लेखिका डॉ. अनन्या मिश्र इंदौर आईआईएम में मैनेजर – कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन एवं मीडिया रिलेशन ऑफ़िसर है।
एक्सपोज़ टुडे।
तकनीक। इन्टरनेट। स्मार्टफोन। गैजेट। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस।कोडिंग। डाटा।ये शब्द क्या आपको कभी किसी धर्म, आध्यात्मिकता, नैतिकता, आदर्शों और मूल्यों का स्मरण कराते हैं? शायद नहीं। सिलिकॉन वैली, कंप्यूटर,मशीन, इत्यादि शब्दों को भावरहित, सख्त, संवेदनहीन और मात्र एक कोड माना गया है। किन्तु पिछले दो दशकों में जिस तीव्र गति से तकनीक ने हमारे जीवन के हर पहलु में हस्तक्षेप किया है, ज़ाहिर है यह हमें उन प्रमुख विषयों पर भी विचार करने के लिए विवश कर रही है जिन्हें पूर्व में मात्र पंथ के दायरे में रखा गया था। यह कथन क्षणिक निश्चित ही बचकाना और चुनौतीपूर्ण लग सकता है, किन्तु इसमें भी एक आध्यात्मिक, सकारात्मक क्षमता विकसित करने का प्रभुत्व है।
मेरे अनुसार, आध्यात्मिकता एक विशेष आस्था के सिद्धांतों तक संकुचित नहीं है। यह आंतरिक रूप से मानवता के साथ अपने जुड़ाव के बारे में है।यह हमें विश्व की सभी संवेदनाओं से संबद्ध करने की शक्ति रखती है और यही वर्तमान तकनीक की आध्यात्मिक विशेषता है।
मैंने हाल ही में पढ़ा था कि रूसी उद्यमी दिमित्री इकतोव ने फरवरी 2011 में ‘2045 इनिशिएटिव’ की स्थापना की। यह एक गैर-लाभकारी संगठन है जो साइबोर्ग के रूपों को बनाने के लिए मस्तिष्क अनुकरण और रोबोटिक्स के संयोजन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जीवन विस्तार के क्षेत्र में शोधकर्ताओं का एक नेटवर्क विकसित करता है। इसकी वेबसाइट के अनुसार, इसका मिशन “ऐसी तकनीकों का निर्माण करना है जो किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को एक अधिक उन्नत गैर-जैविक वाहक में स्थानांतरित करने में सक्षम बनाती हैं, और जीवन को अमरता तक विस्तारित करती है”। गौरतलब है कि यह तकनीकी और आध्यात्मिक विभाजन की सबसे दिलचस्प परियोजनाओं में से एक है। लेकिन यहाँ “व्यक्तित्व” का क्या तात्पर्य है? क्या यह मात्र इंसान की विशेषताओं और लक्षणों की नकल है? विवेक है? या आत्मा है? ये विचार पारंपरिक धार्मिक मूल्यों से थोड़े भिन्न हैं और शायद समस्याग्रस्त भी, क्योंकि ये मूलभूत आदर्शों और अनुष्ठानों को चुनौती देते हैं और हमें हमारी मान्यताओं का पुनर्विश्लेषण करने के लिए बाध्य करते हैं।
निस्संदेह वर्तमान परिदृश्य में तकनीक एक ‘कनेक्टर’ है। हमारी सुबह अलार्म से होती है और हमारे दिन का अंत भी तब होता है जब हम अगले दिन के लिए तकनीक का प्रयोग करते हुए फिर से अलार्म की सहायता लेते हैं। हर कार्य में, प्रत्येक प्रक्रिया में तकनीक किसी न किसी रूप में सम्मिलित है। जितना अधिक हम इससे जुड़े हुए हैं, हम उतने ही अधिक सहानुभूतिपूर्ण बन सकते हैं – और यही हमारी आध्यात्मिकता को भी विकसित कर सकता है। यह सिर्फ हमारी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को आसान बनाने या सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बारे में नहीं है – बल्कि हमारे दिल और दिमाग को पूरी दुनिया के लिए खोलने का एक तरीका है – एक ऐसी दुनिया जिसमें विविध क्षेत्रों, धर्मों, संस्कृतियों, पृष्ठभूमि और विश्वास के लोग शामिल हैं। यह हमें उन लोगों से जोड़ता है जो पीड़ित हैं और जिन्हें हमारी मदद की जरूरत है या उनसे प्रेरणा लेने में मदद करता है जो हमें कुछ नया सिखाते हैं। यह स्वतंत्र रूप से तमामजानकारी प्रदान करता है और जीवन में उम्मीद के दरवाज़े खोलता है। यह बताता है कि तकनीक की दुनिया में हम सभी एक समान हैं। वहां कोई विशेष पंथ नहीं – मात्र तकनीक है।
