लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस है। वर्तमान में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
गिफ़्ट ख़रीदना बना लाइफ़ का टर्निंग पाइंट।
(छोटी छोटी बातें )
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कई बार “छोटी बातें”भी बड़ी दिलचस्प होती हैं | वैसे इससे आपको ये भी याद आ सकता है की इस शीर्षक से दो बड़ी मनोरंजक और आला दर्जे की हिंदी फिल्मे भी बनी हैं , एक तो बासु चटर्जी की “छोटी सी बात” , और दूसरी मोतीलाल की “छोटी छोटी बातें” | दोनों ही फ़िल्मों में जीवन का एक अलग दर्शन पेश किया गया था | बासु की फिल्म एक रोमांटिक कॉमेडी थी , जिसके डायलॉग शरद जोशी ने लिखे थे और मोतीलाल की फिल्म में कहानी लेखन से लेकर निर्देशन तक खुद मोतीलाल ने किया था | अफ़सोस फिल्म के रिलीज होने के समय मोतीलाल इस दुनिया में नहीं थे जैसा की इस फिल्म के अंत में भी उनका किरदार का हश्र था | ध्यान से सोचें तो हमारे जीवन में भी कई बार छोटी छोटी बातों का बड़ा महत्व होता है , ये और बात है की अक्सर उसका ज्ञान होने पर हम ही वहाँ नहीं रह जाते |
बड़ी पुरानी बात है , तब मैं प्रशासनिक सेवाओं में आया भी नहीं था | उन दिनों मैं बी काम की परीक्षा पास कर घर पे खाली बैठा था और आगे पढ़ाई की जाए या कुछ और ये सोच ही रहा था | मेरे ताऊजी कटनी में हमारे साथ ही रहते थे | वे तब कटनी में “भगवती सेठ” के यहाँ से रिटायर ही हुए थे , जहाँ बड़े सालों तक काम करने के कारण भगवती सेठ उनका बड़ा सम्मान किया करते थे | ताऊजी मुझे घर में ख़ाली बैठा देखते थे सो एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि “पढ़ लिख लिए हो तो ख़ाली क्यों बैठे हो , कुछ काम धंधा ही सीख लो” | मैंने बताया की अभी तो मुझे एम काम करना है , तो ताऊजी बोले , जब पढाई शुरू हो जाये तो काम बंद कर देना | मैंने कहा क्या करूँ आप ही बताइये ? ताऊजी बोले “हम कहे देते हैं भगौती भैया से वो लगा लेंगे काम पर , महीना दो महीना में कुछ सीख भी लोगे पैसे मिलेंगे वो अलग” | मैंने सोचा कि ठीक ही कह रहे हैं , बैठे बैठे कर ही क्या रहा हूँ | उन्होंने सेठ के यहाँ बात की , सेठ जी इन्हें मानते थे सो तुरंत कह दिया भेज दो | दूसरे दिन सुबह मैंने तैयार होकर सेठ जी के ऑफिस पहुंचा | उन दिनों कटनी में भगवती ब्रदर्स की फर्म महत्वपूर्ण थी और उनके विभिन्न व्यावसायिक प्रतिष्ठान थे | मेरे पहुँचने पर सेठ जी ने मुझसे कुछ पढाई लिखाई का पूछा और अपने छोटे भाई के पास पहुंचा दिया | छोटे सेठ जी ने अपने मुनीम को बुलाया और मुझे उसके हवाले कर कहा इसको काम-धाम सिखाओ , ध्यान रखना हरिप्रसाद जी का भतीजा है | मुनीम जी ने मुझे दिन भर अपने साथ ही रखे रहे | बैंक ले गए , कैसे रुपया जमा करते हैं , कैसे निकालते हैं समझाया , फिर कुछ दुकानदारों के यहाँ उधार वसूलने साथ ले गए , पैसे वापस लेने के लिए कैसे बात की जाती है ये समझाया , डाक लगा के लिफाफे पोस्टबॉक्स में डालने भेजे आदि आदि | बस इसी तरह पूरा दिन निकल गया , शाम हुई तो छोटे सेठ जी ने मुझे अपने पास बुलाया और कहा की तुम नए लड़के हो और पढ़े लिखे हो , आजकल के लोगों की पसंद जानते हो , तो ऐसा करो जाकर स्टेशनरी की दुकान से एक अच्छा सा पेन ले आओ और हाँ गिफ्ट पैक करा के लाना | मैं चला तो गया , पेन ले के गिफ्ट पैक करा के ले भी आया , पर जब उन्हें देने लगा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछा की सेठजी ये गिफ्ट आपने किसके लिए मंगवाई है ? सेठ कहने लगे अरे भाई इलाके में नया सेल्स टेक्स इन्स्पेक्टर आया है , नवजवान लड़का है , उसका आज जन्मदिन है इसलिए ये पेन मैं उसे तोहफे में दूंगा | मैं कुछ न बोला , शाम हो चुकी थी तो मैं लौट के घर के लिए चल दिया पर रास्ते में मैंने सोचा की दूसरों के लिए गिफ्ट खरीदने वाली नौकरी से बेहतर है पढ़ लिख कर ऐसी नौकरी करें के लोग हमारे लिए गिफ्ट खरीदें | सेठ की नौकरी का वो मेरा पहला और आखिरी दिन था |