छतरपुर। एक तरफ जहाँ लोग अपनों को मरने के लिए उनके हाल पर छोड़ देते हैं वहीँ एक परिवार ऐसा भी है जो बेसहारा लोगों की सेवा में लगा है। इस परिवार ने अपना जीवन दीन, दुखियारे, अनाथ, बेसहारा लोगों के जीवन को सँवारने में समर्पित कर दिया है। सरकार की मलाई से दूर यह परिवार दीन दुखियारों की सेवा कर रहा है।
जिसका दुनिया में कोई नहीं होता उसका होता है छतरपुर का एक छत्रिय परिवार। यह परिवार निरवाना फाउंडेशन के जरिए बेसहारा लोगों की सेवा कर रहा है। फाउंडेशन के प्रमुख युवा संजय सिंह एवं इनके ससुर दाऊ लोकपाल सिंह निस्वार्थ भाव से इस काम में लगे हुए है। यह बेसहारा बच्चों को नहलाने, धुलाने, खाना खिलाने और उनकी शौच क्रिया भी खुद करते हैं। शरीर के घावों को साफ करने से लेकर इनके कपड़े और तेल मालिश कर इन्हें अपने परिवार की तरह पाल रहे हैं।
संजय सिंह ने मुम्बई, पुणे में रहकर लाखों के पैकेज को छोड़कर दीन दुखियारों की सेवा का संकल्प लिया। उनकी इस काम में मदद की उनके 70 वर्षीय ससुर लोकपाल सिंह दाऊ ने। दाऊ बताते है कि दीनों की सेवा में ही चारों धाम है। हमारा जीवन सफल हो गया।
ख़ास बात यह हैं कि आश्रम का नाम सुनते ही हमारे जहन में सरकारी ग्रांट की तस्वीर सामने आ ही जाती है। लेकिन संजय सिंह का परिवार अपने मित्रों के सहयोग से यह नेक काम कर रहा है।
संजय सिंह कहते है कि यही मेरा परिवार है। दिल्ली से लेकर भोपाल तक के कई अफसर यहां आ चुके हैं। जो तारीफ करते नहीं थकते। अब यह संस्थान देश का ” रोल मॉडल” बन चुका है। संजय बताते हैं कि अभी परिवार छोटा है इसे और विस्तार दिने की ललक है। आंखों में विशाल उम्मीदें लिए दींन, दुखियारों के लिए खुले आसमान की तलाश में है। यहां परवरिश के साथ संस्कार और भविष्य निर्माण की गाथा जीवंत है।