January 29, 2025

राम से बड़ा राम का नाम।

लेखिका रुचि दीक्षित काशिव भोपाल की फ्रीलांस पत्रकार/कला समीक्षक हैं।

 

एक्सपोज़ टुडे।

वर्ष 2021 कार्तिक मास की शुरुआत और हल्की-हल्की ठंड के बीच मेरा वृंदावन जाना हुआ। यूं भी मैं ‘उनके’ बिना ज्यादा दिन नहीं रह पाती हूँ। उनकी कृपा ही कहेंगे कि इस बार दो-पांच दिनों के लिए नहीं, बल्कि पूरे 20 दिनों तक वृंदावन वास का अवसर मिला। सभी प्रमुख मंदिरों के जी भर के दर्शन किए।  इसी बीच ख्याल आया कि वृंदावन के परिक्रमा मार्ग में एक आश्रम है ‘ भक्ति आश्रम’, क्यों न वहां जाकर परम पूज्य देवादास जी महाराज जी के भी दर्शनों का लाभ लिया जाए।

दरअसल, मैं पिछले दो साल से यूट्यूब के माध्यम से महाराज जी द्वारा सुनाई जा रही भक्त चरितवाली सुन रही थी। तभी से एक तरह का लगाव उनके प्रति हो गया था। इसके पूर्व भी जब मेरा वृंदावन आना हुआ था, तब भी प्रयास किया था कि महाराज जी से भेंट हो जाए लेकिन किन्ही कारणों से ऐसा नहीं हो पाया।
शाम का समय था मैं वृंदावन परिक्रमा मार्ग में ही एक आश्रम में रुकी हुई थी। अचानक एक दिन किसी तरह से पता पूछते पूछते वृंदावन की कुंज गलियों से होती हुई आखिर भक्ति आश्रम तक पहुंच ही गई।  सामान्य से दिखने वाले दरवाजों से अंदर गई। कुछ कदम चलते ही दाईं ओर छोटा सा रसोई घर था। बाईं ओर सत्संग भवन, जहाँ रसिक ठाकुर और रासेश्वरी का मंदिर है। साथ ही  भवन में हनुमानजी, मां दुर्गा, मीरा बाई, देवऋषि नारद आदि के विग्रह भी हैं। यहां पर गुरुजी (देवादास जी महाराज) सत्संग करते हैं और भक्तों से विभिन्न विषयों पर चर्चा करते है।
नीचे रसोई घर से लगे तीन कमरे हैं, थोड़ा सा ही आगे चलकर महाराज जी का छोटा सा कक्ष है, जिसमें एक पलंग है। एक टेबल है और बहुत सारे ग्रंथ रखे हुए हैं। आश्रम में भक्तों और शिष्यों के लिए ऊपर वाले फ्लोर पर कुछ कमरे बने हुए हैं। जहां वृंदावन आने वाले भक्त ठहर सकते हैं।
सबसे खास बात यह है के ऊपर वाले फ़्लोर पर बीचों बीच ‘राम नाम बैंक’ बना हुआ है। यहां पर करोड़ों की संख्या में राम नाम का खजाना भरा  हुआ है। आश्रम आने वाले भक्त इस खजाने का दर्शनलाभ लिए बिना लौटते नहीं हैं। मुझे भी आश्रम पहुंचकर असीम शांति का अनुभव हो रहा था। मैं न जाने…  किसी से बिना कुछ पूछे सीधे महाराज जी के कक्ष में चली गई। वे उस समय भोजन कर रहे थे, उन्होंने मुझे देखते ही एक ओर इशारा करते हुए कहा, अरे तू आ गई। आ – आ बैठ बता …कैसे आना हुआ… उनके मुखारविंद से ये शब्द सुनकर मैं भीतर तक आनंदित हो गई। मैंने उन्हें प्रणाम किया और उनकी बताई जगह पर बैठ गई।
