बड़वानी। उन गाँवों में कोई बीमार पड़ जाए तो उन्हें अस्पताल तक लाने के लिए कड़ी मशक्कत करना पड़ती है। यहाँ से कई मील पैदल चलकर ऊबड़ खाबड़ पहाड़ी रास्तों पर चादर या धोती की झोली में चार लोगों को कंधे पर उठाकर लाना पड़ता है।
मप्र के बड़वानी के सीमावर्ती पहाड़ों में रहने वाले हजारों आदिवासी आज भी आदिम युग में भगवान भरोसे जीने को मज़बूर हैं। ये लोग झोली में डालकर गंभीर मरीजों को लेकर आते हैं। इससे सरकार के विकास के खोखले दावों की पोल साफ़ उजागर होती है। इन गाँवों के फलिया तक जाने के लिए कोई रास्ता तक नहीं है। इस हिस्से में अब तक बिजली भी नहीं पहुंच पाई है।
इस आदिवासी बहुल जिले के आदिवासी इलाके में आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहाँ न तो सड़केँ हैं न बिजलीऔर न ही पीने का साफ़ पानी नसीब हो पाता है।
पहाड़ के लोगों के लिए जीवन किसी संघर्ष से कम नहीं है।
सुदूर पहाड़ पर बसे भंवरगढ़ ग्राम के अमलिया पानी फलिये में 20 से 25 परिवार रहते हैं, लेकिन यहाँ तक जाने का कोई कच्चा रास्ता तक नहीं है। आज भी इस गांव के लोग गंभीर बीमार और गर्भवती महिला को एंबुलेंस की जगह झोली में लादकर करीब 4 किलोमीटर बिजासन तक लेकर आते हैं। फिर वहां से किसी वाहन के ज़रिए हॉस्पिटल ले जाते हैं। ऐसे में कई बार मरीजों की मौत भी हो चुकी है। बारिश के दिनों में और रात के समय तो मरीजों को लाने में और भी दिक्कतें होती है।
यहाँ तक कि इस गांव के हिस्से अब तक उजाला भी नहीं आ सका है। यहां शाम को बिजली के बल्ब से नहीं, चिमनीयों से उजाला होता है। गांव वाले कहते हैं कि पीढ़ियां गुजर गई हमने बिजली नहीं देखी तक नहीं। गांव की महिलाएं कहती है बिजली नहीं होने से जानवरों और साँप -बिच्छु का डर भी बना रहता है। गांव के लोगों को स्वच्छ पीने का पानी तक भी मयस्सर नहीं।
स्थानीय रहवासी रामदास का कहना है कि योजनाओं के नाम पर उनसे सरपंच पुत्र ने रिश्वत ली।यहां लगने वाला प्राइमरी स्कूल भी कभी नियमित नहीं लगता। ऐसे में इनके लिए सरकारों का हर वादा झूठा और नाकाफी साबित हो रहे हैं।
सेंधवा तहसीलदार एसआर यादव बताते हैं कि वन ग्राम होने से कुछ दिक्कतें हो सकती है। हम पंचायत या अन्य माध्यम से जानकारी लेकर सड़क बनाने का प्रयास करेंगे