इसी प्रकार ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ को प्रौद्योगिकी ने भी आत्मसात किया है।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के उद्भव से प्रौद्योगिकी ने अब एक ऐसे वैश्विक जुड़ाव को सक्षम किया है जो दुनिया भर में आध्यात्मिकता को बढ़ाएगा – यहां तक कि रूढ़िवादी धार्मिक संप्रदायों मेंभी, जो अभी भी प्रौद्योगिकी से सावधान हैं।
प्रौद्योगिकी हमारे समय और ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता को प्रबंधितऔर स्थिति के अनुसार अनुकूलित कर आध्यात्मिकता को भी बढ़ाएगी।यह हमें छोटे-छोटे कार्यों से मुक्त करेगी। वहीं स्मार्ट ऑटोमेशन से अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्गठन हो सकेगा और हम अपने गहरे मूल्यों और जीवन के उत्कृष्ट पहलुओं पर चिंतन कर सकेंगे। अब यह हमें तय करना है कि क्या हम स्वेच्छा से ज़रुरतमंदों की मदद करना चाहते हैं, राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए कोई नवीन पहल की योजना बनाना चाहते हैं या स्वयं के लिए, आत्मनिरीक्षण करने के लिए एक यात्रा पर जाना चाहते हैं।तकनीक से हम मनोविज्ञान और संस्कृति का अध्ययन कर सकते हैं और ऐसे विचार-विमर्श को प्रोत्साहित कर सकते हैं जो सार्वभौमिक बुनियादी आय को बढ़ावा दे और साथ ही आध्यात्मिक रूप से प्रेरित लक्ष्यों में प्रगति भी हो सके।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तो और एक कदम आगे है। यह नैतिक मुद्दों के साथ ही आध्यात्मिकता से जुड़ी अवधारणाओं को भी उजागर करेगा। हम अब ड्राईवर-लेस कार यानि चालक रहित कारों के युग में प्रवेश कर चुके हैं। अलेक्सा, सीरी और गूगल असिस्टेंट जैसे स्मार्ट गैजेट हमारी दिनचर्या का हिस्सा ही नहीं हैं बल्कि हम इनपर निर्भर भी हैं। नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग टूल से हम भाषाओं की सीमा को लांघ रहे हैं और बैंकिंग के लिए रोबोट और यात्रा के लिए ऑटोमेटेड चैट सर्विस का इस्तेमाल कर रहे हैं। बेशक, एआई की इस गहन भागीदारी से मानव सुरक्षा में खनन का मुद्दा भी प्रकट हुआ है। लेकिन हमें इनका सामना करने के लिए इन नैतिक पहेलियों के हल खोजने चाहिए।
आने वाले समय में तकनीक उन्नत सामाजिक संबंध बनाने और नैतिकता विकसित करने में सहायक होगी और यह आध्यात्मिक विचारों को भी प्रगति देगा। लेकिन सबसे आवश्यक है कि इस तकनीक का हमारी स्वयं की परम प्रकृति से संबंध भी स्थापित होगा – और शायद हो भी चुका है। आध्यात्म शब्द “आत्मा” में निहित है। इसे हमारी आत्मा, स्व या चेतना के रूप में भी जाना जाता है। और निस्संदेह, आध्यात्मिक और अंतर-विश्लेषण के लिए बनाए गए कई एप्प भी यहाँ एक प्रमुख भूमिका निभाने की संभावना रखते हैं।
बेशक, 2045 इनिशिएटिव का लक्ष्य नेक है। विशेषज्ञों का का मानना हैकि मनुष्य अपने शरीर द्वारा विकसित होने और अधिक बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता में सीमित हैं। सोचिए, अपनी चेतना को एक मशीन परअपलोड कर, हम सैद्धांतिक रूप से स्वतंत्र हो जाएँगे और स्वयं को और अधिक महान कार्यों के लिए समर्पित करने में सक्षम होंगे।
शायद जल्द ही, एआई ज्यादातर विश्लेषणात्मक कार्यों में इस्तेमाल होने लगेगा, और मानव के इन्हीं आध्यात्मिक प्रयासों के लिए साथ काम करेगा। हालाँकि वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं कि कोड में नैतिकता की हमारी धारणाओं को कैसे सर्वोत्तम तरीके से शामिल किया जाए, यह सत्य है कि शायद शुरूआती दौर में नैतिकता की निम्न भूमिका हो – क्योंकि तकनीक या प्रोग्राम कोड उन चीज़ों को कैसे समझ सकते हैं जो हम स्वयं नहीं समझ सके… लेकिन एआई और मशीन लर्निंग का उभरता युग मानवता के लिए बेहतरीन सिद्ध होगा। और यह इन सभी कठिन सवालों को उत्पन्न कर स्व की खोज और उद्देश्य को समझने के मार्ग के रास्ते खोल रहा है।