप सुन रहे होते हैं, तब हो सकता है कि आप कुछ नया समझ रहे हों।
प्रभावी श्रवण क्षमता विकसित करने के लिए चार चीज़ों का ध्यान रखना आवश्यक है: सामने वाले पर ध्यान दें, उनसे नज़रें मिला कर बात करें ताकि जुड़ाव महसूस हो, प्रतिक्रिया दें –भावों से, और उसके विचारों का सम्मान करें।
बेशक, एक ही समय में बोलना और सुनना कठिन है। किन्तु अभ्यास से हम सुनने की कला विकसित करते हैं। मन, विचार, देह, हृदय की आंतरिक ध्वनि सुनेंगे तो ‘नाद’ सुन सकेंगे। यह हमें हमारे उच्चतम ज्ञान से जोड़ता है।
सुभाषितानि में कहा गया है –
शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणां तथा ।
ऊहापोहोऽर्थ विज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः ॥
शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिंतन, उहापोह, अर्थविज्ञान, और तत्त्वज्ञान – ये बुद्धि के गुण हैं । सुनना, इस प्रकार ज्ञान का आधार बनता है।