September 23, 2024

कर्म चक्र का मॉडल भारतीय दर्शन से सीखें संगठन में कैसे हो समग्र प्रगति।

लेखिका डॉ. अनन्या मिश्र, आईआईएम इंदौर में मैनेजर कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन एंड मीडिया रिलेशन के पद पर हैं।

 

एक्सपोज़ टुडे।

मैं पिछले कुछ वर्षों से भारत के शीर्ष प्रबंधन संस्थानों में से एक में कार्यरत हूँ प्रबंधन विशेषज्ञों के साथ न सिर्फ काम किया, अपितु उन युवा प्रबंधकों की सोच को भी समझा जो कॉर्पोरेट में काम करने के लिए अपने कौशल का विकास कर रहे हैं मैंने यह जाना कि कर्म (कार्य) जीवन का सार्वभौमिक नियम है। हमारा सर्वस्व, प्रत्येक क्षण, प्रत्येक श्वास भी कर्म पर ही निर्भर है। ज़ाहिर है, हम जो कार्य करते हैं वह भी इसी कर्म पर आधारित है अतः किसी भी संगठनकॉर्पोरेट या अन्य संस्थान में काम करने वाले भी समस्त जन कर्म करते हैं, फिर बात चाहे सीईओ की होअधिकारियों की या अन्य कर्मचारियों की निस्संदेह, इनके कार्य की प्रकृति में भिन्नता स्वाभाविक है। किन्तु समानता यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्यचक्र में सुखोंकष्टों और दुविधाओं का सामना करना पड़ता है यह अटल है

भारतीय दर्शन हमें हमारे करियर में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक कर्मचक्रों को अनुकूलित करने में मदद करने के लिए एक मॉडल प्रदान करता है। यह हमें सचेत रूप से कर्म को समझने में मदद करता है ये पांच चरण हैं विस्तृत कर्म यानि अभ्याससंकल्पना अर्थात ज्ञान, निरीक्षण अर्थात मूल पर ध्यान देनापरित्याग अर्थात निवृति और स्वीकृति अर्थात शांतिआइए, समझते हैं कि ये पांच चरण का मॉडल हमें क्या सिखाता है: 

विस्तृत कर्म (अभ्यासम्): हम सफल तभी होते हैं जब हम स्वयं पहल करें और नए विचार प्रस्तुत करें इसके लिए आवश्यक है कि हम हमारेकौशल का निरंतर अभ्यास करें चूँकि हर व्यक्ति का कर्म चक्र भिन्न होता है, अतः उनकी विशेषताएं भी अलग होंगी इन्हें आपका अनन्य गुण बनाने के लिए अपने वरिष्ठों और मार्गदर्शकों से सलाह लें उनके अनुभवों से सीखें यहाँ ज़रूरी है कि हम किसी पर पूर्णतः निर्भर होने के बजाए स्वयं भी अपनी रचनात्मकता विकसित करें और जोखिम उठाने का साहसनिर्मित करें कुछ त्रुटियाँ करें और उन असफलताओं से सीखें

संकल्पना (ज्ञानम): कर्म हमारे जीवन को व्यस्त बनाता है किन्तु समय-समय पर आत्मनिरीक्षण और संकल्पना करने के लिए समय निकालने से आप तय कर पाएँगे कि आप करियर चक्र के किस स्तर तक पहुंचे हैं और जहाँ आप पहुंचना चाहते हैं, उससे कितनी दूर हैं अतः संचित कार्य से अर्जित अनुभव के ज़रिए अपने मूल्य प्रतिबिंबित करें। अपनी सफलताओं और असफलताओं के कारणप्रक्रियाएंपरिणामों का विश्लेषण करें नए लोगों से विचार-विमर्श करें और अध्ययन करते रहेंइससे न सिर्फ आप कुछ नया सीख सकेंगे, अपितु भिन्नता को स्वीकार करने की कला में भी पारंगत होंगे

निरीक्षण (ध्यानम्): कई बार प्रबंधकीय स्तर पर निर्णय लेना और उससे उत्पन्न होने वाले जोखिमों को समझ कर उनका समाधान खोजना भी आवश्यक होता है ऐसे में पूर्वानुमान और वैकल्पिक अनुभवों से सहायता मिल सकती है कोई भी निर्णय लेने से पूर्व अपने मन का निरीक्षण करें उस विशेष निर्णय से सम्बंधित उत्तेजनाओंभावों, और निराशा और आशाओं का आंकलन करें दूरदर्शिता से आप स्पष्ट रूप से अपने निर्णय का महत्त्व और मूल्य समझ सकेंगे प्रतिभाओं की पहचान करने और उनके विचार सुन कर आप स्थितियों के प्रति एक नया दृष्टिकोण भी प्राप्त कर सकेंगे और संगठन के समग्र विकास पर ध्यान केन्द्रित कर सकेंगे

निवृति (त्याग): यह तय है कि आप कोई भी कार्य इस उद्देश्य से पूरा करते हैं कि उसका परिणाम सकारात्मक हो  फिर चाहे यह धन से सम्बंधित हो या पद से या लोकप्रियता अर्जित करने के उद्देश्य से जबकि आपके पास अपने वैध पुरस्कार प्राप्त करने की और मान्यता पाने के मापदंड हो सकते हैंवहीं मात्र कर्म करना भी अपने आप में एक सफलता है बिना फल की प्राप्ति की अपेक्षा से किए गए कार्य के पूर्ण होने पर आप अधिक संतुष्टि महसूस करेंगे कर्म मात्र अपने संगठन और उसके हितधारकों की समग्र प्रगति पर लक्षित करेंगे तो आपका विकास स्वतः ही होगा हो सकता है यह आसक्ति आपको कष्ट दे, किन्तु निश्चित है कि इसका फल आपको प्रसन्नता देगा

स्वीकृति (शांति): जीवन में कुछ भी चिरस्थायी नहीं है, किन्तु जब आप खुले मन-मस्तिष्क और हृदय से सभी के विचार, सभी स्थितियां स्वीकारने लगेंगे, तो आप शांति महसूस करेंगे अपने अधीनस्थों को उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई दें, उनके प्रदर्शन पर गर्व व्यक्त करें, कृतज्ञता की अपेक्षा भी न करें। इससे आप संसथान में सकारात्मक संस्कृति का निर्माण कर सकेंगे

उपरोक्त मॉडल को विशुद्ध रूप से परोपकारीनैतिक निषेधाज्ञा के रूप में नहींबल्कि व्यक्ति के प्रबुद्ध स्वार्थ के रूप में भी पेश किया जाता है। यह उसके विकास को सुगम बनाता हैऔर संगठन को सुदृढ़ भी बनाता है।

Written by XT Correspondent