November 22, 2024

नई शिक्षा नीति: विसंगतियाँ, चिंतन एवं विश्लेषण।

शोधकर्ता एवं लेखिका डॉ. रीता जैन चोइथराम कॉलेज इंदौर की प्रिंसिपल हैं।

एक्सपोज़ टुडे।

जैसा कि जीवन में बदलाव आवश्यक है वैसे ही शिक्षा में भी बदलाव आवश्यक है ।और इसी सोच के साथ लगभग तीन दशक बाद भारतीय शिक्षा में बदलाव हुए । लेकिन इसे लागू करने के पूर्व सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव का विश्लेषण करना आवश्यक था। क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम कितने सार्थक होंगे और इसके नकारात्मक प्रभाव एवं विसंगतियाँ किस तरह परिलक्षित होंगी, यह सभी के लिए चिंतनीय विषय है।
यद्यपि नवीन शिक्षा पद्धति को स्किल एवं रोजगार आधारित बनाने के लिए बहुत अच्छे प्रयास किए गए है बावजूद इसमें कई विसंगतियाँ देखने को मिलने लगी है। जिसके दूरगामी परिणाम विद्यार्थी वर्ग को लाभाविन्त नहीं करेगें। नवीन शिक्षा पद्धति सत्र 2021-22 स्नातक प्रथम वर्ष के विभिन्न संकायों जैसे विज्ञान संकाय, वाणिज्य संकाय, कला संकाय इत्यादि के नवीन पाठ्यक्रमों को निम्न स्तरों पर जैसे मुख्य विषय (मेजर पाठ्यक्रम), गौण विषय (माइनर पाठ्यक्रम) और वैकल्पिक विषय (ओपन इलेक्टिव) विषय के रूप में विभाजित किया है। इसके तहत स्नातक स्तर पर एक मेजर विषय जो कि उसका मुख्य विषय होगा और जिसमें उसके उच्च स्तर का ध्यान भी रखा गया है किंतु इसके अतिरिक्त अन्य दो विषय को माइनर तथा ओपन इलेक्टिव कर दिया गया है जिसके कारण विद्यार्थी धीरे-धीरे उन विषयों को न्यूनतम मानकर उन पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएँगें।
पुरानी शिक्षा पद्धति में स्नातक स्तर पर बी.एस.सी में बॉयोलाजी समुह में (बाटनी-जुलाजी-केमस्ट्री) का काम्बिनेशन होता था या (बायोटे-जुलाजी/बॉटनी-केमस्ट्री) या (माइक्रोबायोलाजी – जुलाजी / बॉटनी – केमस्ट्री) इसी तरह मैथ्स समूह में (मैथ्स – फिजिक्स – केमस्ट्री) या (कम्प्यूटर सांइस – मैथ्स – केमस्ट्री) का काम्बिनेषन होता था और ये सभी मुख्य विषय के रूप में ही पढ़े जाते थे अतएव विद्यार्थियों को इन विषयों का अच्छा ज्ञान हो जाता था और वो इनमें से किसी एक विषय को लेकर भविष्य में स्नात्तकोत्तर तथा पी.एच.डी. करता था परंतु नई शिक्षा पद्धति में एक मुख्य विषय और अन्य माइनर और ओपन विषय होने के कारण वह भविष्य में इन विषयों से स्नात्तकोत्तर और पी.एच.डी. इत्यादि की शिक्षा नहीं ले पाएँगें, साथ ही बारहवीं कक्षा के बाद विद्यार्थियों को इतना ज्ञान नहीं होता है कि वह यह समझ सके कि उसे किसे मुख्य विषय के रूप में और किसे माइनर और ओपन विषय के रूप में चुनना है। पुरानी शिक्षा पद्धति में विद्यार्थियों के पास ये एक तरीका था कि वह अपने तीनों मुख्य विषयों में से किसी भी एक विषय के साथ ( जिसमें वह अच्छी समझ और ज्ञान रखता था।) स्नात्तकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर सकता था।
आज विद्यार्थियों के पास इन विषयों का माइनर या ओपन के रूप में लेने का विकल्प होने के कारण इन विषयों की महत्ता अपने आप में घट गई है और आने वाले समय में भी महाविद्यालय द्वारा अपने विद्यार्थियों के इन कठिन विषयों में रूझान ना होने के कारण इन विषयों के शिक्षकों को नियमित न रखकर विजिटिंग या अतिथि शिक्षकों के रूप में ही काम करवाया जाएगा। फलतः इन विषयों के प्राध्यापक जो कई वर्षों से कठिन परिश्रम कर इन विषयों को पढ़ा रहे हैं और इतनी उच्चशिक्षा लेकर नेट परीक्षा एवं पी.एच.डी. करने के बाद भी भविष्य में बेरोजगार होने की कगार पर आ जाएगें और धीरे-धीरे ज्ञान का विस्तार करने वाले ये विषय और इसको पढ़ाने वाले शिक्षक दोनों ही महत्त्वहीन हो जाएंगें। माना कि विषय कठिन है पर इसके वैकल्पिक हो जाने के कारण विद्यार्थी परीक्षा में अच्छे परिणाम लाने के लिए इन्हें माइनर, ओपन या इनके स्थान पर किसी और कॉम्बिनेशन को लेंगे और इन विषयों के साथ उनका भविष्य भी काल के गर्त में खो जाएगा जो कि अत्यंत अक्षम्य पूर्ण होगा। अतएव यह सभी के लिए विचारणीय है कि नवीन शिक्षा नीति कितनी सार्थक है और भविष्य में किस तरह उपयोगी साबित होगी। इस पर पुर्नविचार किया जाना आवश्यक एवं चिंतनीय विषय है।

डॉ. रीता जैन (षोधकर्ता एवं लेखिका)
प्राचार्य, चोइथराम महाविद्यालय, इंदौर

डॉ. प्रकाष गुप्ता
सहा. प्राध्यापक (बॉयोटेक्नालाजी)
चोइथराम महाविद्यालय, इंदौर

Written by XT Correspondent