April 20, 2025

यह तो सरासर ब्लैक मेलिंग है। क़ानूनी दांवपेंच हमें मत समझाओ,लड़ना हो तो लड़ो , जीतेंगे हम ही।

लेखक डॉ आनंद शर्मा सीनियर आईएएस हैं और पूर्व मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी रहे हैं। 
Xpose Today News 
रविवारीय गपशप 
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               कहते हैं कोई भी चीज मुफ्त नहीं मिलती , जो मुफ्त मिलता दिखता है , उसकी क़ीमत बाद में पता चलती है । बात पुरानी है , तब मैं भू अभिलेख विभाग में संयुक्त आयुक्त के पद पर पदस्थ था । मध्यप्रदेश का भू अभिलेख विभाग कम्यूटराइजेशन में एच मिश्र के जमाने से अग्रणी रहा है , और जब मैं यहाँ पदस्थ हुआ तो भू अभिलेख के कम्प्यूटर प्रोग्राम को डॉस बेस से विण्डो प्रोग्राम में ताज़ा ताज़ा शिफ्ट किया था । माइक्रोसॉफ्ट के विण्डो प्रोग्राम ने पूरी दुनिया में धूम मचा रखी थी और जटिल डॉस बेस की तुलना में विण्डो प्रोग्राम अत्यंत सरल और उपयोगकर्ता के लिए अत्यंत मैत्रीपूर्ण था । जब मैंने विभाग में चार्ज लिया तो ये हस्तांतरण हो चुका था और एक प्रायवेट वेंडर ने , जो राष्ट्रीय स्तर की एक नामचीन कंपनी थी , प्रोग्राम को डॉस से विण्डो बेस पर फ्री में शिफ्ट किया था । मेरे साथ साथ विभाग में आयुक्त भी बदल चुके थे , और मेरे पूर्व के संयुक्त आयुक्त जो इस काम को देख रहे थे , कम्प्यूटर के बड़े धुरंधर माने जाते थे , सो मेरा काम बड़ा चुनौती पूर्ण था । अब तो कम्प्यूटर और उसकी बारीकियों से बच्चा बच्चा वाक़िफ़ है पर तब नई नई शुरुआत का समय था और ये तो सब जानते ही हैं कि जब कोई प्रोग्राम नया नया लांच होता है तो उसमें बहुत सी आरंभिक परेशानियां होती हैं । अनेक त्रुटियां होती हैं और प्रोग्रामर उसे धीमे धीमे सुधारता रहता है , पर भू अभिलेख विभाग में ये प्रोग्राम पूर्व से लाइव था , और विण्डो के आते ही जनआकांक्षाएं बड़ी तेज़ी से आकार लेने लगीं थीं । लोग अपने खाते बही की नकलें इससे और आसानी से से प्राप्त करने की आशा लगा रहे थे और प्रोग्राम त्रुटियों पर त्रुटियां कर रहा था । जिस कंपनी से इसे डॉस से विण्डो पर शिफ्ट किया था उसकी रिस्पांस की गति बहुत धीमी थी । हमने वेण्डर को चर्चा के लिए बुलाया , आयुक्त कार्यालय में बैठक हुई तो वेण्डर बोला हमारी शर्त थी की हम सॉफ्टवेयर फ्री में देंगे , पर ये तो मेंटेनेंस पार्ट है , ये चार्जेबल होगा । हमने चार्ज पूछा तो सूटकेस से फ़ाइल निकली जिसका लुब्बोलुवाब था कुल मिला कर अस्सी लाख रुपये का खर्चा । मैंने अपने आयुक्त से कहा , ये तो सरासर ब्लैक मेलिंग है । मारू साहब बोले ये तो पुराने अफसरों ने बिना सोचे समझे डील कर के फसा दिया , अब क्या उपाय है ? मैंने कहा आप शासन की एजेंसी एन.आई.सी. से बात करके देखें ? आयुक्त के साथ अगले ही दिन बैठक हुई और एन. आई.सी. के लोग इस ज़िम्मेदारी को इस शर्त पर लेने तैयार हो गए कि इसकी बाक़ी जबाबदेही विभाग की होगी । एन.आई.सी. के युवा इंजीनियर राजीव अग्रवाल की पोस्टिंग ग्वालियर दफ्तर में की गई और उसने जी जान लगा कर काम आरम्भ कर दिया , और थोड़े ही दिनों में परिणाम दिखने लगे । अचानक एक दिन प्रायवेट वेण्डर नमूदार हुआ , और श्री विमल जुल्का जो उन दिनों आयुक्त का चार्ज देख रहे थे , ने मुझे अपने दफ्तर में बुलाया । मैं ऑफिस पहुँचा तो उन्होंने वेण्डर की ओर इशारा कर कहा ये नोटिस लेकर आये हैं । मैंने माज़रा समझा तो पता लगा वकील के ज़रिए बनाये गए उस नोटिस में लिखा था कि चूँकि मूल सॉफ्टवेयर उन्होंने बनाया है , इसलिए उसका प्रोप्रायटरी राइट उनका है लिहाजा हम उसकी देखभाल एन.आई.सी. से नहीं करा सकते हैं । मैं बारीकी तुरंत समझा , यदि एन. आई. सी. के सामने ये बात जाती तो वो तुरंत इस काम को छोड़ देते और हमें इन्हें भारी राशि देनी पड़ जाती । जुल्का साहब भी ये समझ रहे थे , उन्होंने इशारा किया कि ऐसा कुछ करो कि ये वापस न आये । मैं उन सज्जन को अपने कक्ष में ले गया , और प्रेम से बैठा कर कहा देखिए इतना क़ानून तो हम भी समझते हैं , जो वस्तु बिना प्रतिफल के दी गई उसका प्रोप्रायटरी राइट भी उसके साथ ही ट्रांसफर हो जाता है , इसलिए ये क़ानूनी दांवपेंच तो हमें समझाओ मत , बाक़ी लड़ना हो तो लड़ो , जीतेंगे हम ही , अलबत्ता ये ग्वालियर है , कहाँ दिल्ली से आते जाते रहोगे , कभी कुछ ऊंच नीच हो गया तो कहीं के ना रहोगे । उन सज्जन ने अचकचा कर मेरी ओर देखा , अपनी फ़ाइल उठाई और मेरे कमरे से बाहर निकल गए । उस दिन के बाद , प्राइवेट कंपनी के किसी कारिंदे ने फिर कभी ग्वालियर के मोतीमहल में स्थित भू अभिलेख विभाग में कदम नहीं रखा ।
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Written by XT Correspondent