उमरिया। केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्रों में 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी देने के विरोध में उमरिया जिले के कोयला मजदूर संगठन पांच दिनों की हड़ताल पर चले गए हैं। इस कारण जिले की आठ खदानों में ताला लगा हुआ है। मजदूर संगठनों की हड़ताल से तीन हजार टन कोयले का प्रतिदिन उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
दरअसल कोयला मजदूर संगठन प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाकर 100 फीसदी करने का विरोध कर रहे हैं। संयुक्त मोर्चा संगठन के बैनर तले आठ कोयला खदानों के हजारों मजदूर सोमवार से पांच दिन का आंदोलन कर रहे हैं। मंगलवार को आठ खदानों में एक भी मजदूर नहीं पहुंचा।
मजदूरों के विरोध प्रदर्शन के कारण कोल इंडिया को रोजाना होने वाले 3000 टन कोयले के उत्पादन का घाटा सहना पड़ रहा है। कोयला श्रमिकों का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा विदेशी निवेश को बढ़ाकर 100 फीसदी करने से कोयला सहित देश के तमाम सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग निजी हाथों में चले जायेंगे। ऐसे में इन क्षेत्रों में काम करने वाले लाखों मजदूर सड़क पर आ जाएँगे। आंदोलन कर रहे मजदूरों ने चेतेवानी देते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अध्यादेश वापस नही लेती तो ये सिर्फ सांकेतिक हड़ताल है। इसके बाद वे उग्र आंदोलन करेंगे।
कोयला मजदूरों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से रोजगार के चले जाने का डर सता रहा है साथ ही देश मे विदेशी कंपनियों के दखल से राष्ट्र की आय पर भी प्रभाव पड़ने की आशंका है। उमरिया जिले में कोल इंडिया के एसईसीएल की आठ खदानें हैं जिसमे चपहा, पिपरिया, विंध्या, पिनौरा, क़ुदरी, पाली प्रोजेक्ट, नौरोजाबाद सहित कंचन खुली कोयला खदान परियोजना शामिल है जिले से रोजाना तीन हजार टन कोयले का उत्पादन होता है। मजदूरों की हड़ताल से उत्पादन प्रभावित हो रहा है। ऐसे में मजदूरों की हड़ताल कोल इंडिया के उत्पादन के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकती है।
कोयला सहित अन्य सार्वजानिक उद्योगों में एफडीआई के 100 फीसदी निवेश से सबसे बड़ा नुकसान स्थानीय रोजगार को पंहुचेगा। यही वजह भी है कि सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत श्रमिक एवं संगठन पूरी ताकत से इसके विरोध में उतर आये हैं। बड़ा सवाल यह है कि एफडीआई के फैसले के बाद अपने ही बीएमएस सहित अन्य संगठनों के निशाने पर आई केंद्र की मोदी सरकार क्या कोई फैसला ले पाएगी?