लेखक डॉ आनंद शर्मा सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
रविवारीय गपशप
———————
पिछले दिनों प्रदेश में दो नये जिलों के गठन की घोषणा हुई हैं , जिन्हें मिला कर अब मध्यप्रदेश में जिलों की संख्या 54 हो जाएगी । नया ज़िला जब भी बनता है , उसके गठन में प्रारंभिक प्रशासनिक प्रक्रियाएँ बड़ी श्रम साध्य होती हैं , और ज़िले के पहले कलेक्टर पर तो पर ढेर सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं । मैं जब राजगढ़ में कलेक्टर था , तो पड़ोस में शाजापुर और उससे विलग होकर बने आगर- मालवा ज़िलों में मेरे बैचमेट ही कलेक्टर के पद पर पदस्थ थे । अच्छे मित्र होने पर भी नए ज़िले के संसाधनों को लेकर दोनों में कुछ कुछ खींचतान चलती ही रहती थी और दोनों ही मुझसे ये साझा भी करते रहते थे । मेरी अपनी नौकरी में भी मेरा पहला ज़िला राजनांदगाँव , दुर्ग से अलग होकर बना नया ज़िला ही था , सो नए ज़िलों के शैशव काल परेशानियाँ का शुरुआत से ही अहसास था ।
उज्जैन में ए.डी.एम. की पदस्थापना के बाद मेरा स्थानांतरण नीमच ज़िला पंचायत में सी.ई.ओ. के पद पर हो गया । नीमच तब नया ज़िला बना ही था और जिला पंचायत भी नई थी । नव गठित संस्थान में कई परेशानियां होती है , वैसी ही जैसे किसी नवजात के प्रारंभिक पालनपोषण में होती हैं । जिला पंचायत किराए के भवन में लगती थी । ज़िला पंचायत के कर्मचारी यहाँ-वहां के विभागों से लिए हुए थे , जिन्हें जिलापंचायत के कार्यों का जरा भी अंदाज़ा नहीं था । मुझसे पहले जो सी.इ.ओ. थे , वे अच्छे संगीतज्ञ थे , सो कलाकार होने से मनमौजी तो थे पर प्रशासन में वो कसाव नहीं था । कुल मिलाकर बड़ा चुनौती भरा काम था , सिवा दो राहतों के कि कलेक्टर श्री प्रभात पाराशर थे और ए.डी.एम. थे श्री जनक जैन जो मेरे बैचमेट और परम मित्र थे । बहरहाल ज्वाइन करने के बाद मैंने जो कर सकता था वो किया और काम काज चलने भी लगा , तभी एक मज़ेदार घटना हुई । जिला पंचायत में लेखा सेवा की सीधी भर्ती के एक नवजवान अधिकारी मेरे कार्यालय में ही परिवीक्षा अवधि के समापन पश्चात लेखाधिकारी के पद पर पदस्थ थे । एक दिन मैंने महसूस किया कि खाता बही में बहुत दिनों से एंट्री नहीं हो रही हैं , जो कि प्रतिदिन होना चाहिए थीं । मैंने लेखाधिकारी को बुलाया और पूछा कि खाताबही में पिछले एक हफ्ते से एंट्री क्यों नहीं हो रही हैं , तो उसने बड़ी मासूमियत से कहा कि अकाउंट में एंट्री करने वाला पंजाबी बाबु छुट्टी पर गया है । मुझे सुनकर कुछ गुस्सा आया , मैंने कहा इस तरह किसी के जाने से काम थोड़ी बंद हो जाता है , आप खुद लेखाधिकारी हैं , जाइये पूरे हफ्ते की एंट्री कर के लाइए । वे चले तो गए पर बड़ी देर तक जब लौटे नहीं गए , तो मैं उनकी टेबल पर गया , और देखा कि वे रजिस्टर खोल कर बैठे थे और कुछ लिख लिख कर मिटा रहे थे । मैं पहुंचा तो वे हड़बड़ा कर उठे और रजिस्टर छिपाने लगे । मैंने उनके हाथ से रजिस्टर लिया और देखा तो सब गलत-सलत लिखा हुआ था । मैंने कहा जनाब ये क्या है ? आप लेखाधिकारी हैं , और आपको कुछ नहीं आता ? वो अचानक छोटे बच्चों की तरह रोने लगे और बोले सच में साहब मुझे कुछ नहीं आता , मुझे किसी ने कुछ सिखाया ही नहीं और पंजाबी बाबू भी कुछ नहीं बताता । मुझे उस पर तरस आया और मैंने ट्रेजरी आफिसर को फोन लगा कर इस नव प्रशिक्षु की विस्तार से ट्रेनिंग की व्यवस्था कराई ।
पंचायत स्टाफ़ में एक लिपिक थे , जिनके बारे में मैंने महसूस किया वे हमेशा काम में लापरवाही बरतते थे । जब मैंने बुलाकर उन्हें डांट लगाई और कहा कि अपना काम करने का ढंग सुधारिये वरना आपको निलंबित कर दूंगा , तो वो तुरंत मेरे सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और कहने लगे “सर बड़ी कृपा होगी आप निलंबित ही कर दो “। उनके इस व्यवहार से मैं अचकचा गया , और मैंने पूछा कि ऐसा क्यों कह रहे हो ? निलंबित होने में क्या फायदा है तुम्हे ? वो बोला “सर हम सिंचाई विभाग में कर्मचारी थे , पूरा जीवन उज्जैन में गुजरा, अभी भी बाल बच्चे वहीं हैं । अब विभाग ने कार्यालय बंद कर हमें अतिशेष घोषित कर यहाँ भेज दिया गया है , बताइये भला बुढ़ापे में नया काम कहाँ से सीखें ? घर में बिटिया की शादी करनी है , उसके लिए वर देखना है , पर इतना दूर बैठे हैं कि क्या करें ? इसलिए साहब आप निलंबित ही कर दो घर की जिम्मेदारी ही निभा लें । मुझे उसकी स्थिति पर वाकई तरस आ गया और फिर मैंने उसे समझ बुझा कर लंबी छुट्टी पर घर भेज दिया ।