जगदीश परमार, उज्जैन।
यूपी के कुख्यात बदमाश बिकरू गाँव में कई पुलिसकर्मीयों को मौत की नींद सुला देने वाले बदमाश विकास दुबे ने इस घटना के बाद मध्य प्रदेश के उज्जैन में आत्म समर्पण किया था। इसके बाद यूपी पुलिस उसे गिरफ़्तार कर ले जा रही थी और रास्ते में ही एनकाउंटर कर दिया गया। एनकाउंटर के बाद से विकास से जुड़े 21 मुक़दमों की फ़ाइलें ग़ायब हैं।
बिकरू कांड की जांच के लिए गठित 3 सदस्य जांच आयोग ने विकास दुबे का एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम को क्लीन चिट दे दी है। इसके साथ ही आयोग की रिपोर्ट ने गैंगस्टर विकास दुबे और अफसरों की मिलीभगत का कच्चा चिट्ठा भी सामने ला दिया है. जांच आयोग 5 महीने तक विकास दुबे से जुड़ी 21 मुकदमों की फाइल मांगता रह गया. लेकिन फाइल नहीं मिली. बताया जा रहा है कि विकास दुबे के 21 मुकदमों की फाइलें ही गायब हो गई हैं.
आयोग द्वारा 5 महीने तक विकास दुबे से जुड़ी 21 मुकदमों की फाइल मांगता रह गया. लेकिन फाइल नहीं मिली. यानी यूपी पुलिस की संलिप्तता से विकास दुबे के 21 मुकदमों की फाइलें ही गायब हो गई हैं.
रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान, शशिकांत अग्रवाल और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता के जांच आयोग ने 5 महीने तक विकास दुबे के एनकाउंटर और विकास दुबे से जुड़े मामलों की जांच की तो पता चला विकास दुबे पर दर्ज 21 मुकदमों की तो फाइल ही गायब है. जिन 21 मुकदमों की फाइलें 5 महीने तक अधिकारी जांच आयोग के सामने पेश नहीं कर पाए उनमें 11 मामले शिवली थाने के, 4 कल्याणपुर थाने के, 5 मामले चौबेपुर और 1 मामला बिल्हौर का है. जिन मुकदमों की फाइलें गायब हैं उनमें गुंडा एक्ट, हत्या का प्रयास, पुलिस पर हमला, मारपीट जैसे गंभीर धाराओं के मुकदमे शामिल हैं जिनकी फाइलें ही जांच आयोग को नहीं मिलीं.
दरअसल, जांच आयोग ने विकास दुबे पर दर्ज सभी मुकदमों से जुड़ी एफआईआर, चार्जशीट, गवाहों की सूची और उनके दिए बयान की फाइल मांगी थी. विभिन्न थानों में दर्ज 43 मामलों की तो फाइल जांच आयोग को मिली, लेकिन 21 मुकदमों की फाइलें नहीं मिल सकी. जांच आयोग ने गंभीर अपराधों की फाइल गायब होने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की सिफारिश की है.
जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में साल 2001 में दर्ज हत्या के एक मामले का जिक्र करते हुए साफ लिखा है कि कानपुर देहात के सत्र न्यायालय से 14 जून 2004 को विकास दुबे को सजा सुनाई गई, 15 जून को विकास दुबे की तरफ से हाईकोर्ट में अपील हुई. अगले ही दिन, 16 जून को मामले की सुनवाई करते हुए विकास दुबे को जमानत मिल गई. इस मामले में सरकारी वकील को सुना ही नहीं गया. राज्य सरकार की तरफ से भी विकास दुबे की हिस्ट्रीशीट के आधार पर उसकी जमानत अर्जी खारिज कराने के लिए भी कोई कोशिश नहीं हुई।