देवास। किसी ने सच ही कहा है कि प्रतिभा किसी जगह की मोहताज नहीं होती। कई बार छोटे शहरों से बड़ी प्रतिभाएं निकलकर सामने आती हैं। इस कहावत को एक बार फिर सच साबित किया है देवास जैसे छोटे शहर से निकलकर बॉलीवुड में अपना एक अलग मुकाम बनाने वाली यंग एक्ट्रेस नेहा कपूर ने। फिल्म ‘ग्लोरियस डेड’ में रति का किरदार निभाने पर एक्ट्रेस नेहा कपूर को प्रतिष्ठित ‘दादा साहेब फाल्के फिल्म फेस्टिवल (2020)’ का बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का सम्मान मिला है।
नेहा कपूर ने अवार्ड मिलने पर ख़ुशी जाहिर करते हुए फिल्म के डायरेक्टर सुदीप रंजन सरकार और प्रोडूसर रीता झावर को धन्यवाद दिया है। साथ ही उन्होंने ‘दादा साहेब फाल्के फिल्म फेस्टिवल (2020)’ के आयोजकों को भी धन्यवाद दिया है। इस साल सम्मान समारोह 30 अप्रैल को नई दिल्ली में होने वाला था, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए समारोह रद्द कर दिया गया और सम्मान की घोषणा सोशल मीडिया पर लाइव की गई। ‘दादा साहेब फाल्के अवार्ड’ से सम्मानित नेहा कपूर से हमने विशेष बातचीत की।
सवाल – छोटे शहर से आपने यहाँ तक का सफ़र तय किया कैसे?
जवाब – मेरी पैदाइश देवास शहर की है लेकिन मैंने अपना करियर इंदौर से शुरू किया है। देवास जैसे छोटे शहरों में मॉडलिंग या एक्टिंग को सपोर्ट नहीं किया जाता है। लेकिन मुझे मेरी माँ ने बहुत सपोर्ट किया है। इंदौर के टीआई मॉल में मैंने कई फैशन शो किए है। उस समय मैं मुंबई से आने वाली मॉडल्स के साथ वॉक करती थी। मुझे तभी से ही विश्वास था कि मैं मॉडलिंग और एक्टिंग में कुछ कर सकती हूँ। हालाँकि मेरे परिवार वाले मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन मैं फिल्मों में जाना चाहती थीं। बीडीएस में चयन होने के बावजूद मैंने इंदौर के निजी संस्थान से एयर होस्टेस का कोर्स किया है। इसके बाद मैं कुछ समय दिल्ली में भी रही। इससे मुझे आत्मविश्वास हुआ कि मैं मुंबई जैसे बड़ी सिटी में भी रह सकती हूँ। इस तरह मुंबई का सफ़र शुरू हुआ। मुंबई में आने के बाद मैंने सबसे पहले मॉडलिंग में कदम रखा। इस दौरान मैंने ‘मिस ग्लोरी ऑफ इंडिया’ का खिताब भी जीता। उसके बाद मैंने सीरियल में काम करना शुरू किया और उसके बाद मैंने फिल्म करना शुरू की। इस तरीके से मेरा सफर शुरू हुआ। मैंने लाइफ में काफी उतार-चड़ाव देखा है और इससे काफी कुछ सिखा भी है।
सवाल – इस फ़िल्म या आपके किरदार को लेकर कोई दिलचस्प बात?
जवाब – इस फिल्म को लेकर मेरे पास बताने के लिए काफी कुछ है। यह एक फीचर फिल्म है और इसे किसी बड़े कैमरे से नहीं बल्कि आइफोन 8 प्लस के कैमरे से शूट किया गया है। फिल्म को फ़्रांस, वाराणसी और दार्जिलिंग में शूट किया गया है। इस फिल्म में कुल 17 किरदार है। इनमें जर्मनी, रशिया, अल्बेनिया और भारत के कलाकारों ने काम किया है। फिल्म के डायलॉग जर्मन, अंग्रेजी और हिंदी भाषा में लिखे गए हैं। इस फिल्म को कांस फिल्म फेस्टिवल में भी काफी सराहा गया है। यह फिल्म इंसान के डिजायर की जर्नी है। फिल्म में मैंने रति नाम की सीधी-सादी पंडिताईन का किरदार निभाया है। यह हमने वाराणसी में शूट किया है। रति एक ऐसी औरत है जो सब कुछ जानते हुए भी काफी कुछ सहन करती है और काफी परेशानियों के बावजूद अपने परिवार को लेकर मजबूती के साथ खड़ी रहती है। सब कुछ जानते हुए अपने पति और अपने परिवार का साथ देती है। ख़ास बात यह है कि मैं यह किरदार करना नहीं चाहती थी। डायरेक्टर सुदीप रंजन सरकार ने मुझे फिल्म में दूसरा किरदार दिया था, जो रति के किरदार से बड़ा था। लेकिन उस किरदार के बारे में मुझे लगा कि यह किरदार नहीं करना चाहिए। इसके बाद सुदीप सर ने मुझे रति का किरदार दिया। लेकिन यह किरदार भी इतना छोटा था कि मैं नहीं करना चाहती थी। लेकिन सुदीप सर के कहने पर मैंने यह किरदार किया। मैंने कभी सोचा नहीं था कि इस छोटे से किरदार के लिए मुझे कोई अवार्ड मिलेगा। जब सुदीप सर ने मुझे अवार्ड के बारे में बताया तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई। मेरे ख्याल से यह मायने नहीं रखता है कि किरदार बड़ा है या छोटा। आप उसे कैसे निभाते हैं यह मायने रखता है। मैंने रति के किरदार को बहुत दिल से पर्दे पर उतारा। मेरे लिए गर्व की बात है कि लोगों को यह किरदार पसंद आया है। ‘दादा साहेब फाल्के अवार्ड’ बहुत कम आर्टिस्ट को मिल पाता है। मुझे यह मिला, इसकी बहुत ख़ुशी है।
सवाल – आपकी कामयाबी का श्रेय आप किसे देती हैं?
