रुचि दीक्षित,Xpose Today News
ऐसा कहा जाता है कि ठाकुर जी अपने भक्तों से अत्यधिक प्रेम करते हैं, जिसके उदाहरण हमें समय समय पर देखने-सुनने को मिल ही जाते हैं। श्रीधाम वृंदावन तो है ही ठाकुर जी का घर और वे यहां पर आज भी रोज लीला करते हैं। वृंदावन में बांके बिहारी जी, राधादामोदर जी, राधारमण जी, राधा मदनमोहन जी सहित कई अन्य दर्शनीय मंदिर व स्थल हैं। साथ ही यहां पर ठाकुर जी का एक ऐसा भी मंदिर है, जिसमें ठाकुर जी अपने भक्त का मान रखने के लिए पधारे थे। तब से ही मान्यता है कि ठाकुर जी आज भी यहीं विराजमान हैं। वृंदावन के अन्य मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण स्वयं प्रकट हुए हैं लेकिन यहां पर उन्होंने अपनी ऐसी लीला दिखाई कि हर कोई आश्चर्य चकित हो कर रह गया। हम बात कर रहे हैं लाला बाबू मंदिर की, जी हां लाला बाबू ठाकुर जी के अनन्य भक्त थे आैर उन्हीं के नाम पर आज वृंदावन का यह मंदिर विख्यात है। यह मंदिर गोपेश्वर महादेव के पास वाली गली में ही स्थित है।
इस मंदिर की दीवार से लग कर ही लाला बाबू के समाधी स्थल भी है, ठाकुर जी के साथ ही आप यहां के भी दर्शन कर सकते हैं।
मंदिर में प्रवेश करते ही चिड़ियों की चहचआहट, मोर की खूबसूरत आवाज आैर अन्य पक्षियों के कलरव से गूंजता वातावरण मन को भावविभोर कर देता है। चारो ओर हरे भरे पेड़ पौधे हैं, जिनके बीच है भगवान श्री कृष्ण का मंदिर। इस मंदिर का इतिहास बहुत रोचक है, जिसे जानने के बाद भक्त यहां जाने खुद को रोक नहीं पाते हैं।
वृंदावन में भरतपुर के महाराज की ओर से बहुत सुंदर मंदिर की नीव रखी गई थी। महाराज तक लाला बाबू की ख्याती पहुंच चुकी थी वे चाहते थे कि मंदिर के ठाकुर जी के सेवा लाला बाबू करें। वहीं दूसरी ओर लाला बाबू ने भी इस बात को अपना साैभाग्य मानते हुए यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ और भगवान के विग्रह की स्थापना का समय आ गया। माघ का महिना था पुजारी भगवान श्री कृष्णचंद्र की प्राण प्रतिष्ठा विधि विधान से कर रहे थे। एक कोने में खड़े लाला बाबू को चिंता सता रही थी कि कहीं ऐसा तो नहीं भगवान कृष्ण मंदिर में पधारना ही नहीं चाहते हों। वे पुजारियों से लगातार अभिषेक करते रहने का कह रहे थे। थक कर एक पुजारी ने कहा लगता है भगवान यहां नहीं आना चाहते। इतना सुनते ही लाला बाबू का मन विचलित हो गया और वे भगवान से पधारने की प्राथर्ना करने लगे। कुछ देन बाद लाला बाबू को ऐसा अनुभव हुआ जैसे भगवान कृष्ण कह रहे हों, बस करों लाला बाबु कितने समय से मेरा अभिषेक करा रहे हो। तब उन्होंने पुजारियो से अनुष्ठान रोकने के लिए कहा, पुजारियों ने आश्चर्य से देखते हुए कहा भगवान अभी नहीं पधारे हैं हमे विश्वास है। तब लाला बाबू ने कहा मुझे लगता है श्रीकृष्ण पधार चुके हैं। इस बार ते परिक्षण के लिए लाला बाबू ने पुजारियों से विग्रह की नाक में रुई लगाने को कहा, यदि प्राण आ गए होंगे तो सांस के कारण रुई निकल जाएगी। पुजारियों ने ऐसा ही किया और रुई निकल गई सब देखते रह गए। लाला बाबू यहां रुके नहीं और उन्होंने पुजारियाें से कहा कड़ाके की ठंड पड़ रही है भगवान कृष्णचंद्र के माथे पर माखन का गोला रख दो उनके शरीर की गर्मी से माखन पिघल जाएगा। पुजारियों ने लाला बाबू की बात मानते हुए ऐसा ही किया और कुछ ही देर में सारा माखन पिघल कर बहने लगा। यह दृश्य देखकर लाला बाबू ने भगवान के श्री चरणों में लोट लगाना शुरू कर दिया। उपस्थित सभी जन आनंद से भर उठे और भगवान के नाम का जयकारा लगाने लगे। जब यह समाचार महाराज तक पहुंचा उनके भी आनंद का ठिकाना नहीं रहा। तक से लेकर आज तक यह मंदिर लाला बाबू के नाम से ही जाना जाता है।
यूं तो लाला बाबू का नाम कृष्णचंद्र सिन्हा था लेकिन उन्हें लाेग महात्मा लाला बाबूके नाम से पुकारते थे। उनका जन्म सन 1753 को कांदी में हुआ था,यह पश्चिम बंगाल के मुर्सीदाबाद जिले क एक प्रमुख शहर है, कृष्णचंद्र के पितामह गंगा गोविंद सिन्हा ब्रिटिश साम्राज्य में दीवान थे। उनका परिवार कांदी राज परिवार के नाम से जाना जाता था। अपार धन संपदा और ठाठ बाट के बावजूद कृष्णचंद्र सांसारिक मोह माया से कोसो दूर थे। 189 वर्ष पहले की बात है, शाम के समय एक धोबी की बेटी बंगाली भाषा में अपने पिता से जोर जोर से कह रही थी, समय गुजर गया है चुल्हे चौके की तैयारी कैसे करें? वह बंगाली भाषा शाम की रसोई को वासनाय कहा जाता है। यह शब्द उनके कान में पड़ तो उन्हें संसार से वैराग्य की ओर ले गया। उन्होंने इसे सांसारिक वासना के रूप में सुना आैर उनके मन में उथल पुथल शुरू हो गई। इसके बाद उनकी दुनिया ही बदल गई और वे वृंदावन आकर मधुकरी करने लगे। एक धनी परिवार में जन्मे लाला बाबु ने भक्ति की अनूठी मिसाल पेश की। कई वर्षों तक उन्होंने वृंदावन में ही रहकर ठाकुर जी की सेवा की और 1821 में उनका देवलोक गमन हुआ।
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