धार। धार के मनावर तहसील के ग्राम सेमल्दा में सौ वर्ष पुराने किन्जेश्वर महादेव मंदिर के डूब क्षेत्र में आने के बाद इस मंदिर के व्यवस्थित पुर्नस्थापन को भी भ्रष्ट अफसरों ने नहीं छोड़ा। ग्राम सेमल्दा मे प्राचीन किन्जेश्वर महादेव मंदिर जो कि सरदार सरोवर की डूब में आया है। उसे नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा 6 वर्ष पूर्व नर्मदा किनारे से हटाकर गांव के मध्य में लाकर स्थापित कर दिया है लेकिन व्यवस्थित पुर्नस्थापन व सही प्लानिंग से मंदिर का निर्माण न होने से स्थानीय लोगों में नाराजगी है। इस प्राचीन मंदिर का शिवलिंग जलधारी और मंदिर का चबूतरा पुराने स्थान पर यानि की डूब क्षेत्र में ही छोड दिया गया। यही कारण है कि आज भगवान पानी (डूब क्षेत्र) में और चारदीवारी गांव में है। इस प्राचीन मंदिर से जुड़े भक्तों का कहना है कि तीन पीढियों से जिस आराध्य को तारण हार मानकर पूजा जा रहा था वे ही जलमग्न हो गए। अब ग्रामवासी समझ ही नही पाए कि मंदिर तो गांव में आ गया लेकिन भगवान कहां गए।
शिवलिंग व चबूतरा डूब क्षेत्र में ही छोड़ा
सरदार सरोवर परियोजना के अन्तर्गत पुरातत्वीय महत्व चिन्हित मंदिरों और अन्य को अन्यत्र स्थापित करने के लिए 26 साल पहले एक विस्तृत एक्शन प्लान कार्ययोजना पुरातत्व विभाग के निर्देशन में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के द्वारा 1993 में बनाया था। उसे 1997 में संशोधित किया गया उस एक्शन प्लान में पुराने मंदिर की ले आउट नक्शे से लगाकर नए स्थान पर स्थापित करने का पूरा प्लान बनाया गया था। किंजेश्वर मंदिर सेमल्दा तहसील मनावर के लिए बनाए प्लान के अनुसार मंदिर को स्थांननातरित करने के लिए 7 लाख 40 हजार की कार्ययोजना बनाई गई थी। मंदिर को 2012-13 में नदी किनारे से गांव में स्थानांतरित किया गया लेकिन मंदिर की चार दीवारी और छत को ही शिफ्ट किया गया। शिवलिंग चबूतरा वही छोड़ दिया जो की आज जलमग्न है।
पूरा काम घटिया, गांव वालों में नाराजगी
इस मंदिर से के पत्थरों को पहले सेमल्दा गांव के लिए बनाई गई पुर्नबसाहट में ले जाया लेकिन गांव वालो के विरोध के चलते पत्थरो को से गांव मे लाया गए। क्योंकि आधा गांव डूब की जद में है और आधा बाहर है। सेमल्दा निवासी कमल पटेल ने बताया कि मंदिर को पुरातत्वीय नियमों की अनदेखी करते हए गांव के मजदूरों से जुडवाई करवा दी गई जो कि साफ देखी जा सकती है। यहां पर घटिया निर्माण कार्य हुआ है।
दो साल पहले तो और भी बुरा नजारा था
मंदिर गांव में आने के बाद उसमें न तो शिवलिंग था न जलाधारी लापरवाही से खंडित किए गए। अकेले नन्दी बेठे थे। मंदिर के पुजारी रहे राधेश्याम की बेवा प्रेमलता बाई बताती है कि मंदिर में कुत्ते सोते थ। अभी दो साल पहले हमने मंदिर में नवीन शिवलिंग और जलाधारी स्थापित कर पूजन अर्चना प्रारम्भ की है।
बिना प्लानिंग का काम चढ़ा भ्रष्टाचार की भेंट
गांव के भगवान मुकाती के अनुसार जिस तरह घाटी के अन्य मंदिरों का स्थानांतरित किया गया। वैसे ही हमारे गांव के मंदिर को भी किया जाना था। लेकिन इस मंदिर पर किए गए काम को देखकर कोई नहीं कह सकता कि यहां पर लाखों का बजट खर्च करने के बाद भी कोई प्लानिंग अनुसार काम हुआ है। निर्माण काम में अनाड़ी पन साफ झलकता है। जबकि मंदिर को स्थानातरित करने के लिए भारी भरकम बजट एवं विशेषज्ञ रखे थे लेकिन कम नघावि प्राधिकरण के दवारा ही करवाया गया। गांव के राधेश्याम पाटीदार का कहना है कि छोटी कसरावद के मोजेश्वर मंदिर को जिस सफाई से स्थानांतरित किया गया है वैसा ही इसको करना था। साथ ही हमारे भगवान को और मंदिर के वास्तविक चबूतरे को गांव में लाया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ।