कवर्धा। यह ख़बर आपको चौंका सकती है। जिस खीरा को आप और हम भोजन में सलाद की तरह इस्तेमाल करते हैं, वही खीरा ककड़ी आदिवासी समाज में खाद्य सुरक्षा की बड़ी स्रोत है। वे इसे सूखाकर कई दिनों तक के लिए सहेज लेते हैं और बाद में इसकी कढ़ी बनाकर खाते हैं। बेचने के बाद बचे हुए खीरा को आदिवासी अपने गाँव में घर के आसपास के कँटीले तारों पर सुखाते हैं। सूखने पर उसे घर में सहेज लेते हैं।
छत्तीसगढ़ के बैगा आदिवासी इलाके कवर्धा और उसके आसपास के जिलों में इन दिनों गाँव-गाँव में तारों पर सूखती हुई खीरा ककड़ी को देखा जा सकता है। यह दरअसल इनके परम्परागत खाद्य सुरक्षा का तरीका है। जिसमें खीरा ककड़ी के पौष्टिक तत्वों को समझते हुए उसे कई महीनों तक उपयोग किया जा सकता है। क्षेत्र के लोग खीरा ककड़ी से बनने वाली कढ़ी को बड़े चाव से खाते हैं। आदिवासी इलाके में पीढ़ियों से इसी तरह आसपास मिलने वाले कई खाद्य पदार्थों का संरक्षण कर उनके प्राकृतिक तत्वों को अपने भोजन में शामिल किया जाता है। खीरा ककड़ी के सेहत के लिए फायदेमंद होने की बात हम सब जानते हैं। आश्चर्य की बात है कि सदियों से जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग भी अपनी परम्परा से इसके फायदों को जानते रहे हैं।
पंडारिया और उसके आसपास के 40 से ज़्यादा गांवों में खीरे की खेती होती है। यहाँ बेचने के बाद बचे हुए खीरे को लम्बा चीरा लगाकर आदिवासी परिवारों की महिलाएँ इन्हें सूखा लेती हैं। करीब हफ़्तेभर में यह अच्छी तरह सूख जाता है। सूखे हुए हिस्से को टुकड़ों में बाँटकर किसी मटकी में भर देते हैं और इसे सब्जी के रूप में खाते रहते हैं। खाद्य विशेषज्ञ बताते हैं कि सूखने पर भी खीरा के सेहतमंद गुण बने रहते हैं। इसी तरह के तौर-तरीकों से आदिवासी जंगलों में भी अपने शरीर को ताकतवर और सेहतमंद बनाए रखते थे।