बालाघाट। एक दिव्यांग शिक्षक की कहानी बरबस ही हमें प्रेरित करती है कि कुछ कर गुजरने का हौंसला हो तो शारीरिक अक्षमता भी कहीं बाधा नहीं बन पाती। एक हादसे में अपने दोनों हाथों के पंजे गँवा चुके ये शिक्षक न केवल निष्ठा से पढ़ाते हैं बल्कि व्यक्तिगत प्रयासों से बच्चों को ख़ासा प्रेरित भी करते हैं। उनकी लेखनी भी बड़ी सुंदर है।
सब कुछ होने के बावजूद भी कई लोग कुछ न कुछ कमी होने का रोना रोते है लेकिन बालाघाट के पाथरी प्राथमिक शाला में पदस्थ दिव्यांग शिक्षक राकेश पन्द्रे अपने बेमिसाल जज्बे से बच्चों की पढ़ाई करवा रहे हैं। उन्होंने बचपन के एक हादसे में अपने दोनों हाथ के पंजे गवा दिये और उनके चेहरे और शरीर पर भी इसका असर हुआ। लेकिन अपनी शारीरक कमजोरियों को दरकिनार कर वे बखूबी अपने फर्ज को अंजाम दे रहे हैं। देश के भविष्य का निर्माण करने वाले राकेश को देखकर यही कहा जा सकता है कि जीना इसी का नाम है।
करंट की चपेट में आने से हुआ था हादसा
शिक्षक राकेश पन्द्रे बचपन से दिव्यांग नहीं थे। वे कक्षा दूसरी में पढ़ते थे तब सात वर्ष की उम्र में छत पर खेलते समय 11 केवी की वि़द्युत लाईन की चपेट में आने से उन्होंने अपने दोनों हाथों के पंजे गवा दिये थे। कई सालों तक ज़िन्दगी और मौत से जूझते हुये आख़िरकार मौत को मात देकर ज़िन्दगी की जंग जीत ली लेकिन आगे कई अग्नि परीक्षाएँ राकेश को देनी थी, अपने मजबूत इरादे से कालेज तक की पढ़ाई की और उन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई. नौकरी करते हुये उन्हें 9 साल हो चुके हैं। वे अपने अंदाज में विद्यार्थियों में शिक्षा की अलख जगा रहे है बल्कि अन्य लोगों के लिए मिसाल बने हुये है। उनके शिक्षक, परिवार और दोस्तों ने आगे बढ़ने के लिए हमेशा उन्हें हिम्मत दी। उनका यह भी मानना है कि जीवन में समस्या को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए. सभी के जीवन में समस्या हैं, संघर्ष ही जीवन जीने की कला है। दिव्यांग शिक्षक होने के बाद भी वे अपना काम पूरी ईमानदारी से करते है। छात्रों का परिणाम उनके कार्यो को बताता है। वे दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी ब्लैकबोर्ड पर लिखकर बच्चों को पढ़ाते हैं और नियमित रूप से बच्चों को पढ़ाने के लिये स्कूल पहुँचते हैं। वे मोबाइल का उपयोग करते हैं और की पेड की बटन दबाकर कॉल भी कर लेते है। राकेश ने पीजीडीसीए, डी.एड और हिन्दी में एम.ए. हाथों से लिखकर उत्तीर्ण की .2009 में उनकी नियुक्ति शिक्षक भर्ती परीक्षा पास करने के बाद प्राथमिक स्कूल पाथरी में हुई. तीन भाई बहनों के परिवार में वे दो बहनों के इकलौते भाई हैं।
राकेश की लेखनी है लाजवाब
राकेश के द्वारा सनमाइका बोर्ड में न सिर्फ़ पढ़ाने का तरीका बल्कि हाथों के बगैर लिखने का अंदाज और राइटिंग भी लाजवाब है। उनके साथी शिक्षक और प्रधान पाठक बकायदा एक सामान्य शिक्षक की तरह व्यवहार कर उनका हौसला बढ़ाते हैं। जीवन में जरा-सी कमी होने पर लोग नशे को अपना लेते हैं या मामूली-सी बात पर मौत को गले लगा लेते है लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी शिक्षक की नौकरी कर रहे राकेश पन्द्रें अपने फर्ज को अंजाम देने में कोई कोर कसर नहीं छोडते।