दीपावली त्योहार में शाॅपिंग का जलवा रहता है। खरीदारी का प्रमुख त्यौहार होने से बाजार ग्राहकों से गुलज़ार रहते है लेकिन आप यह जानकर चौंक जाएँगे कि मध्यप्रदेश में दीवाली पर एक जगह गधों का बाज़ार भी सजता है और जमकर व्यापार भी होता है।
आमतौर पर गधों को मूर्खता का पर्याय माना जाता रहा है पर उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे चित्रकूट में दीवाली पर गधों-खच्चरों को मेला भरता है और उसके खरीदारों को बकायदे डिस्काउंट भी मिलता है।
बीते सालों की तरह इस वर्ष भी धर्मनगरी चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के किनारे गधों और खच्चरों का 3 दिनी मेला शुरू हुआ।इस मेले की व्यवस्था बाकायदा नगर पंचायत करती है।नगर पंचायत चित्रकूट को गधा मेले से हर वर्ष लाखो रुपयों का राजस्व भी मिलता है ।
यहां देश के विभिन कोनों से हजारो की संख्या में अलग-अलग नस्लो के गधे- खच्चरों को लेकर व्यापारी आते हैं। इन तीन दिनों में यहाँ लाखो का व्यापार होता है। गधा बाज़ार में आने वाले व्यापारियों को कभी मुनाफा तो कभी घाटा भी उठाना पड़ता है।यह मांग और पूर्ति के बाज़ार पर निर्भर होता है ।
मुगल काल से हुई थी शुरूआत
मिली जानकारी के अनुसार इस गधा मेला की शुरूआत मुगल काल में हुई थी। मुगल बादशाह औरंगजेब के सैन्य बल में घोड़ों की कमी होने पर जब अफगानिस्तान से बिकने के लिए अच्छी नस्ल के खच्चर व गधे बुलवाए गए और उन्हे मुगलसेना के बेड़े में शामिल किया तो उनकी खरीदी इसी चित्रकूट के हाट से हुई थी।तब से चली आ रही मेले की यह अनवरत परम्परा आज भी जारी है।
देशभर से आते हैं लोग
इस मेले में मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश छत्तीसगढ, राजस्थान,पंजाब, हरियाणा, बिहार, जम्मू कश्मीर, से खच्चरों व गधों को खरीदने और बेचने के लिए व्यापारी आते हैं ।व्यापारियों की माने तो गधो व खच्चरों की यहा पर अच्छी खासी कीमत मिलती है और चित्रकूट का मेला खरीदी एवं बिक्री के लिए सबसे अच्छा माना जाता है । हालांकि अब यहां भी कुछ अव्यवस्थाएँ होने लगी हैं जिससे व्यापारियो को परेशान भी होना पड़ता है।
अभिनेताओं के नाम पर मिलती है अच्छी कीमत
मेले में आने वाले गधों के नाम भी व्यापारी बड़े अजीबो गरीब ढंग के रखते हैं, जिनमे अक्सर फिल्म जगत के कलाकारों के नामों पर होते हैं। उदाहरण के लिए सलमान,शाहरुख,दीपिका,रणवीर,अक्षय,गोविंदा,मिथुन, सनी, हनी, महिमा, पारूल, नगीना, हीना और टाइगर आदि जो किसी न किसी अभिनेताओं के नाम पर होते हैं।फिर कीमत इनके नाम एवं खूबसूरती के अनुसार आंकी जाती है।हालांकि नाम के साथ इनकी कीमत में उम्र व दांतो की गिनती भी शामिल होती है ।
घास खिलाने से कष्ट दूर होता है
लोक मान्यता के आधार पर इस मेले में आसपास के गाँव के लोग गधो को घास खिलाने आते है।उनका मानना है कि ऐसा करने से परिवार के सभी कष्ट दूर हो जायेगे व उन्हें पुण्य मिलेगा।
खतरे में मेले का अस्तित्व
धर्म नगरी चित्रकूट के मंदाकिनी नदी के तट पर लगने वाले इस ऐतिहासिक गधा मेले मे कम होती गधा व्यापारियो ,खरीदारों की संख्या,आधुनिक मशीनरी के बढ़ते इस्तेमाल और वैश्विक मंदी के चलते उसका असर अब जानवरों के इस मेले में भी दिख रहा है। जिससे धीरे धीरे मेले का अस्तित्व भी खतरे मे पड़ता दिखाई देने लगा है।
यदि मेले की इसी तरह अनदेखी की जाती रही तो इसके खत्म होने मे बहुत देर नही लगेगी ।