धार, द टेलीप्रिंटर।आदिवासी अंचल मे आज भी सदियों पुरानी गाय गोहरी की परंपरा दिखाई देती है। इसमे लोग अपनी जान जोखिम मे डालकर इस परंपरा को निभाते हैं। धार, झाबुआ और अलीराजपुर जिलों के ग्रामीण इलाको मे दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा करके लोग गाय गोहरी का आयोजन करते हैं।ग्रामीण गायो के झुंड के सामने जमीन पर लेट जाते है और गायों का झुंड इन्हें रौंदता हुआ निकलता है। धार जिले के सुल्तानपुर ,दसई , तिरला, खुटपला, सगवाल जैसे कई गाँवो मे गाय गोहरी की परंपरा को लोग देखने को मिलती है।लोगों की मन्नतें पूरी होने पर भी वे गाय गोहरी मे शामिल होते है और खुद को गायो के पैरो से कुचलवाते हैं।
यह परंपरा कब से और कैसे शुरू हुई, यह तो किसी को मालूम नहीं लेकिन साल दर साल यह परंपरा बदस्तूर चल रही है। हर साल गायों के खुर लगने या भगदड़ से कुछ लोग जख्मी भी हो जाते हैं। प्रशासन भी इसे परम्परा मानकर कोई कार्रवाई करने से कतराता है।