(लेखक प्रवीण कक्कड़ पूर्व पुलिस अधिकारी हैं और पूर्व मुख्यमंत्री के पूर्व विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी रहे हैं।)
एक्सपोज़ टुडे।
चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गईं हैं। घर-घर में माता की पूजा चल रही है। इसके साथ ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भारतीय नव वर्ष भी शुरू हो गया है। शास्त्रोक्त तरीके से देखें तो भारत में वर्ष के लिए संवत शब्द बहुत पहले से प्रचलित है। हमारा यह नया वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। आजकल हम अपने इस्तेमाल के लिए जिस ग्रेगेरियन या सरल भाषा में कहें तो अंग्रेजी कलैंडर का प्रयोग करते हैं, उसकी तुलना में हमारा संवत्सर 57 साल पुराना है। यह सिर्फ हमारी प्राचीनता का द्योतक ही नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि खगोलीय गणनाओं, पृथ्वी की परिक्रमा, चंद्र और सूर्य की कलाओं और परिक्रमण की सटीक गणना भी हम बाकी संसार से बहुत पहले से न भी सही तो साथ-साथ जरूर कर रहे हैं।
इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि विक्रम संवत सिर्फ एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि इतिहास के माथे पर भारत की विजयश्री का तिलक भी है। भविष्यत पुराण के अनुसार महाराजा विक्रमादित्य परमार राजवंश के राजा गंधर्वसेन के पुत्र थे। उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य ने उज्जैन से शकों को पराजित कर विजयश्री प्राप्त की थी। इसी विजय के लिए विक्रमादित्य को शक शकारि विक्रमादित्य भी कहा जाता है। इस तरह यह कैलेंडर राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का भी प्रतीक है।
आज के बच्चों को लग सकता है कि भले ही विक्रम कलैंडर कभी गौरव का विषय रहा हो, लेकिन अब तो हम इसका उपयोग करते नहीं हैं। उन्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हम अपने दफ्तर और स्कूल के कार्यक्रम तो ग्रेगेरियन कैलेंडर से तय करते हैं, लेकिन हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक तीज त्योहारों का निर्धारण तो आज भी भारतीय पंचांग से होता है। शादी ब्याह की शुभ वेला भी भारतीय कैलेंडर देखकर तय की जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी, वसंत पंचमी ये सारे त्योहार भारतीय पंचांग से ही तो तय होते हैं।
कभी आपने सोचा कि जब ग्रेगेरियन भी पंचांग है और विक्रम संवत से भी पंचांग शुरू होता है तो फिर भारतीय पंचांग की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर से अलग क्यों हो जाती हैं। जैसे इस बार हमारा नव वर्ष 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जबकि पिछले सालों में यह किसी और तारीख से शुरू हुआ था। इस साल की भांति हर साल वर्ष प्रतिपदा दो अप्रैल को ही क्यों नहीं आती।
इसकी कथा भी बड़ी दिलचस्प और खगोल विज्ञान के रहस्य संजोए है। असल में अंग्रेजी कैलेंडर विशुद्ध रूप से सौर पंचांग है। यानी सूर्य की गति से उसका संबंध है। वहीं भारतीय पंचांग सौर और चंद्र दोनों की गतियों पर निर्भर है। हमारे यहां वर्ष की गणना सूर्य की गति से होती है, जबकि महीने और तारीखों की गणना चंद्रमा की कलाओं से होती है। हमारे महीने के दो हिस्से होते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्या के बीच में एक पक्ष पूरा हो जाता है। इस तरह हमारे हर महीने में 30 दिन ही होते हैं। जबकि सूर्य की चाल से मिलान के लिए अंग्रेजी कलैंडर में एक महीने में 28 से 31 दिन तक रखे गए हैं। अंग्रेजी कैलेंडर ने साल में 365 दिन करने के लिए महीनों में दिनों की संख्या समायोजित की है। वहीं भारतीय कैलेंडर में साल को 365 दिन का बनाए रखने के लिए महीने में दिनों की संख्या घटाने बढ़ाने के बजाय साल में सीधा महीना ही बढ़ा लिया जाता है। कभी हिंदी पंचांग को गौर से देखिये तो पचा चलेगा कि कई बार उसमें एक ही महीना दो बार आ जाता है। खगोल में आपकी दिलचस्पी हो तो इसे आप ज्योतिषाचार्यों से समझ सकते हैं।
इतने सारे इतिहास और विज्ञान के बाद एक बाद और कहना जरूरी है कि भले ही विक्रम संवत विजय का प्रतीक हो लेकिन असल में तो यह विशुद्ध रूप से भारत के खेतिहर समाज का नववर्ष है। चैत्र के महीने में गेंहू की फसल कटकर घर आ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो किसान को उसकी साल भर की मेहनत का फल मिल जाता है। इस नवान्न से वह अपने जीवन को नए सिरे से सजाता संवारता है। तो जो अन्न जीवन का नया प्रस्थान बिंदु लेकर आता है, उसी समय नव वर्ष मनाने का सबसे अच्छा मौका होता है। इस नव वर्ष में आप भी अपने लिये नए लक्ष्य और नए आनंदों का वरण करें।
भारतीय नव वर्ष की बहुत शुभकामनाएं।