एक्सपोज़ टुडे, इंदौर।
जन्म कुंडली में बहुत से शुभ/अशुभ योगो के साथ विदेश यात्रा के योग भी मौजूद होते हैं। जब विदेश यात्रा के अनुकूल ग्रहों की दशा/अन्तर्दशा कुंडली में चलती है तब व्यक्ति विदेश जाता है।
*विदेश यात्रा के लिए किसी भी जन्म कुंडली में बनने वाले मुख्य योग/कारक:–
1. यदि चन्द्रमाँ कुंडली के बारहवे भाव में स्थित हो तो विदेश यात्रा या विदेश से जुड़कर आजीविका का योग होता है।
2. चन्द्रमाँ यदि कुंडली के छटे भाव में हो तो विदेश यात्रा योग बनता है।
3. चन्द्रमाँ यदि दशवे भाव में हो या दशवे भाव पर चन्द्रमाँ की दृष्टि हो तो विदेश यात्रा योग बनता है।
4. चन्द्रमाँ यदि सप्तम भाव या लग्न में हो तो भी विदेश से जुड़कर व्यापार का योग बनता है।
5. यदि भाग्येश बारहवे भाव में और बारहवे भाव का स्वामी भाग्य स्थान में हो तो भी विदेश यात्रा का योग बनता है।
6. यदि लग्नेश बारहवे भाव में और बारहवे भाव का स्वामी लग्न में हो तो भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
7. भाग्य स्थान में बैठा राहु भी विदेश यात्रा का योग बनाता है।
8. यदि सप्तमेश बारहवे भाव में हो और बारहवे भाव का स्वामी सातवें भाव में हो तो भी विदेश यात्रा या विदेश से जुड़कर व्यापार करने का योग बनता है।
9. अगर जन्म कुंडली में विदेश यात्रा के योग है और मंगल की दृष्टि चतुर्थ भाव में हो या मंगल चतुर्थ भाव में हो ,या चतुर्थेश के साथ मंगल का सम्बन्ध हो तो जातक विदेश में स्थाई नही रहता।
10. नवम भाव, तृतीय भाव , द्वादश भाव का सम्बन्ध प्रबल विदेश योग बनता है।
11. चतुर्थ भाव मातृ भूमि का भाव है जब यह भाव पाप करतारी में हो या इस भाव में पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक अपने वतन से दूर रहेता है।
12. भाग्येश, सप्तमेश के साथ सप्तम भाव में हो तो जातक विदेश में व्यवसाय करता है।
13. सप्तमेश की युति कोई भी शुभ ग्रह के लग्न में हो तो जातक को बार बार विदेश जाने का योग बनता है।
14. द्वादश भाव में राहू।
ज्योतिष अंजु अय्यर
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