सतना। ये तस्वीर देखकर आपको शायद ये नजारा हिमाचल के पहाडों में बसे किसी गांव का है। वहां पहाडी नदियों को पार करने के लिए इसी तरह के झूला पुल बनाए जाते हैं लेकिन ये नजारा मध्यप्रदेश के सतना का हैं। आजादी के बाद से पुल की मांग करते-करते जब लोग थक हार गए तो उन्होंने लकडी का झूला पुल बना लिया। गिरे नहीं इसलिए दोनों किनारों पर लोहे के मोटे तारों से पुल को बांध दिया गया। गाँव में आने-जाने का यहीं इकलौता रास्ता है। अस्पताल जाना हो या स्कूल इसी पुल से गुजरना पडता है। टमस नदी जब उफान पर रहती है तो जुगाड का यह पुल भी डूब जाता है। फिर गाँव पर ताला जड जाता है। कई-कई दिनों तक गाँव से आवाजाही बंद हो जाने के कारण साग-भाजी और राशन के भी लाले पड जाते हैं।
मामला सतना जिले के तिघरा खुर्द गाँव का है। गाँव में आने जाने के लिए यहाँ लकड़ी का पुल बनाया गया है। पुल को मजबूती देने के लिए लोहे की तार से दोनों तरफ बांधा गया है। गाँव के लोगों को इसी पुल से आना-जाना पड़ता है। बारिश के मौसम में जब टमस नदी में बाढ़ आती है तो गाँव वालों की परेशानियाँ भी बढ़ जाती है। जब नदी उफान पर होती है तब पुल सहित पूरा इलाका पानी में डूब जाता है और ग्रामीण गाँव में ही कैद रह जाते हैं। ऐसे में जरुरी काम पड़ने पर ग्रामीण लकड़ी के पुल पर बंधे लोहे के तार पर चढ़कर एक किनारे से दूसरे किनारे पहुँचते हैं। ऐसे में किसी बड़ी अनहोनी से इंकार नहीं किया जा सकता।
इतना ही नही इसी लकड़ी के पुल से चलकर छात्र-छात्राएं, बाइक सवार, साइकिल व ग्रामीण गुजरते हैं। ग्रामीणों को आजादी के बाद आज तक एक पुल नसीब नहीं हो सका।
गाँव को मुख्य मार्ग से जोड़ने के लिये रपटे के ऊपर एक पुल की जरूरत है जो कि आज तक नही बन सका।
गाँव के रोजगार सहायक मनोज पटेल से बात की तो उन्होंने बताया कि गाँव में पुल बनने के लिये सेंक्शन हो चुकी है पर निर्माण कार्य अभी शुरू नही हो सका है। यहाँ बाढ़ में बहुत खराब हालात हो जाते हैं। लोग गाँव मे ही कैद होकर रह जाते हैं।
गाँव के शिक्षक देवेन्द कुमार द्विवेदी ने बताया कि बाढ़ में हालात बहुत खराब हो जाते है। गाँव चारों तरफ पहाड़ों से घिरा है। तेज बारिश के दौरान जब टमस नदी अपने उफान पर होती है तो यह झुला पुल भी नदी के आगोश में समा जाता है फिर एक-एक हफ्ते तक आने जाने का रास्ता बंद हो जाता है. ऐसे में बच्चे स्कूल नही जा पाते है। सुना है पुल सेंक्शन हो गया है, भूमि पूजन भी हो गया है, पर जब तक निर्माण कार्य शुरू नही हो जाता तब तक कुछ कहा नही जा सकता। 10-15 साल तो हमे ही देखते हो गया कि यहाँ की हालत कितनी खराब हो जाती है।
गाँव की ही रामबाई ने बताया कि एक बार बाढ़ आ जाने पर आठ दिनों तक पानी नहीं उतरता जिससे पुल से आना-जाना बंद हो जाता है। ग्रामीण साग सब्जी लेने नही जा पाते। राशन खत्म हो गया तो भूखे पेट ही सोना पड़ता है। बीमार होने पर गाँव में कैद होकर रह जाते हैं।
छात्रा अन्नू कोल ने बताया कि बाढ़ आने पर हम स्कूल नही जा पाते हैं। काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।