लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
रविवारीय गपशप
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दफ़्तर के कामकाज में अफ़सर की डाँट पड़ना स्वाभाविक है , अंतर केवल ये है कि कई बार ऐसी बातों में नाराज़गी झेलनी पड़ती है जिसमें आपका कोई क़ुसूर ही ना हो । हालाँकि कुछ अधीनस्थ ऐसे सूरमा होते हैं जो इसकी भी तारीफ़ कर लेते हैं । उज्जैन में कलेक्टर हुआ करते थे , श्री भूपाल सिंह , जो यों तो भले मानुस थे पर अचानक क्रोधित हो बैठते थे । एक दिन एक तहसीलदार साहब जिन पर वे एक दिन पूर्व ही बुरी तरह नाराज़ हुए थे , कहने लगे सर आप क्या ग़ज़ब डाँटते हैं , एक बार में ही सब समझ में आ जाता है । हमारे वरिष्ठ साथी , श्री प्रभात पाराशर जो इंदौर में हमारे कमिश्नर हुआ करते थे , कहा करते थे कि अधीनस्थ अधिकारी कर्मचारी पर क्रोधित होकर यदि आप सोचते हो कि काम आसान होगा तो ये ग़लत सोचते हो , वास्तव में अफ़सर को वापस अपने अधीनस्थ को रिदम में लाने में डबल मेहनत करनी पड़ती है । लेकिन इस विषय में जहाँ तक मेरा ख़याल है मैं मानता हूँ कि आदमी के स्वभाव और उसके व्यवहार में बहुत सारे तत्वों का योगदान रहता है | उसका पारिवारिक जीवन कैसा है , उसका बचपन कैसा बीता , उसे दोस्त कैसे मिले ? और ये सब चीजें मिलकर ही उसकी सोच को सकारात्मक और नकारात्मक बनाती हैं । अफ़सर की डाँट पर मुझे एक बहुत पुराना किस्सा याद आ रहा है । ये बात है सन 1993 की है , जब मैं सीहोर में अनुविभागीय अधिकारी हुआ करता था । श्री होशियारसिंग साहब तब राजस्व विभाग के सचिव हुआ करते थे । उस दिन मैं किसी काम से कलेक्टर के स्टेनो कक्ष में फ़ोन करने के लिए गया था | श्री दुधे उन दिनों स्टेनो हुआ करते थे । खुशमिजाज और बन ठन कर रहने के शौकीन दुधे जी के रहते एस.टी.डी. कॉल के साथ चाय की सुविधा भी हमें मिल जाती थी । आप लोग आश्चर्य ना करें , एस.टी.डी. फ़ोन की सुविधा उन दिनों केवल कलेक्टर के ही नसीब में हुआ करती थी | सो उस दिन मैं पहुंचा ही था कि दुधे जी बोले अच्छा हुआ साहब आप आ गए मैं आपको बुलाने ही वाला था , होशियारसिंग साहब आपसे अर्जेंट में बात करना चाह रहे थे | मैंने कहा ठीक है लगाओ फोन , दुधे ने राजस्व सचिव का नंबर मिलाया और फोन मुझे दे दिया , लाइन पर होशियारसिंग साहब की हेल्लो की आवाज सुनते ही मैंने उनसे औपचारिक अभिवादन किया , पर वे तो किसी और ही मूड में थे | उनके भड़कते स्वर के साथ मुझे नाराजगी भरी आवाज सुनाई दी “शर्माजी गरीब कब तक भटकते रहेंगे , आप लोग पद के नशे में ये भी भूल जाते हो कि कभी आप भी साधारण इंसान थे और किसी गरीब की गुहार भी आपको सुननी है “। मैं कुछ हैरान हुआ , क्या सन्दर्भ है ? ये भी नहीं पता था , पर चूँकि मेरे स्वभाव में इस तरह गरीब की उपेक्षा का भाव कभी रहा नहीं तो मुझे थोडा गुस्सा भी आया । फिर भी अपने को जब्त करते हुए मैंने पूछा “सर यदि मुझे ये भी पता चल जाए कि मेरी क्या गलती है तो मैं ढंग से शर्मिंदा हो लूँ “ | होशियारसिंग साहब बोले “मैंने दो तीन महीने पहले एक अनुसूचित जाति के गरीब आवेदक का आवेदन भेजा था , जो बिलकिसगंज सीहोर का निवासी था और उसकी निजी जमीन का सरकारी भूमि से मुबादला (अदला बदली ) होना था पर वो बेचारा अभी तक भटक रहा है और आपका प्रतिवेदन ही नहीं गया है “। संयोग से मुझे प्रकरण का ध्यान आ गया , पंद्रह बीस दिन पहले ही आवश्यक औपचारिकता की पूर्ति कर वो प्रकरण मैंने कलेक्टर को भेजा था और एक सप्ताह पूर्व ही कलेक्टर से प्रस्ताव मंजूर होकर मेरे पास वापस आ गया था जिसे मैंने रिकार्ड दुरुस्त करने तहसीलदार को भेज दिया था | अब मैंने भी थोड़ा रोष में उन्हें बताया कि उसका काम तो हुए एक हफ्ता हो गया है , और बजाय आप के पास जाने के आवेदक यहीं आ जाता तो इसे पता लग जाता | वो शांत हुए और अचरज से बोले अच्छा काम हो चूका है ? मैं और शेर हुआ और कहा जी हाँ और सर आप भी डाटने के पहले पूछ तो लेते कि लापरवाही है भी या नहीं , बिना जाने आप ने मुझे क्या क्या सुना डाला | होशियार सिंह जी बोले “ अरे क्या करें यार थोड़ी देर पहले मुझे सी. एस. ने कमरे में बुला कर डाँटा है , मैंने तुझे डाँट दिया , तू अपने तहसीलदार को बुला के डाँट ले ।