लेखिका डॉ. अनन्या मिश्र, आईआईएम इंदौर में सीनियर मैनेजर – कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन एवं मीडिया रिलेशन के पद पर हैं।
एक्सपोज़ टुडे।
ऑफिस में किसी के घर मृत्यु हो गई। क्या आपने वैसे ही सद्भावना व्यक्त की जैसे आप स्वयं सुनने के लिए तैयार होते या मात्र औपचारिकता निभाई?आपका सहयोगी भीषण बीमार हुआ। क्या आपने उससे उस दौरान बात की, उसका संबल बढाया, या बात ही नहीं की?आपके अधीनस्थ ने आपको गहन समस्या बताई जिससे वह लम्बे समय से जूझ रहा है। क्या आपने सुन कर, समझ कर, समाधान दिया या मैं तो मेरा फायदा देखूं सोच कर उसे और भी बुरा और अनावश्यक महसूस करा कर, अपने हाल पर छोड़ दिया?
कई संस्थानों में पिछले काफी समय से कार्यस्थल पर अनासक्ति, या भावनात्मक जुड़ाव और अपने सहयोगियों के साथ संबंध की कमी, कार्यस्थल की समग्र संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है। कई युवा अब इसलिए नौकरी छोड़ रहे हैं क्योंकि कार्यस्थल का माहौल नकारात्मक है। इसके साथ ही, वे अपने रिज्यूमे में भी “गैप” लिखने से परहेज़ नहीं करते – क्योंकि ‘इमोशनल और मेंटल वेल-बीइंग’ का महत्व हम सभी समझने लगे हैं। हाल ही में एक शोध से पता चला है कि जो कर्मचारी अपने सहयोगियों और काम के माहौल से अलगाव की भावना महसूस करते हैं, उनमें नौकरी से संतुष्टि और प्रेरणा कम होने के साथ-साथ तनाव और बर्नआउट के उच्च स्तर का अनुभव होने की संभावना अधिक होती है। इससे नकारात्मक परिणामों की एक श्रृंखला उत्पन्न हो सकती है, जिसमें घटी हुई उत्पादकता, काम का बोझ और समग्र गुणवत्ता में गिरावट शामिल है।
एक अध्ययन में पाया गया कि 70 प्रतिशत कर्मचारी जिन्होंने अपने सहकर्मियों से उच्च स्तर की सामाजिक अलगाव की सूचना दी, उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मजबूत सामाजिक संबंध रखने वालों की तुलना में कम संतुष्टि और उच्च स्तर के तनाव की सूचना दी। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि जिन कर्मचारियों ने अपने काम से अलगाव महसूस किया, उनके कम व्यस्त होने और अपने काम के प्रति प्रतिबद्ध होने की संभावना 25 प्रतिशत अधिक थी, जिससे समग्र संगठनात्मक प्रदर्शन में कमी आई।
भगवद गीता में कहा गया है: “शांति से बड़ा कोई लाभ नहीं है, और चिंता से बड़ी कोई हानि नहीं है। वह जो किसी चीज से आसक्त नहीं है, जो किसी चीज से परेशान नहीं है, जो आनंद, भय और आनंद से मुक्त है, वह संत है।” इससे पता चलता है कि सच्चा वैराग्य, या अनासक्ति, व्यस्त और तनावपूर्ण कार्य वातावरण में भी शांति की भावना ला सकता है। किन्तु अपनी टीम की पेशेवर और व्यक्तिगत भलाई के प्रति अनासक्ति का भाव हानिकारक है। औपचारिकता और अपने सहकर्मियों के प्रति चिंता,सम्मान और भावनात्मक जुड़ाव के बीच संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
अलग-अलग कर्मचारियों पर नकारात्मक प्रभाव के अलावा, काम पर अनासक्ति भी कार्यस्थल की समग्र संस्कृति को नुकसान पहुंचा सकती है। कार्यस्थल पर अनासक्ति के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए, मार्गदर्शन के लिए आध्यात्मिक शिक्षाओं को को समझ सकते हैं। भगवद गीता सलाह देती है कि सच्चे वैराग्य का अर्थ दूसरों की आवश्यकताओंऔर भावनाओं की उपेक्षा करना या अपने आसपास की दुनिया के प्रति उदासीन होना नहीं है। इसके बजाय, इसका अर्थ है आसक्ति और अहंकार से मुक्त होना और दूसरों की भलाई के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य करना।यह बहुत कम लोग समझ पाते हैं।
आवश्यक है कि आप स्वयं के प्रति जैसा व्यव्हार अपेक्षित नहीं करते, वैसा किसी अन्य के साथ न करें। वो शब्द न बोलें जिन्हें सुनकर आपको अच्छा नहीं लगेगा। किसी के प्रयासों, सुझावों या परेशानियों पर वह प्रतिक्रिया न दें जो आप अपने लिए पसंद नहीं करेंगे। किसी से अगर उच्च कोटि की अपेक्षा रखें, तो कम से कम उनकी छोटी-छोटी अपेक्षाएं भी पूरी करने का प्रयास करें – चाहे आप कितने भी व्यस्त हों। सभी अपनी सीमाएं लांघने का प्रयास करते हैं। सभी अपना उच्च प्रदर्शन देने की होड़ में लगे हैं। कुछ के प्रयास अनैतिक हैं, भ्रष्ट हैं, दुराचारी हैं, और कुछ के पूर्णतः नैतिक।कुछ की बोलचाल की भाषा में पूर्णविराम के समान गलियां प्रयोग में आती हैं, तो कुछ सदा समर्पित, सभ्य और संतुलित रहते हैं। कुछ धन, जुगाड़, और कथित पहचान के दम पर साम-दाम-दंड-भेद का खेल रचकर आपका भी इस्तेमाल ही कर रहे हैं, और कुछ वास्तव में अपना काम शांति से, पूर्ण निष्ठा से और श्रद्धा से कर रहे हैं। कटु विचारों और लेन-देन से उपजी क्षणिक प्रगति, तरक्की, समृद्धि, प्रचार, आडम्बर और प्रसिद्धि के आधार पर एक व्यक्ति कार्य करता है, और दूसरे को वही कार्य नैतिक रूप से करने से रोक रोक दिया जाता है। दोनों में अंतर करना सीखें।
इस तरह, संस्थानों में एक सकारात्मक और सहायक कार्य संस्कृति बनाकर, हम एकजुट हो कर, सभी के आध्यात्मिक विकास और प्रगति को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं, और एक सामंजस्यपूर्ण और उत्पादक कार्य वातावरण बना सकते हैं। इंसान हैं, भगवान नहीं। सबकी भावनाओं को समझें।