लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
रविवारीय गपशप
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अभी गणेशोत्सव की धूम है , गणपति विघ्नों का हरण करते हैं , शायद इसीलिए हम काम आरम्भ करने को श्री गणेश करना कहते हैं ताकि कार्य बिना विघ्न के पूरे हों । इन दिनों स्टार्टअप का ज़ोर है , नए नए आइडिया , कुछ सफल और अधिकांश असफल , बावजूद इसके नए नए प्रयोगों का दौर थमा नहीं है और सरकारें भी इस नई सोच को प्रोत्साहित करने में पीछे नहीं हैं , पर हमेशा ऐसा नहीं था । मुझे अपने कैशोर्य काल के कुछ प्रयोग याद आ रहे हैं जो कटनी में अपने मित्रों के साथ आज़माए थे । कटनी से हम मित्र गण जबलपुर जी.एस. कालेज में पढ़ने ज़ाया करते थे , सो यात्रा के मध्य मिलने वाले समय में बहुतेरे ख़याली पुलावों को पकाने का समय मिल जाता । इस प्रक्रिया का चीफ़ शेफ़ मधुर मिश्र था , जो मूलतः रहने वाला तो माखन नगर ( बाबई ) का था पर उसके पिता कटनी शहर के कोतवाल थे सो वह भी हमारी मण्डली में शामिल हो गया था । सबसे पहले ये तय किया गया कि वेंकट नगर से ज़मीन में पटकने पर आवाज़ करने वाले पटाखे लाकर बेचे जाएँ , चूँकि ये स्थान मेरे पैतृक ( मूल )निवास पेंड्रा रोड से लगा हुआ था , इसलिए मैं इस दल में प्रमुखता से शामिल कर लिया गया । पटाखे ले तो आए लेकिन उस बरस दीपावली के पहले बारिश हो गयी और बेतरतीब तरीक़े से रखे पटाखे सील गए , लिहाज़ा पहला व्यापार घाटे का रहा और अधिकांश पटाखे उस दिवाली हम सबने परिवार सहित फोड़े । हमारे बीच उत्साह और आइडिया दोनों की कमी नहीं थी , मधुर मिश्र ने सुझाया कि दिल्ली से ऊन लाकर यहाँ बेचने पर बढ़िया फ़ायदा होगा । मेरी दिलचस्पी ऊन में कम दिल्ली घूमने में ज़्यादा थी , बहरहाल दिल्ली से ढेर सारे ऊन के गोले लाकर हम शीत ऋतु का इन्तिज़ार करने लगे पर परीक्षा की घड़ियाँ बदस्तूर जारी थीं । उस वर्ष ठण्ड पड़ी ही नहीं और ऊन के गोले ख़रीदी की क़ीमतों पर सभी दोस्तों के घरों की माँ बहनों को ही बेचने पड़े , जिन्होंने पूरे परिवार के लिए स्वेटर बुने । इस तरह और भी कई असफल प्रयोग हुए , कभी हम सोचते कि होशंगाबाद से टमाटर और ककड़ियाँ ख़रीद कर कटनी में बेचा करेंगे और कभी गुलशन कुमार की तरह टेप रिकार्डर में लगने वाली केसेट का व्यापार करने की योजना बनाते । आख़िरी प्रयोग जो मुझे याद है , वो था पोल्ट्री फ़ार्म खोलने का । बताया गया कि करना कुछ नहीं है , बाबई ( अब माखन नगर ) के पास सस्ती ज़मीन किराए से लेंगे और बैंक से क़र्ज़
लेकर मुर्गी पालेंगे । बिना मेहनत अण्डे मिलते हैं , भोपाल में बेचेंगे , बड़ी डिमाण्ड है । बाबई में मधुर के घर पार्टी कर , पूरी योजना बना कर , जब हम मित्र वापस कटनी पहुँचे तो बड़े प्रसन्न थे । घर पर पहुँच अपनी योजना का विवरण मैंने घर पर सुनाया तो अम्मा बिफर गयीं , बोलीं बाम्हन का बेटा होकर अण्डा-मुर्गी बेचेगा , तेरी मति भृष्ट हो गयी है क्या ? पढ़ लिख और कोई नौकरी कर । बस हमारे लिए यही स्टार्ट अप का अंत था ।
नए विचारों ने हमारा तो कोई भला नहीं किया पर उसका प्रयोग राजगढ़ में हुआ जहाँ मैं कलेक्टर होकर पहुँचा । कलेक्टर बंगले के समीपस्थ सईद मियाँ की बाल काटने की दुकान थी । जरूरत पड़ने पर सईद ही केश कर्तन के लिए बुलाए जाते । ख़ुशमिज़ाज सईद बाल काटने के साथ ढेर सारी खबरें भी सुनाया करता था । सईद ने दूकान के विस्तार के लिए बैंक आफ बड़ोदा से मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के तहत ऋण लिया था । एक दिन जब वो मेरी कटिंग बना रहा था तो मैंने उससे पूछा कि लोन लेने के बाद तुम्हारे धंधे में कुछ फर्क आया या नहीं ? सईद ने कहा राजगढ़ छोटी जगह है , सो थोडा बहुत अच्छा हुआ है पर चलता है । मैंने उससे कहा कि ऐसा करो जिस दिन तुम्हारे यहाँ ग्राहकी कम रहती है उस दिन तुम कुछ स्पेशल डिस्काउंट कर दो , कभी महिलाओं के लिए कभी बच्चों के लिए कभी बुजुर्गों के लिए । उसने कहा ठीक है साहब मैं कोशिश करूँगा । अगली बार जब सईद मिंया कटिंग बनाने आये तो बड़े खुश थे , मैंने पूछा क्या बात है , तो बोले “आपने वो फार्मूला दिया था न डिस्काउंट वाला वो हिट हो गया है जहाँ मैं दो-ढाई बजे खाना खाने जाता था अब सुस्ती वाले दिनों में भी बमुश्किल साढ़े तीन बजे जा पाता हूँ । मुझे संतोष हुआ कि भले ही अपने जीवन में आयडिए कामयाब ना हुए हों पर किसी और के लिए तो नए प्रयोग से जीवन का सफ़र ख़ुशनुमा हो पाया ।