लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
रविवारीय गपशप
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हममें से हर किसी के जीवन में ऐसा वक्त तो आता ही है कि जरूरते-सेहत हमें अस्पताल में भर्ती होना पड़े । अस्पताल में भर्ती होने के बाद दो ही चीजें हैं , जिनकी आपको सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती हैं । पहली तो ये कि जो डाक्टर आपका इलाज कर रहा है , वो वाक़ई काबिल और आपके मर्ज़ से वाक़िफ़ हो और दूसरी बात ये कि इस मुश्किल घड़ी में आपका कोई ऐसा फ़िक्रमंद बंदा आपके साथ हो जिसके होने से आपको सुकून का अहसास हो । बात पुरानी है तब मैं असम में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए ऑब्ज़र्वर की ड्यूटी करने चुनाव आयोग द्वारा रंगिया भेजा गया था जो गोहाटी ग्रामीण ज़िले का भाग था । मेरे बैचमेट श्री राजेश बहुगुणा भी असम के डिब्रूगढ़ में ऑब्ज़र्वर थे । राजेश इतिहास और प्रकृति के रसिक हैं , सो उन्होंने सुझाव दिया कि सप्ताह में पड़ने वाले रविवारीय अवकाश के दिन हम चांदुबी लेक घूमने चल सकते हैं , जो असम में 1897 में आये भूकम्प से निर्मित हुई थी । ये लेक़ गोहाटी के निकट ही है तो मेहमान नवाज़ी की जवाबदारी मेरी थी । मैंने अपने रिटर्निग अधिकारी से अनुरोध किया तो उन्होंने एक बंदा साथ कर दिया और उसे सब समझा कर हमारे साथ रवाना कर दिया । हम दोनों मित्र झील के किनारे बने रेस्ट हाउस में रुके, वहीं भोजन किया और झील के सौंदर्य का आनन्द लिया , पर खाने में कुछ ऐसी गड़बड़ हुई कि मुझे फ़ूड पॉइजनिंग जैसा कुछ हो गया । सुबह तड़के हम अपने अपने क्षेत्र को लौट गए पर पेट तो बिगड़ चुका था । रंगिया में एस.डी.एम. भारतीय प्रशासनिक सेवा के नवजवान अधिकारी कैलाश कार्तिक थे , उन्होंने मुझे लायज़निंग अधिकारी के साथ गोहाटी अस्पताल में भर्ती करा दिया और इलाज चालू हो गया । चुनाव में ऑब्ज़र्वर महत्वपूर्ण होता है सो ख़ुद ज़िले के कलेक्टर मेरे इलाज पर नज़र रख रहे थे , पर तबियत सुधरने का नाम ही नहीं ले रही थी । जब लगातार तीन दिन तक पेट में कुछ भी नहीं टिका और स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं दिखा तब डाक्टर ने कहा कि इनका इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस गड़बड़ा गया है और इन्हें मशीन में रखना पड़ेगा सो मैं चिंतित हुआ । लायजन आफ़िसर , जो मेरे साथ अस्पताल में था , घबरा गया । उसने मुझसे नंबर लेकर मेरी श्रीमती जी को फ़ोन कर स्थिति बतायी । श्रीमती जी ने आनन-फ़ानन इंदौर से गोहाटी की फ्लाइट ली और गोहाटी आकर अस्पताल पहुँच गयीं । ना जाने इतने दिनों तक दी गई दवाओं से शरीर सम्हला या बीबी को पास में पाकर सुकून हुआ , उसी दिन से मेरी तबियत में अचानक सुधार होना आरम्भ हो गया और तीसरे दिन सुबह तो हम अस्पताल से डिस्चार्ज होकर रेस्ट हाउस वापस आ गए ।
लेकिन ज़रूरी नहीं है कि अस्पताल में मिज़ाज जानने आने वाला हर शख़्स ऐसा ही हो । मेरे एक अभिन्न मित्र हैं सी.बी. सिंह जो उन दिनों इंदौर नगर निगम में कमिश्नर थे । एक बार श्रीमती सिंह की तबियत बिगड़ गई और कुछ ऐसी बिगड़ी कि उन्हें बॉम्बे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा । ख़ैर जल्द ही स्वास्थ्य ठीक होने लगा और साथ काम करने वाले लोग हाल जानने अस्पताल पहुँचने लगे , जिनमें उनके नगर निगम में पदस्थ अपर कमिश्नर भी थे । जब एडीशनल कमिश्नर साहब पहुँचे तो उस समय अस्पताल के इस कमरे में सी.बी.सिंह साहब अकेले ही थे और कमरे में ही भाभी जी अब स्वास्थ्य लाभ के बाद आराम कर रही थीं । सी.बी.सिंह साहब ने कहा कि अच्छा हुआ तुम आ गए , तुम यहीं कमरे में अपनी भाभी के साथ रुको , मैं कुछ ज़रूरी काम निबटा के आता हूँ । उन्होंने ने सर हिलाया और सी.बी. उनको कमरे में छोड़ काम निबटाने चल दिये । कुछ देर हुई ही थी कि बॉम्बे हॉस्पिटल से राहुल का फ़ोन सी.बी. सिंह साहब के मोबाइल पर आया । सी.बी.दादा ने फ़ोन उठाया तो राहुल बोले सर आप किसको अस्पताल में छोड़ गये हो , पिछले घंटे भर से खून-पेशाब , ब्लड प्रेशर , सुगर और ना जाने क्या क्या जाँचे वो करा चुका है और मना करो तो धमकी देता है कि आपलोग मुझे जानते नहीं हो सबक़ सिखा दूँगा । सी.बी. भागते हुए वापस अस्पताल पहुँचे तो भाभी ने परेशानी भरी आँखों से उन्हें बायीं तरफ़ इशारा किया तो देखते क्या हैं ऐडिशनल कमिश्नर साहब कमरे में अटेंडेंट के लिए बिछाये बिस्तरे पर शर्ट उतार कर लेते हुए हैं , और बदन पर जगह जगह ईसीजी के पॉइंटर लगा कर उनका ई.सी.जी. चेक हो रहा है । सी.बी. दादा ने नाराज़गी भरे स्वर में पूछा कि “ये सब क्या है “ ? तो एडिशनल कमिश्नर ने मासूमियत भरे अन्दाज़ में जबाब दिया “अरे सर , भाभी जी तो आराम कर रहीं थीं और मैं अकेले बोर हो रहा था , तो सोचा क्यों ना हेल्थ चेकअप ही करा लिया जाये”।