संक्षिप्त परिचय:
समकालीन साहित्यकारों में सामाजिक विडम्बनाओं को उजागर करती लेखनी के लिए जानी जाने वाली, महू मध्यप्रदेश की लेखिका एवं कवियित्री तृप्ति मिश्रा साहित्य के साथ लोकगायन को भी संरक्षित कर रही हैं। साथ ही 17 से अधिक वर्षों से मिट्टी के गणेश पर निःशुल्क कार्यशालाएं करती आई हैं। अपने कार्यों के लिए इन्होंने अनेक सम्मान प्राप्त किये हैं।
रचना
खेत बेच कर फीस भरी थी
खेत बेच कर फीस भरी थी
इक सपने की आस में
पढ़ लिख बेटा बन के बाबू
रख लेगा फिर पास में
घर की टीन टपकती बोली
रह ले अब इस त्रास में
भेज के थोड़े टुकड़े नगदी
मगन वो शहरी रास में
आशाओं के बादल खाली
कभी तो बेटा आयेगा
आसन ऊपर संग बैठकर
बेसन रोटी खायेगा
बाहर आंगन ठंडे पानी
लोटे से वो नहाएगा
फिर अम्मा की मान मनौव्वल
संग उसे के जायेगा
पथराई आँखें बापू की
द्वारे पर ही तकती हैं
झूठी तारीफों की माला
जीभ नहीं अब थकती है
मेरा बेटा आज शहर की
बड़ी सी नामी हस्ती है
बोलें तो ले जाए कल
पर हमें गाँव में जंचती है
मोबाइल है एक दिलाया
बहू बेटा बतियाते हैं
औपचारिक हाल पूछकर
वो फारिग हो जाते हैं
सुन पड़ोसी महिमा मंडन
सोच में पड़ जाते हैं
वो भी भरने फीस शहर में
खेत बेचकर आते हैं
तृप्ति मिश्रा