लेखक प्रवीण कक्कड़ पूर्व पुलिस अधिकारी हैं और पूर्व मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी रहे हैं।
एक्सपोज़ टुडे।
शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को सम्मान देने की परंपरा है, छात्र ही नहीं बल्कि समाज का हर तबका शिक्षक को सम्मान देता है। बड़े से बड़ा अधिकारी और राजनेता भी शिक्षक को सम्मानित करते हैं। इसकी बुनियाद में सबसे बड़ा कारण यह है कि शिक्षक ही राष्ट्र का प्रथम निर्माता है। यदि माता को प्रथम शिक्षक कहा गया है तो शिक्षक को प्रथम राष्ट्र निर्माता कहा जा सकता है।
शिक्षक कभी साधारण नहीं होता प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं। चाणक्य के उक्त वचन को प्रत्येक शिक्षक दिवस पर दोहराया जाता है। क्योंकि इससे शिक्षक की असाधारण विशेषता परिलक्षित होती है। लेकिन चाणक्य का यह कथन आज के दौर में सत्य और प्रासंगिक सिद्ध हो रहा है। हम देख रहे हैं कि जो राष्ट्र आगे बढ़े हैं, जहां ज्ञान – विज्ञान की प्रगति हुई है, जहां का समाज सुदृढ़ हुआ है, वहां शिक्षकों का सम्मान है और महत्व भी है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका का राष्ट्रपति अपने बच्चों के शिक्षकों से समय लेकर मिलता है। स्वीडन जैसे देश में यदि किसी सभा में शिक्षक उपस्थित है तो उसे सबसे पहले सम्मान दिया जाता है। फ्रांस, पोलैंड, जर्मनी, जापान जैसे देशों में समाज में सर्वोच्च स्थान शिक्षकों को प्राप्त है।
स्वयं आचार्य चाणक्य ने जब मगध में एक शक्तिशाली साम्राज्य की नींव रखी तो शिक्षकों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। बल्कि मगध की धनानंद की सत्ता को तो शिक्षकों की उपेक्षा के कारण ही चाणक्य ने उखाड़ फेंका था। क्योंकि चाणक्य जानते थे कि जिस समाज में शिक्षक महत्वपूर्ण नहीं होगा वह समाज पतन की तरफ अग्रसर हो जाएगा। आज भारत का चंद्रयान चंद्रमा की सतह पर पहुंच चुका है। बल्कि हम तो वह पहले देश भी बन गए हैं जिसने पहली बार चंद्रमा के उसे क्षेत्र में कदम रखा है, जहां पर कोई पहले नहीं पहुंच सका। इस अभूतपूर्व उपलब्धि का सबसे बड़ा श्रेय इस देश के शिक्षकों को जाता है। जिन्होंने वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, इंजीनियर्स को अपनी कक्षाओं में पढ़ाया। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्कों को सही दिशा दी। उनके हाथ में कलम थमाई और कलम ने कमाल कर दिया। एक छात्र के कोरे मस्तिष्क को कैनवास मानकर उसे पर सर्वोत्तम चित्र अंकित करने वाला शिक्षक ही राष्ट्र का असली निर्माता है। कैनवास को कुरूप और वीभत्स भी किया जा सकता है और सुंदर भी बनाया जा सकता है। सृष्टि ने मां को सर्वोच्च शक्ति दी है कृतित्व की। मां अपने गर्भ में संतान की रचना करती है। और शिक्षक अपने क्लास रूम में उस संतान को श्रेष्ठ नागरिक बनाते हैं। शिक्षक का कृतित्व भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना मां का कृतित्व। इन दोनों रचनाकारों के अवदान को यह समाज कभी विस्मृत नहीं कर सकता।
इसलिए जो शिक्षक छात्र के मस्तिष्क के कैनवास पर सर्वश्रेष्ठ चित्र बना सकता है वह निर्माण और विध्वंस दोनों में ही समर्थ है। हमारे शिक्षक अच्छे छात्रों को तैयार करें और उन्हें सही दिशा दिखाएं ताकि देश प्रलय की तरफ नहीं निर्माण की तरफ बढ़ सके और भारत एक विकसित, सशक्त, शक्तिशाली राष्ट्र बन सके। यही इस शिक्षक दिवस की कामना है और यही शिक्षक दिवस का सबसे बड़ा लक्ष्य है। समस्त राष्ट्र निर्माता शिक्षकों को बारंबार प्रणाम।