जवाब – मैं अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी माँ को देना चाहती हूँ। अगर वह मेरा सपोर्ट नहीं करती तो मेरा सफ़र शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाता। मुझे लगता है कि पैरंट्स का सपोर्ट करना, उनका चीजों को समझना बेहद जरूरी होता है और उतना ही जरुरी हम बच्चों का भी होता है कि अगर मां-बाप आप पर विश्वास दिखाएं तो आपको भी उनके विश्वास पर खरे उतर कर कुछ करके दिखाना है। मैं अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी मां को देना चाहूंगी। वह देवास में रहती हैं और बीमा अस्पताल में डॉक्टर हैं। इस वक्त भी वह मरीजों का ख्याल रख रही है। मैंने अपने घर से बहुत कुछ सीखा है। मैं अपने आपको बेहद खुशनसीब मानती हूं कि मैं ऐसे घर में पैदा हुई जहां पर मुझे इस तरह के संस्कार मिले और मुझे सिखाया गया कि सब बराबर है। आपको इंसानियत के हिसाब से चीजें करनी हैं। इंसान के लिए इंसानियत सबसे ज्यादा जरूरी है। मैंने उनसे सीखा है कि आप जिंदगी में कभी हार मत मानो। आप मेहनत करो, मेहनत का फल जरुर मिलता है। मां की इसी सीख को लेकर मैं संघर्ष कर रही हूँ और कोशिश करती हूं कि मैं हर काम में खरी उतरु।
सवाल – देवास और इंदौर को किस तरह याद करती हैं?
जवाब – मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने मध्यप्रदेश में जन्म लिया है। हमारे यहाँ भी बहुत ही प्रतिभा है, लेकिन उन्हें सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है। ऐसे में मैं उन्हें सही मार्गदर्शन देने की पूरी कोशिश करती हूँ। मैं जब भी इंदौर या देवास आती हूँ तो वर्कशॉप का आयोजन करती हूँ। मैंने देवास-इंदौर के बच्चों के लिए कई बार फ्री वर्कशॉप भी लगाई है। बच्चों को सही मार्गदर्शन मिलना बहुत जरुरी होता है और मैं देवास-इंदौर के बच्चों को सही मार्गदर्शन देने के लिए हमेशा तैयार रहती हूँ। मैंने अपने काम की शुरुआत इंदौर से की थी। मैं सुबह पांच बजे से लेकर 11 बजे तक गीता भवन पर एक इंटरनेशनल कॉल सेंटर पर काम करती थी। इसके बाद 12 बजे से तीन बजे तक मैं एक संस्थान में विजिटिंग फैकल्टी बनकर एविएशन, इंग्लिश ग्रूमिंग के बारे में पढ़ाती थी। फिर चार बजे से छह बजे तक मैंने मॉडलिंग क्लासेस चलाई है। उसके बाद 7 बजे से लेकर 10 बजे तक मैं डांस क्लास चलाती थी। 10:30 बजे मैं इंदौर से देवास जाने के लिए बस पकड़ती थी। देवास पहुँचने के बाद मैं खाना खाते-खाते एक लड़की को इंग्लिश पढ़ाया करती थी। फिर अगले दिन सुबह जल्दी उठकर साढ़े चार बजे इंदौर के लिए निकलती थी। मैंने यह काम लगातार सवा साल तक किया है। इन सब चीजों से मैंने बहुत कुछ सीखा है। इंदौर से मेरी बहुत यादें जुड़ी हुई है। मैं इंदौर के पानी-पतासे, पोहा-जलेबी, नमकीन को बहुत मिस करती हूँ। मैं हमारे यहाँ के लोगों को भी बहुत मिस करती हूँ। हमारे यहाँ के लोग बहुत मदद करते हैं, लेकिन मुंबई में लोग बहुत प्रैक्टिकल है। उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है। मैं अपने आप में यह चीज कभी नहीं बदलना नहीं चाहूंगी। मुंबई में मैं काम जरुर करती हूँ, लेकिन मैं चाहती हूँ मैं अंदर से हमेशा वैसी ही रहूँ जैसे इंदौर-देवास के लोग होते हैं।
सवाल – आपके आने वाले प्रोजेक्ट क्या है?
जवाब – अभी तो लॉकडाउन चल रहा हैं इस कारण काफी सारी स्क्रिप्ट्स को लेकर सिर्फ फ़ोन पर ही बात हो रही है। फ़िलहाल एक वेब सीरीज है जिसमें मैं काम करने वाली हूँ, उसका नाम है “हैकर”। लॉकडाउन के बाद इसकी शूटिंग हम महाबलेश्वर में करने वाले हैं। अभी तो यही है।
सवाल – आगे क्या मुक़ाम हासिल करने की हसरत है?
जवाब – मुकाम तो आप कितने भी हासिल कर ले वह हमेशा कम ही लगेंगे। मैं अपनी जिंदगी में हमेशा नाम और इज्जत कमाना चाहती हूँ। माना कि पैसा भी बहुत जरुरी होता है, लेकिन नाम और इज्जत कहीं ज्यादा जरुरी होती है। मैं चाहती हूँ कि मैं जीवन में नाम और इज्जत कमाऊ और उसे बरक़रार रख पाऊं।