झाबुआ। झाबुआ विधानसभा उपचुनाव के लिए भले ही अभी तारीखों का ऐलान न हुआ हो लेकिन कांग्रेस और भाजपा ने इस उपचुनाव के लिए अपनी-अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। झाबुआ विधानसभा उपचुनाव कौन जीतेगा क्या यहां पर कांग्रेस की कमलनाथ सरकार अपने नौ महीने के परफॉरमेंस को लेकर जनता का दिल जीत पाएगी यह सबसे बड़ा सवाल है। इसके अलावा जिस प्रकार लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने यहां पर संसदीय सीट को जीता क्या अब पीएम मोदी की लोकप्रियता का फायदा यहां पर भाजपा को मिल पाएगा। यह सवाल यहां के राजनीतिक पारे को गर्म किए हुए है।
आदिवासी बाहुल्य विधानसभा में होने वाला यह उपचुनाव दोनों ही दलों के लिए इतना आसान नहीं है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां पर भाजपा के जीएस डामोर जीते लेकिन वह कांग्रेस की आपसी फूट का फायदा उठाने में कामयाब रहे थे। भाजपा के जीएस डामोर ने कांग्रेस के विक्रांत भूरिया को हराया था। यहां पर त्रिकोणीय मुकाबले के कारण भाजपा को फायदा मिला। लेकिन अब मुकाबला आमने-सामने का होगा। यहां पर होने वाले उपचुनाव को लेकर पिछले कुछ दिनों से सियासी पारा गर्म है। सीएम कमलनाथ सहित कई मंत्री यहां पर अपने दौरे कर चुके हैं। अभी हाल ही में आदिवासी दिवस के मौके पर यहां पर कई कार्यक्रम हुए इसके अलावा जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने यहां का दौरा कर पार्टी की रणनीति को लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं से बात की। वहीं दूसरी ओर भाजपा ने भी अपनी चुनावी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के दौरे यहां पर हो चुके हैं। क्षेत्र के आसपास के सांसद व विधायकों को पार्टी ने चुनावी रणनीति के तहत दायित्व सौंपे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस और भाजपा ने अपनी-अपनी रणनीति अनुसार यहां पर काम शुरू कर दिया है।
कमलनाथ सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी
झाबुआ उपचुनाव कमलनाथ सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी है। कारण यह है कि इस उपचुनाव के परिणाम से ही यह तय होगा कि इस सरकार का भविष्य क्या है। कांग्रेस में पीसीसी चीफ को लेकर चल रहे घमासान के बीच पार्टी की अंदरूनी कलह सामने आई। दिग्गी गुट और सिंघिया खेमे के नेताओं की बयानबाजी से पार्टी की एकता को झटका लगा। ऐसे में झाबुआ उपचुनाव में इस गुटबाजी से पार्टी दूर रह पाएगी। इसलिए उपचुनाव में जीत व हार का असर कमलनाथ सरकार पर पड़ेगा। इसके अलावा विधानसभा में दलीय स्थिति को लेकर इस उपचुनाव के रिजल्ट प्रभावित करेंगे। सपा व बसपा के समर्थन से चल रही कमलनाथ सरकार इस उपचुनाव को जीत लेती है तो उसके विधायकों की संख्या 115 हो जाएगी। वहीं भाजपा भी चाहेगी कि यह उपचुनाव जीतकर अपने विधायकों की संख्या बढ़ाई जाए।
भाजपा व कांग्रेस में कई नाम चर्चा में
उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस में टिकट को लेकर कई नाम चर्चा में है। भाजपा से वर्ष 2018 में चुनाव जीते जीएस डामोर सांसद बन चुके हैं और वह यहां पर अपनी पत्नि या किसी परिजन को टिकट दिलाने के लिए प्रयासरत हैं। भाजपा से ही पूर्व विधायक शांतिलाल बिलवाल, भानु भूरिया, मेघजी अमलियार, कल्याण सिंह डामोर, मनोज अरोरा के नाम टिकट की दौड़ में है। कांग्रेस से विक्रांत भूरिया, जेवियर मेडा, विनय भाभर, हेमचंद डामोर के नाम चर्चा में हैं।
जयस की रहेगी मेन भूमिका
इस उपचुनाव में जयस की भी मुख्य भूमिका रहने वाली है। जयस चुनाव लड़ेगी कि नहीं यह अभी तय नहीं हुआ है। जयस के दो संगठन बन चुके हैं। मतलब एक संगठन के दो फाड़।।। एक डॉ हीरालाल अलावा तो दूसरा संगठन जयस का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं। हीरालाल अलावा के संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबू सिंह डामोर ने बताया कि बैठक के बाद ही यह तय होगा कि हमें चुनाव लड़ना है या नहीं।
इस क्षेत्र के मुख्य मुद्दे जो चुनाव में छाए रहेंगे
1 – यहां पर मुख्य मुद्दा पलायन का है,12 महीने रोजगार नहीं।
2- गर्मी के समय जल संकट है, पीने का पानी न मिलना समस्या।
3- ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल।
4- शिक्षा क्षेत्र में भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव।
5-किसान ऋण माफी का लाभ पूरी तरह से किसानों को नहीं मिला। बैंक लगातार नोटिस जारी कर रहे।
6- झाबुआ विधानसभा के कई ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बिजली उपलब्ध नहीं।m