हसदेव अरण्य। एक बड़ी नदी के प्रवाह क्षेत्र में हजारों जानवरों और प्रवासी पक्षियों वाले हरे-भरे समृद्ध जंगल को सरकार उजाड़ने पर आमादा है। बात छत्तीसगढ़ की है, जहाँ हसदेव नदी के खूबसूरत किनारों पर दूर तक फैले जंगल में अब बीस बड़ी कोयला खदानें शुरू करने की तैयारी हो रही है।
इलाके के लोग इसका लगातार विरोध कर रहे हैं। उन्होंने सीएम भूपेश बघेल को भी पत्र लिखकर इसे रोकने की मांग की है। वे धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र समृद्ध जंगल है जो महानदी की सहायक हसदेव नदी का बड़ा केचमेंट क्षेत्र है। इसी प्रवाह क्षेत्र में आगे बने हसदेव बांगो बाँध परियोजना भी आती है। एक लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस जंगल में हाथियों के झुण्ड और प्रवासी पक्षियों का बड़ा बसेरा है। जैव विविधता के लिहाज से भी यह जंगल महत्त्वपूर्ण है लेकिन सरकार इन सब को तहस-नहस कर धरती से कोयला निकालने पर आमादा है।
बीते दिनों पास में ही एक कोल ब्लॉक परसा को खनन की अनुमति मिली है। वैसे तो यह कागजों पर राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित की गई है लेकिन 2100 एकड़ में फैली इस खदान के एमओडी यानी (आपरेशन एंड डेवलपमेंट ऑफ़ माइंस) खदान संचालन और विकास के अधिकार उद्योगपति अडानी की कंपनी ओपनकास्ट माइनिंग के हाथों में है। कोयला खदानों का विरोध कर रहे आदिवासी नेताओं का आरोप है कि अडानी जैसे उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए ही उनका जंगल बर्बाद किया जा रहा है।
यदि विरोध के इस स्वर को सरकार अनसुना कर कोयला खदानों को स्वीकृति देती है तो इसकी वजह से छत्तीसगढ़ के पर्यावरण और उसके जल स्रोतों पर बड़े तथा ही गंभीर दुष्प्रभाव होंगे। इनको आगे किसी भी तरह ठीक नहीं किया जा सकेगा। जंगल के विनाश को रोकने के लिए 25 गांव के आदिवासी बीते दस सालों से संघर्ष कर रहे हैं। नयी खदानों को अनुमति मिलने की आशंका के चलते उन्होंने आन्दोलन तेज़ कर दिया है।
करीब छह साल पहले हसदेव और चरनोई नदी घाटी में कोयले की प्रचुर संपदा पर सरकार की नज़र पड़ी। अब मुश्किल यह थी कि वर्ष 2009 में केंद्र सरकार के वन और पर्यावरण मंत्रालय ने यहाँ की जैव विविधता और नदियों के प्रवाह क्षेत्र को यथावत बनाए रखने की नियत से इस क्षेत्र को ‘नो गो’ यानी लगभग प्रतिबंधित कर दिया था। हालाँकि दो साल बाद 2011 में ही तीन कोल ब्लॉक की अनुमति इस शर्त पर दे दी गई कि अब इसके बाद किसी भी स्थिति में यहाँ कोई नया कोल ब्लॉक नहीं शुरू किया जाएगा। 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इनमें से भी दो की अनुमति को निरस्त कर दिया था। लेकिन 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद ही ‘नो गो’ को दरकिनार कर इस इलाके में ही करीब बीस कोल ब्लॉक को चिन्हित किया गया है।
हसदेव अरण्य में नए बीस कोल ब्लॉक को अनुमति मिली तो करीब 50 हेक्टेयर वन क्षेत्र सीधे-सीधे खत्म हो जाएगा। इन खनन परियोजनाओं से उनका सीधे तौर पर विस्थापन होगा लेकिन उनका संघर्ष खुद के लिए कम छत्तीसगढ़ को बचाने का संघर्ष ज़्यादा लगता है। वे कहते हैं कि हम तो कहीं न कहीं बस ही जाएँगे लेकिन हजारों साल पुरानी प्रकृति और इन जंगलों को कोई कहीं नहीं बसा पाएगा। ये सब नेस्तोनाबूद हो जाएँगे।