हसदेव अरण्य। हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉको का आवंटन और प्रस्तावित कोल ब्लॉकों से पेड़ों की कटाई के विरोध में अरण्य बचाओ संघर्ष समिति का आंदोलन 19वें दिन भी जारी हैं। शनिवार को आंदोलन को समर्थन देने के लिए दलित आदिवासी मंच, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन सहित कई संगठनों के नेता पहुंचे।
धरने को संबोधित करते हुए गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन के मनोज ने कहा कि समता जजमेंट के अनुसार कोई भी कंपनी यहां तक कि सरकार भी जमीन नहीं ले सकती। फिर अडानी कंपनी को बिना ग्रामसभा सहमति के आदिवासियों की जमीन कैसे दी जा रही है?
वहीँ दलित आदिवासी मंच की राजिम तांडी ने कहा कि छत्तीसगढ़ का गठन यहां के मजूदर, किसान, आदिवासी, दलितों के संवैधानिक अधिकारों को संरक्षण देने के लिए हुआ है। राज्य सरकार का दायित्व हैं कि वह आदिवासियों के जीवन जीने के आधार जंगल-जमीन पर समुदाय के अधिकारों को बरकार रखे लेकिन अपने दायित्व का निर्वाहन करने की बजाए चंद कारपोरेट के मुनाफे के लिए उनसे छीनने के लिए तत्पर हैं। इससे बड़ी दुखद स्थिति और क्या हो सकती है कि जंगल जमीन को बचाने आदिवासियों को संघर्ष करना पड़ रहा हैं।
कोयला श्रमिक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष कामरेड लल्लन सोनी ने कहा कि हम आपके आंदोलन को समर्थन देने आए हैं। मैं स्वयं एसइसीएल में कार्यरत हूँ उसके बाद भी आपसे ये कहूंगा कि ये जंगल जमीन बचनी चाहिए। आपका संघर्ष सिर्फ हसदेव के इन जंगलो को बचाने नही बल्कि छत्तीसगढ़ को बचाने का आंदोलन हैं।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि पीढ़ियों से जो जंगल जमीन आदिवासियों की आजीविका के पोषक रहे हैं उसे चंद रुपयों के मुआवजे से सरकार छीनना चाहती हैं। मोदी की सरकार की नीतियां सिर्फ चंद पूंजीपतियों के लिए हैं। कारपोरेट का लाखो करोड़ का कर्जा माफ कर दिया, रियायते दे दी लेकिन छत्तीसगढ़ के किसानों का धान खरीदने तैयार नही हैं।
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर सिंह अर्मो ने कहा कि आज देश का 21 प्रतिशत कोयला छत्तीसगढ़ से जा रहा हैं। यदि 20 गांव को उजड़ने से बचाने, समृद्ध वन संपदा और जैवविविधता को बचाने, बांगो बैराज और उससे 4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होने वाली सिंचाई को बचाने, असंख्य जीव जन्तुओ और हाथी के आवास क्षेत्र को बचाने, छत्तीसगढ़ के पर्यावरण को बचाने यदि कुछ लाख टन कोयला नही निकलेंगे तो देश क्या देश का विकास रुक जाएगा। सवाल विकास का नही हैं बल्कि नियत का हैं और कारपोरेट के मुनाफे के सामने ये सरकारो को ये विनाश दिखना बंद हो गया हैं।