झाबुआ। पहाड़ी से भैंसे का धड़ लुढ़काकर आदिवासी आने वाले साल के मौसम का हालचाल जानते हैं। देश में जहाँ पल- पल बदलते मौसम की जानकारी के लिए अधुनातन मशीनें और हजारों लोगों का लवाजमा तैनात होता है, वहीं मध्यप्रदेश के आदिवासी अब भी सदियों पुरानी प्रथा अपनाते हैं।
पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ में लोगों की मान्यता और परंपराएं विज्ञान को चुनौती दे रही है। दीवाली के दिन पहाड़ पर हजारों की तादात में ग्रामीण इकट्ठा होते हैं।राणापुर ब्लाक के ग्राम चुई में आदिवासी समाज की परंपरा अनुसार अनुष्ठान और पूजा के बाद भैंसे की बलि दी जाती है। बलि के बाद भैंसे के धड़ को पहाड़ से लुढ़काया जाता है। इसके पहाड़ से लुढ़कने की गति और दूरी के हिसाब से आने वाले साल में बारिश की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है। मान्यता है कि तेज गति से नीचे तक लुढ़कने पर अच्छी बारिश होती है। गति कम होने या कम दूरी तय करने पर माना जाता है कि बारिश में कमी रहेगी।
समिति प्रमुख कसनासिंह ने बताया कि ग्राम चुई में बाबा देव की पहाड़ी से बलि के बाद भैंसे के धड़ को लुढ़काने की यह परंपरा भले ही अंधविश्वास से जुड़ी है और विज्ञान भी इसे नही मानता, लेकिन समाज के लोगों का इस बात पर भरोसा है। यही वजह है कि मौसम के मिज़ाज को जानने बढ़ी संख्या में लोग पहाड़ पर पहुंचते है। समाज के ग्रामीणों का मानना है कि इस परंपरा के बाद लगाया गया अनुमान हमेशा सही होता है।
आयोजन देखने पहुंचे ग्रामीण कलसिंह के मुताबिक आयोजन में आदिवासी समाजजनों के बड़ी संख्या में शामिल होने से पुलिस इंतज़ाम करना पड़ता है।
पुलिस इसे रोकने के बजाए सुरक्षा में तैनात नज़र आती है। पुलिस का कहना है कि किसी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिये सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किये जाते हैं।