September 23, 2024

“गुस्से में लाल या शांति में सफेद”

लेखक अगम जैन आईपीएस हैं, वे मध्यप्रदेश के राज्यपाल के परिसहाय (एडिसी टू गवर्नर) हैं।
एक्सपोज़ टुडे। 
मेरे एक मित्र एक बार अपनी पत्नी का गुस्सा शांत कराने के लिए बहुत क्रोधित हुए। आंखें टमाटर की सी लाल हुईं, नाक और मुंह से मेहनत करते बैल का सा झाग निकला और शरीर ठिठुरती ठंड की सोहबत भांति थरथराता रहा ताकि सामने वाला शांत रह सके। लेकिन सामने वाला भी उतनी ही ऊर्जा से क्रोधित हुआ ताकि क्रोध शांत कराने के लिए क्रोधित हुए व्यक्ति का क्रोध शांत करा जा सके।
बहरहाल, क्रोध उर्फ गुस्से की कहानी ही कुछ ऐसी है। क्रोधित कोई भी व्यक्ति हो सकता है लेकिन क्रोधित दिखना हर किसी के बस की बात नहीं है। उसमें दम लगता है। बॉस पर गुस्सा आता तो है लेकिन दिखाने में नौकरी शहीद हो जाती है। घर के बड़े बूढ़ों पर नाराजगी हो सकती है लेकिन जताई नहीं जा सकती। ऐसे में जो व्यक्ति क्रोध दिखा सकता है इसका मतलब वह व्यक्ति स्थापित है, समाज में उसकी धाक है, वीर है। लेकिन इसके आगे भी एक पायदान है।  क्रोधित होने और दिखने से भी अधिक वीरता क्रोध मिटा देने में है।
 महात्मा गांधी के तीन गुरुओं में से एक राजचंद्र जी ने तो यहां तक भावना व्यक्त की है कि घोर परेशानी (उपसर्ग) उत्पन्न करने वाले के प्रति भी क्रोध उत्पन्न ना हो, मैं ऐसी दशा प्राप्त करना चाहता हूं।
सतही तौर पर ये कितना अप्राकृतिक लगता है। सामने वाला हमसे गाली गलौच करता रहे और हम बैठकर झुनझुने की तान साधते रहें? लेकिन इसे गहराई से सोचना आवश्यक है।
एक छोटी सी कहानी प्रचलित है गौतम बुद्ध के नाम से।  कहते हैं कि एक बार गौतम बुद्ध को एक गांव के वासियों ने ढेर सारी गालियां दीं।  बुद्ध शांत रहे। बाद में उनके शिष्य ने पूछा कि महाराज, ये क्या बात हुई? बुद्ध ने जवाब में एक प्रश्न पूछा कि यदि कोई हमें उपहार दे और हम ना लें तो वह किसके पास रह जायेगा?
 उपहार देने वाले के पास। कितनी सरल बात है, शिष्य ने सोचा।
तो फिर जब मैंने गालियां ली ही नहीं तो वो कहां रह गईं! बुद्ध ने समाधान किया।
कितना सरल है गालियां ना लेना, लेकिन कितना कठिन भी है। चाहें तो सरल, चाहें तो कठिन।
ये उपहार टालना ही तो क्षमा है। निश्चिंत होकर दुनियादारी से अप्रभावी बने रहना ही तो क्षमा है। किसी भी परिस्थिति में साम्यभाव से अपने दोषों का निराकरण करना ही तो क्षमा है। सबसे हाथ जोड़ जोड़ कर माफी मांगना और माफ करना तो क्षमा का बेहद स्थूल प्रकार है। सूक्ष्मता तो इसमें है कि माफी मांगने और माफ करने की नौबत ही उपस्थित ना हो।
क्रोध का एक प्रकार आत्मदाह भी है। इतना निविड़ गुस्सा कि खुद को भी खा जाए। ऐसे में एक माफी तो अपने आप से भी बनती है। हमने स्वयं से ज्यादा किसका दिल दुखाया होगा!
क्यों ना हम गहरी सांस लेकर कुछ देर को ठहर जाएं। होने दें जो हो रहा है — लोग बुरा बोलें या भला, गाली दें या माला, शमशान मिले या महल, कंचन हो या कांच, बस निश्चिंत रहें। बस मुस्कुराते रहें। बस, वही तो क्षमा है। बस वही तो है जिससे क्रोध ऑल आउट हो जाता है।
Written by XT Correspondent