झाबुआ। इस आदिवासी गाँव में लोगों के लिए मौत भी बड़ी मशक्कत का कारण बन जाती है। यहाँ बारिश में जब किसी की मौत हो जाती है तो गाँव वालों के लिए अंतिम संस्कार सबसे बड़ी चुनौती होती है। पहले उफनती हुई नदी को पार करना और उसके बाद बारिश से बचाकर दाह संस्कार काफी मुश्किल होता है।
आदिवासी समुदाय के लिए सरकार के दावे जमीनी हकीकत से कोसों दूर है। हालात यह है कि झाबुआ में एक व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने के लिए भी परिजनों को काफी मशक्कत करना पड़ती हैं। बारिश होने के कारण जब चिता कई बार बुझ जाती है तो परिजनों को कपड़े की आड़ में शव का अंतिम संस्कार करना पड़ता है। ऐसी स्थिति कई बार बनती रहती है।
ताज़ा मामला झाबुआ जिले की ग्राम पंचायत गामड़ी के गोपालपुरा का है। यहाँ रहने वाले मड़ियाल मकवाना की मृत्यु भरी बारिश में हो गई थी। मुक्तिधाम तक पहुँचने के रास्ते में नदी आती है लेकिन नदी पर पुल न होने के कारण उफनती नदी से निकलकर जैसे-तैसे शव को मुक्तिधाम ले जाया गया।
मुक्तिधाम पहुंचकर परिजनों के सामने शव का दाह संस्कार करना भी चुनौती थी। इधर तेज बारिश थी और उधर सूखी लकड़ियों में आग लगाना था। बमुश्किल लोगों ने तमाम जतन कर कपड़े की आड़ की तब कहीं जाकर चिता जल सकी। बार-बार बारिश के कारण चिता बुझती रही लोग फिर जलाते और फिर कुछ देर में वह बुझ जाती। घंटों की मशक्कत के बाद आख़िरकार मड़ियाल मकवाना की देह का दाह संस्कार संभव हो सका।
जीते जी तो आदिवासी तमाम असुविधाओं और अभावों में जीते ही हैं मरने के बाद उनकी चिता को भी सुकून नहीं मिल पाता।
गाँव में मुक्तिधाम का निर्माण तो किया गया है लेकिन अधूरा होने से इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है।