उमरिया। मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिले अभी कुछ ही समय हुआ है और उसके सामने बाघों के पलायन का खतरा बढ़ गया है। दूसरे राज्यों से पहुंचे जंगली हाथियों के दल के कारण बाघों सहित अन्य वन्य जीवों और रहवासियों पर खतरा मंडराने लगा है।
दरअसल झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के रास्ते मध्य प्रदेश में पहुंचे जंगली हाथियों के दल में से 60 ने बाँधवंगढ़ टाइगर रिजर्व में तो 2 ने बालाघाट में अपना आशियाना बना लिया है। बाँधवंगढ़ में तीन मादा हाथियों ने प्रजनन कर बच्चों को जन्म दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जंगली हाथी जिस जंगल मे प्रजनन करते हैं उसे ही घरौंदा बना लेते हैं। जंगली हाथी, बाघ सहित दूसरे वन्य जीवों के आवास और आहार के लिए बड़ी चुनौती होते हैं। इसके अलावा जंगल के समीप बसे सैकड़ों गांवों में भी हाथियों के उत्पात से भयावह स्थिति निर्मित होने का खतरा बना रहता है। खतरे को देखते हुए वन विभाग भी विशेषज्ञों की मदद से ठोस रणनीति बनाने में जुटा हुआ है।
बाँधवंगढ़ टाइगर रिजर्व 1967 में आस्तित्व में आया। तब से यहां के वनों को सरंक्षित वन घोषित कर वनों एवं बाघ सहित दूसरे वन्य जीवों के सरंक्षण के प्रयास शुरू किए गए। साल 2012 में यहां साउथ अफ्रीका की मदद से डेढ़ करोड़ रुपये खर्च कर कान्हा टाइगर रिजर्व से 49 बायसन आयातित कर बायसन प्रोजेक्ट शुरू किया गया। इससे सात सालों में बायसनों की संख्या बढ़कर 200 पंहुच गई। वहीं 2014 के मुकाबले यहां बाघों की संख्या भी 65 से बढ़कर 2018 की बाघ गणना में 110 तक जा पंहुची है।
अब 60 जंगली हाथियों के दल के आने से बाघ एवं बायसनो के रहवास एवं आवास पर प्रभाव पड़ेगा। जानकारों के अनुसार एक जंगली हाथी की खुराक एक दिन में 200 क्विंटल होती है। ऐसे में वन विभाग के सामने प्रदेश के जंगलों में उपलब्ध खाद्य सामग्री को बचाये रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी। वहीं पार्क से जुड़े विशेषज्ञ एवं अधिकारी भी हाथियों की मौजूदगी जंगलों में मौजूद वन एवं वन्य जीवों के लिए एक बड़ा खतरा बता रहे हैं।