November 21, 2024

बंदूक़ चलाने वाले हाथों में छेनी हथौड़ी थमाई और माओवाद की राह में भटके सैंकड़ों की ज़िंदगी बदल दी।

लेखिका गोपा सान्याल छत्तीसगढ़ की 
फ्री लांसर राइटर/ वरिष्ठ पत्रकार/फोटोग्राफर हैं। 
एक्सपोज़ टुडे।
खेल खेल में खिलौने गढ़ते गढ़ते कांकेर के एक आदिवासी बच्चे के भीतर एक कलाकार ने कब जन्म ले लिया , इसकी कहानी बेहद रोचक है।माओवाद प्रभावित क्षेत्र बस्तर  अपनी प्राकृतिक सुंदरता,पर्यटन, स्थल ,लोक संस्कृति एवम लोककला के लिए भी जाना जाता है।कांकेर जिला इन दिनो चर्चा में है।
ऐसा अंचल जहाँ से  आये दिन गोली,बारूद और हत्या की खबरें आती रहती हैं।वहाँ नक्सली एवम अन्य अपराधों में लिप्त
युवाओं के हाथों से बंदूक छुड़ाकर छेनी उठाने के लिए प्रेरित करने जैसे कार्यों के लिए अजय कुमार मंडावी को इस माह पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। यहाँ के काष्ठ शिल्पकार अजय मंडावी पहले ऐसे आदिवासी शिल्पकार हैं जिन्हें राष्ट्रपति श्रीमति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।इस आदिवासी कलाकार की सहजता और विनम्रता का अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं कि पद्मश्री सम्मान लेने वे मंच पर चप्पल उतारकर पहुचें।
जब अजय मंडावी अपनी धुन में मगन होकर  हाथों में छेनी उठा लेते है,तब बेजान सी लकड़ियों में भी जैसे जान आ जाती है।लकड़ियों पर घंटो मेहनत कर उन पर शब्दों को उकेरना फिर अलग अलग प्रकार की तख्तियों में उन्हें चिपका कर एक सुंदर कलाकृति का रूप देना आसान काम नहीं।इसमे बड़े धीरज और परिश्रम की आवश्यकता होती है।
इतना ही नहीं उन्होंने जेल में बंद अलग अलग मामलों में बंद 400 से अधिक विचाराधीन कैदियों को जेल में ही निःशुल्क प्रशिक्षण देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया हैं।प्रशिक्षक और मार्गदर्शक अजय कुमार मंडावी ने इन कैदियों को शिक्षा देकर हुनरमंद और आत्मनिर्भर बनाया जिससे उनके जीवन में बदलाव आया और उन्हें जीवन जीने की नई दिशा मिली।उनके मार्गदर्शन में शांता आर्ट्स स्वयं सहायता समूह में शामिल अधिकांश सदस्य अलग अलग समय में नक्सली अपराधों से कटकर काष्ठकला के माध्यम से समाज की मुख्य धारा में जुड़े हैं।इस मंच के माध्यम से  कैदियों के पुर्नवास के लिए
रोजगार के मौके भी उपलब्ध कराये जाते हैं. गुरू शिष्य परंपरा का अनुसरण करते हुए ये सभी अपने अतीत को भूलते हुए दोबारा नई ज़िंदगी की ओर बढ़ रहे हैं।अजय बताते हैं कि एक बार जेल से बाहर आने के बाद वे दुबारा उस दिशा में नहीं गए बल्कि खेती किसानी,छोटे उद्योग या काष्ट शिल्पकला के ज़रिए अपना जीवन चला रहे हैं।वे इन लोगों को समाज में एक अच्छे नागरिक के रूप में गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए तैयार करते हैं।अजय मानते हैं कला एक साधना है ,तपस्या है,जिसका ध्येय केवल पैसा कमाना ही नहीं बल्कि एक अच्छा इंसान बनना भी है।
कांकेर का जिला जेल देश में अपनी तरह का पहला जेल है जिसके नाम से गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकाॅर्ड है। अजय मंडावी के मार्गदर्शन में कुल 9 कैदियों ने दिन-रात मेहनत कर 20 फीट चौड़ी और 40 फीट लंबी लकड़ी की तख्ती पर राष्ट्रीय गीत को काष्ठशिल्प के रूप में उकेरा। 2018 में इस शिल्प को ऐतिहासिक अनुकृति (कल्ट) का दर्जा देते हुए गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकाॅर्ड में नाम दर्ज किया गया।
इससे पहले उनकी काष्ठ कला ने 2007 में लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड भी बनाया।
कलासंग्रह की बात करें तो अजय मंडावी ने लकड़ी पर कलाकारी करते हुए बाईबल, भागवत गीता के अलावा संविधान की प्रस्तावना,राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, छत्तीसगढ़ के राजकीय गीत एवम प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं को भी उकेरने का काम भी उत्कृष्टता से किया है।
    प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक़म में अजय कुमार  मंडावी के कार्यों की सराहना की है।
   कला साधना के साथ साथ अजय मंडावी अपनी कला से प्राप्त कमाई से नक्सल क्षेत्रों में अनाथ व गरीब बच्चों की मदद कर रहे हैं ।इसके अलावा वे पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं ।उनके शोधपत्र विदेशों में भी पढ़े गए।वे “मितान बंधाई ” जैसे छत्तीसगढ़ी लोकसंस्कृति के जरिये लोगों को मैत्री के सूत्र से बांध रहे हैं।जिससे समाज में “वसुधैव कुटुम्बकम” मन्त्र  की तरह सौहार्दपूर्ण माहौल भी धीरे धीरे तैयार होता दिख रहा है।आदिवासी जीवन की अपनी चुनौतियाँ और संघर्ष है।ऐसे में अजय मंडावी जैसे कलाकारो को राज्य सरकार और संस्थाओं से सहयोग और प्रोत्साहन मिलना चाहिए जिससे वे अपने कार्यों को निर्बाध रूप से जारी रख सकें और एक स्वस्थ समाज गढ़ सकें।
Written by XT Correspondent