September 23, 2024

दया, प्रेम और शांति का संदेश देता है प्रभु यीशु का जीवन।

एक्सपोज़ टुडे। 
25 दिसंबर को पूरे विश्व में क्रिसमस का त्यौहार मनाया जा रहा है। ईसा मसीह का जीवन दया, प्रेम और शांति का संदेश देता है। क्रिसमस का पर्व धर्म के दायरे में नहीं बल्कि इंसानियत के दायरे में मनाने वाला त्यौहार है। प्रभु यीशु ने जो कहा उसका संकलन बाइबिल में है लेकिन उन्होंने जो जीवन जिया उसका संकलन मानवता की स्मृतियों में है। भारत की संस्कृति अद्वैतवाद की संस्कृति है। ऐसे में भारत में क्रिसमस पर्व सांस्कृतिक एकता को दर्शाता है।
इंसानियत के मसीहा प्रभु यीशु इस धरती पर तब अवतरित हुए जब मानवता आक्रांत थी। धार्मिक वैमनस्य चरम सीमा पर था। अपने-अपने सिद्धांतों के लिए लड़ाई झगड़ा और रक्तपात आम बात थी। ऐसे समय में शांति के मसीहा जीसस क्राइस्ट ने जन्म लिया। रोमन साम्राज्य की रक्त पिपासा के बीच जीसस शांतिदूत बनकर पृथ्वी पर आए। दिशाहारा मानवता को उन्होंने एक दिशा प्रदान की। भटके हुए लोगों को सही राह दिखाई और इंसानियत के लिए ही अपना बलिदान दिया। उनके अंतिम शब्द थे ‘हे प्रभु इनको माफ कर देना क्योंकि यह नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं’।
क्राइस्ट ने जो कहा उसका संकलन तो बाइबिल में है। लेकिन उन्होंने जो जिया उसका संकलन मानवता की स्मृतियों में है। यही कारण है कि शुरु में तो ईसाई धर्म के लोग ईसा मसीह के जन्म के बारे में ही एक मत नहीं थे, कोई 14 दिसंबर कहता तो कोई 10 जून, तो कोई 2 फरवरी को उनका जन्मदिन मनाता था। तीसरी शताब्दी में जाकर 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन मनाना शुरु किया गया।
क्रिसमस भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रकटन है। धर्म, जाति और संप्रदाय से परे सभी लोग मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं। यदि हम भारतीय वांग्मय में देखें तो अद्वैत की परिकल्पना सर्वश्रेष्ठ है। जब ईश्वर की प्रार्थना एकाकार होकर की जाए तो वह अद्वैत ही होता है। इसलिए ईशा का जन्म भले ही यरूशलम की धरती पर हुआ हो लेकिन वह भारत भूमि में भी उतने ही पूज्यनीय और मान्य हैं। भारत में इस त्यौहार का विशद रूप में मनाया जाना इस बात का प्रतीक है कि भारत एक ऐसा देश है जहां सभी धर्मों के बीच सांस्कृतिक एकता है और सांस्कृतिक प्रेम भी है। भारत भूमि पर अनेक धर्मों का जन्म हुआ किंतु जो धर्म भारत में नहीं जन्मे उन धर्मों को भी यहां सम्मान मिलता है। इसलिए क्रिसमस भी भारत की सांस्कृतिक एकता से जुड़ा हुआ है। ईसाई समुदाय इस दिन गिरजाघरों में जाकर प्रभु यीशु के समक्ष सर झुकाता है। गैर ईसाई बंधु इस दिन छुट्टियां मनाते हैं। पिकनिक मनाते हैं और एक दूसरे को मेरी क्रिसमस भी बोलते हैं। अनेक देशवासी सांता क्लॉस जैसी टोपी पहनते हैं यह भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सबसे बड़ा संदेश यही है कि हम त्योहार के समय एक दूसरे की खुशियां बांटें। हमारे मत हमारे सिद्धांत भले ही भिन्न-भिन्न हों लेकिन हम एक दूसरे से त्यौहार के दौरान अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान करें। क्रिसमस का त्यौहार हमारी भावनाओं के आदान-प्रदान का एक अवसर है।
ईश्वर के पुत्र प्रभु यीशु ने आपस में प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया है। इसलिए इस दिन को हम मानवता के एकता के प्रतीक के रूप में भी मना सकते हैं। आइए हम सब मिलकर क्राइस्ट के जन्म की खुशियों में शामिल हों।
Written by XT Correspondent