लेखक अगम जैन आईपीएस हैं और मध्यप्रदेश के राज्यपाल के सुरक्षा अधिकारी हैं।
एक्सपोज़ टुडे।
हिंदुस्तान के सर्किट हाउसों का अंग्रेजों जितना पुराना इतिहास है। अंग्रेजों जैसे ही वे यहां रहते हुए भी यहां के लोगों के ना हो सके। हर जिले और पुरानी तहसीलों में एक बड़ा सा सफेद पुता और लाल टपरों से मुकुटबद्ध एक हवेलीनुमा घर, जिसके सामने से पूरा शहर दाएं बाएं होता लेकिन हर कोई अंदर नहीं जा पाता। सर्किट हाउस अधिकतर लोगों के लिए एक लैंडमार्क से अधिक कुछ नहीं हो पाता। अपने शहर में पर अपना सा नहीं।
सर्किट हाउस में दीवार पर लिखे “मेरा जीवन ही मेरा संदेश” जैसे वाक्यों के नीचे टेबल पर गांधीजी जैसे महापुरुषों की एक मूर्ति रखी होती है जिसकी धूल सरकारी महानुभावों की आवाजाही के आधार पर हटती रहती है।
सर्किट हाउस की असली दास्तां तब शुरू होती है जब वहां रुके मेहमान रात में सो जाते हैं। खानसामा मामलतदार के अतिथियों से निवृत्ति पाकर बाहर दालान में आ जाता है। खानसामा यानि महाराज। किसी ने लिखा है कि महाराज की ये उपाधि सिर्फ प्रजा के राजा, साधु और खानसामा को ही नसीब हुई है। सही भी है। एक धन स्वस्थ रखता है, एक मन और एक तन।
सर्किट हाउस के महाराज दालान में उस बरगद के नीचे आकर बैठ जाते हैं जिसकी पीढियां महाराज की पीढ़ियों के साथ ही यहां टिकी हुई हैं। बरगद से लगा पीपल भी उतना ही पुराना होने का दावा करता है और दोनों ऐसे सटे हैं जैसे एनसीआर बन गए हों। गिलहरी पीपल के नोएडा से बरगद के गुड़गांव पर फुदकती ही रहती।
चबूतरे पर बैठ एक पैर हवा में लटकाए और एक पैर ठोड़ी से टिकाकर महाराज पान निकालते हैं। मैन गेट पर खड़ा चौकीदार महाराज के पान पर रीझकर चबूतरे पर चला आता है। अंधेरे में इधर उधर देखता हुआ ताकि उसकी कर्तव्यनिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह ना लगे। उसके पीछे लाल और काले दो कुत्ते भी चले आते हैं जो देर रात सर्किट हाउस के सामने से तेज़ गति से निकलने वाली मोटर साइकिलों पर भोंककर अपनी ड्यूटी बजाएंगे।
खानसामा चौकीदार को पान देकर बताता है कि इस हाउस में कई लार्ड साहब आकर रुके हैं। उसके दादा बताकर गए हैं कि वे पास के जंगल में शिकार करने आते थे। फिर उसके पिता बताते थे कि एक बार एक साहब महीने भर रुके थे किसी केस की जांच के लिए और फल सब्ज़ी के अलावा कुछ नहीं खाते थे। फिर इन महाराज के सामने एक नए अधिकारी की ऐसी प्रजाति भी आई थी जो रात में तीन बजे पुलाव बनवाते थे।
चौकीदार नया है, सुनता रहता है। पास के गांव से यहां आकर रात में सीटी बजाकर भाग जाता था, अब खुद ऐसे सिरफिरों से परेशान रहता है। जहां आप जा नहीं सकते उस जगह से कुढ़कर मसखरी करने की सूझना स्वाभाविक ही है।
सर्किट हाउस के प्रभारी तहसीलदार ने बहुत मेहनत की इस अंग्रेजी स्मारक को संजोए रखने की लेकिन आए दिन की परेशानी। कभी लैट्रिन की निकासी अटक जाती थी, कभी छत की पुताई का पतझड़ हो जाता, दीवार में ड्रिल करने पर चूना ही निकलता रहता और चूहे छछूंदर के साथ कभी-कभी सांप भी बरामदे में आराम करता हुआ मिल जाता।
ऐसे में इसी से लगा एक नया भवन लगभग बनकर तैयार है। नए तरह के कमरे, बाथरूम और किचन। महाराज चौकीदार को बताता है कि शायद नई बिल्डिंग के साथ नया कुक भी आ जाएगा। हो सकता है उसे अपने परिवार के लिए कुछ और ढूंढना पड़ेगा। चौकीदार अभी भी सिर्फ सुन ही रहा है, कुछ कहता नहीं है।
दोनों इधर उधर देखते रहते हैं। रात गहरी हो रही है। खानसामा को सुबह उठकर नाश्ता भी बनाना है। वो उठकर अंदर जाता है और चौकीदार मेन गेट पर। अंदर से गांधीजी की मूर्ति उठ कर नई बिल्डिंग में जा चुकी है। उस खाली हुई टेबल पर महाराज अपना बिस्तर लगा लेता है।
महाराज लेटे-लेटे सोचता है कि इस विरासत ने उसके परिवार को कितना कुछ दिया है पर ये भी है कि उसके परिवार के बिना यह विरासत अधूरी है। महाराज अपने ऊपर लिखे “मेरा जीवन ही मेरा संदेश” को देखते-देखते सो जाता है। ऐसी गहरी और निश्चिंत नींद में कि वाकई उसका जीवन उसका संदेश बन जाता है।