लेखक डॉ आनंद शर्मा सीनियर आईएएस हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
एक्सपोज़ टुडे।
रविवारीय गपशप
———————
सरकारी नौकरी में एक बात गाँठ बांध कर रख लेना चाहिए कि सब माया कुर्सी की है । हम जो कुछ करते हैं , हमारी नाराज़गी , हमारी प्रसन्नता सब पद से जुड़ी हुई हैं , यानी कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है ।(NATHING PERSONAL ) जो लोग सरकारी काम को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय बना लेते हैं , वे ढेर सारी चिंता तो पालते ही हैं , बहुतेरी दुश्मनी भी पाल लेते हैं ।
राजनांदगाँव के बाद दूसरी पदस्थापना मेरी नरसिंहपुर ज़िले में हुई , जहाँ नर्मदा नदी का आशीर्वाद है और खेती किसानी कमाल की है । नरसिंहपुर में पदस्थापना के वक्त ही प्रदेश में श्री बाबूलाल गौर नगरीय प्रशासन के मंत्री हो चुके थे और अतिक्रमण के विरुद्ध प्रबल इच्छाशक्ति का उनका अभियान आरंभ हो चुका था जिसके कारण लोग उन्हें बुलडोज़र मंत्री कहने लगे थे । नरसिंहपुर में मैं कलेक्ट्रेट की कुछ शाखाओं के साथ नजूल अधिकारी का दायित्व भी देख रहा था । नरसिंहपुर ज़िला मुख्यालय में जिस दिन अतिक्रमण अभियान आरंभ होना था , उस दिन संयोगवश शहर में ना तो कलेक्टर थे और न ही एस.डी.एम. , लिहाज़ा अभियान की कमान पूरी तरह मेरे हाथ ही आ गई । मैंने अपने साथियों के साथ अतिक्रमण के विरुद्ध अभियान प्रारंभ किया और पहले ही दिन निश्चय कर लिया कि अभियान निष्पक्षता से चलेगा । अभियान ज़ोर-शोर से चला और अख़बारों समेत सभी ने इसकी प्रशंसा की । नरसिंहपुर के बाद मेरा तबादला सीहोर हो गया और सीहोर के बाद सागर । सागर से स्थानांतरित होकर मैं उज्जैन पदस्थ हुआ , जहाँ श्री आर.सी. सिन्हा कलेक्टर थे । सिन्हा साहब सीहोर में मेरे कलेक्टर थे और मुझ पर कुछ स्नेह भी रखा करते थे , तो जब उज्जैन पदभार ग्रहण करने के बाद मैं उनसे मिला तो उन्होंने कहा “ देखो आनन्द यहाँ अभी थोड़े दिन पहले ही मैंने कार्यभार वितरण के आदेश किए हैं , और सभी सब-डिवीज़न भरे हुए हैं सो चाहते हुए भी मैं तुमको कहीं का एस.डी.ओ. नहीं बना पाऊँगा , हाँ मैंने तुमको प्रोटोकाल अफ़सर का चार्ज दे देता हूँ , जिसके कारण तुमको वाहन और फ़ोन दोनों की सुविधा तुरंत मिल जाएगी और प्रोटोकाल की ड्यूटी के कारण तुम उज्जैन से पूरी तरह परिचित भी हो लोगे । मैंने तुरंत हामी भर दी , और अगले ही दिन से प्रोटोकॉल की ड्यूटी करने लगा । एक सप्ताह ही बिता होगा कि प्रदेश के खाद्य मंत्री श्री सत्येंद्र पाठक जी के प्रवास की खबर आयी । पाठक जी मेरे गृह नगर कटनी के थे और इस नाते मेरे परिचित भी थे तो मैं दूने उत्साह से उनका स्वागत करने सर्किट हाउस पहुँच गया । मंत्री जी पधारे तो उनके साथ कार की सीट में उनके बग़ल में बैठे हुए एक सज्जन भी उतरे , और उतरते ही मुझे एकटक निहारने लगे । मैंने ज़्यादा ध्यान दिया नहीं और मंत्री जी को रिसीव कर उनके कमरे तक ले गया , कमरे में भी वे मुझे घूरते रहे । हालचाल पूछने की औपचारिकता पूरी होने के बाद मैं विभागीय अधिकारियों को अंदर छोड़ बाहर आकर बरामदे में खड़ा हो गया , तभी वे सज्जन पुनः मेरे समीप आ गए और पास आकर उन्होंने कहा “मैंने आपको कहीं देखा है “। मैंने जवाब दिया कि मुझे आए तो जुम्मा जुम्मा एक हफ़्ता ही हुआ है , तो आप किसी और की मुझसे गफ़लत कर बैठे हो । वो कहने लगे “नहीं , ऐसा नहीं है , मुझे लगता है मैं आपको जानता हूँ , आप पहले कहाँ थे ? “ मैंने कहा इसके पहले मैं सागर था , वे सज्जन कहने लगे “नहीं उसके पहले कहाँ थे ?” मैंने कहा उसके पहले मैं सीहोर में एस.डी.एम. था । उन्होंने फिर इंकार में सर हिलाया और बोले क्या आप नरसिंहपुर भी रहे हो ? मैंने कहा हाँ सीहोर के पहले मैं नरसिंहपुर में ही नजूल अफ़सर था पर ये तो बड़ी पुरानी बात है । वे महानुभाव बोले “हाँ वही तो मैं याद कर रहा था । मेरी नरसिंहपुर में मेन रोड पर दाल मिल है , अतिक्रमण अभियान के दौरान उसकी बाउंड्री वाल आप तोड़ने आए थे , और जब नगर पालिका के मज़दूरों से वो टूट नहीं रही थी तब आप जे.सी.बी. मशीन लेकर आये थे और अपने सामने खड़े होकर अपने सामने वो चहार दिवारी तुड़वायी थी । मैंने मन ही मन सोचा “ यार ये क्या पंगा है यहाँ तो आते ही बवाल होने लगा “ । मैंने उस बंदे से कहा “ देखो भाई वो मेरा काम था , सो मैंने किया , कोई व्यक्तिगत दुर्भावना रही होती तो मुझे तुम याद रहते “ । मेरी बात सुनकर मंत्री जी का वह मित्र भी हँसने लगा , और बोला आप सही कह रहे हो , और मुझसे हाथ मिला कर वह सामने मंत्री जी के कक्ष में घुस गया ।