उन्होंने मुझसे बड़े प्रेम से पूछा, बेटी कहां से आई है तू और यहां कैसे आना हुआ। मैंने उन्हें बताया कि मैं पिछले दो साल से भक्त चरितवाली सुन रही थी, तभी से मेरा मन था कि आपके दर्शन करूँ। भक्त चरितवाली सुनने वाली बात जानकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई थी। फिर उन्होंने कहा, तू सत्संग भवन में चल, मैं वहीं आता हुँ। इसके बाद मैं सत्संग भवन में उनका इंतजार करने लगी। कुछ देर में महाराज जी और आश्रम के अन्य सदस्य भी आ गए। हमने संध्या आरती की और महाराज जी के सानिध्य में भगवत चर्चा की। बहुत आंनद आया, सभी बहुत प्रसन्न थे। रात के आठ बजे चुके थे, मैंने अगले दिन फिर आने का मन बनाते हुए लौटने का निर्णय किया। भक्ति आश्रम से रिक्शा करने के लिए लगभग एक किलोमीटर चल कर आना पड़ता है। इसलिए उन्होंने मुझे सुबह के समय आने के लिए कहा। इसके बाद मैं सभी को प्रणाम कर के लौट आई। मन में अलग तरह की प्रसन्नता व शांति के भाव थे।
अगले दिन मैं सुबह उत्साह के साथ जल्दी ही भक्ति आश्रम के लिए निकल गई। गुरुजी से मिलने का समय सुबह आठ बजे से 10 बजे तक का है, जब वे अपने शिष्यों और आश्रम आने वाले भक्तों से चर्चा करते हैं। मैं और अन्य भक्त सत्संग भवन में गुरुजी की प्रतीक्षा कर रहे थे। रसिक ठाकुर और रासेश्वरी की आरती व प्रदक्षिणा के बाद हम सभी ऊपर बने ‘राम नाम बैंक’ पहुंचे। गुरुजी के साथ सभी ने बैंक की प्रदक्षिणा की ‘ नाम महाराज’ को प्रणाम किया और सत्संग भवन में लौट आये। प्रदक्षिणा के दौरान मेरे मन मे कुछ सवाल थे लेकिन मैंने बिना कुछ कहे गुरुजी का अनुसरण किया।
सत्संग भवन में आये भक्तों में से एक माता जी श्रीकृष्ण से जुड़ा अपना एक अनुभव साझा कर रही थीं। हम सभी बड़े गौर से उनका अद्भुत अनुभव सुनकर प्रसन्न हो रहे थे। उन माता जी ने गुरुजी से गुरुदीक्षा की बात कही,
माता जी की बात का उत्तर देते हुए गुरुजी ने उन्हें कहा ‘ बेटी तेरी दीक्षा तो हो गई है स्वयं राधेश्याम की सखी ने की है तेरी दीक्षा। वे बहुत प्रसन्न हुई … साथ ही हम सभी उपस्थित जन भी यह जानकर प्रसन्न हुए। गुरुजी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, कभी कभी हम स्थिति को घटनाओं को समझ नहीं पाते हैं जैसे राम से बड़ा राम का नाम होता है। जब ये आश्रम बनाने की तैयारी चल रही थी तब ही ये तय हो गया था के राम नाम बैंक ऊपर बनेगा और रसिक ठाकुर और रासेश्वरी का मंदिर नीचे बनाया जाएगा। अब लोगों को राम नाम बैंक की प्रदक्षिणा देते समय ऐसा लगता है कि हम जहां प्रदक्षिणा दे रहे हैं उसके नीचे मंदिर है। लेकिन ऐसा नहीं है, रसिक ठाकुर और राम में कोई अंतर नहीं है इसलिए नामी से बड़ा हुआ नाम। यही कारण है कि नाम महाराज को हमने ससम्मान ऊपर विराजमान किया है।
उनकी ये बात सुनकर मैं हतप्रभ सी रह गई क्योंकि मुझे अपने प्रश्नों का उत्तर मिल गए, वे प्रश्न जो राम नाम बैंक की प्रदक्षिणा देते हुए मेरे मन में आये थे। मैंने गुरुजी की ओर देखा तो वे मुस्करा रहे थे जैसे वे भी कह रहे हों ‘ शंका का समाधान हुआ?’। इसके बाद उन्होंने कई विषयों पर चर्चा की लेकिन मेरा मन इसी घटना के आसपास ही घूमता रहा। मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती, मेरे मन में वो स्मृतियां आज भी वैसी की वैसी बनी हुई हैं।
गुरु चरणों में मेरा बारंबार प्रणाम…
राधे राधे, राधे राधे
जय माई की
Written by XT Correspondent