June 15, 2025

ये बात क़तई ग़लत है।पूरे नब्बे डिग्री वाले कोण में बना तो दिया।

लेखक मुकेश नेमा मध्यप्रदेश आबकारी विभाग में फ्लाइंग स्क्वाड प्रभारी हैं।
Xpose Today News
ये बात क़तई गलत। भाई लोग भोपाल के ऐशबाग मे बने नब्बे डिग्री कोण वाले ताजे ताजे पुल का रोना रो रहे है।किसी को हावडा ब्रिज याद आ रहा है तो कोई इसकी तुलना चिनाब नदी के ब्रिज से कर रहा है। क्यों भाई ? आपको तो इस बात के लिए ऊपर वाले का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि आपके पास कम से कम पुल तो है।आमतौर पर पुल बनते हैं नदियां पार करने के लिए। हिंदुस्तान में सैकड़ों हज़ारों नदियां अब भी ऐसी जिन्हें पार करने के लिए तैरना सीखना जरूरी। आपको बिना नदी के पुल उपलब्ध है और आप हाय तौबा मचा रहे हैं।
अब आइए नब्बे डिग्री वाले कोण की बात पर। इसे बनाने वाले इंजीनियर को इस बात का मलाल कि लोगों ने गणित में दिलचस्पी लेना बंद कर दी है। लोग पॉलिटिक्स और क्राइम के अलावा और कुछ पढ़ना सुनना ही नही चाहते। एक हम लोग थे जिन्हें त्रिकोण समकोण सहस्रबाहु रेखा बिंदु सभी की जानकारी थी। गणित जीवनोपयोगी। गणित नही पढ़ेंगे लोग तो कोई भी लूट लेगा आपको। ऐसे में किसी परोपकारी इंजीनियर ने यदि आपकी गणित की ये क्लॉस लगाई है तो इसमें बुरा क्या है ?
मुमकिन है ये पुल आपको सड़क पर चलने की तमीज़ सिखाने के लिए बनाया गया हो। लोग आँख बंद कर ड्राइव करते हैं। नशे मे होते है बहुत बार। मोबाइल मे घुसे रहते हैं। ओवर स्पीडिग करते हैं। ये खुद भी मरते है दूसरों को भी मारते हैं। कैसे ठीक किया जाए ऐसे लापरवाह लोगों को ? ऐसे मे ऐसे नब्बे डिग्री वाला पुल जरूरी। जो यहां ठुकेगा वो यदि बचेगा तो आस्तिक हो जाएगा ,बची ज़िंदगी कायदे से तमीज़ से ड्राइव करेगा और यदि निपट गया तो दूसरे लोग उसे याद कर अच्छे ड्राइवर बनेंगे।
पुल शरीफ लोगों जैसे होते हैं ,इसीलिए उनकी इज्जत नही की जाती। हम उसके भर हाथ जोड़ते हैं जो हमारा कुछ बिगाड़ सकता हो। शनि की इज्जत गुरू से ज्यादा। अब ये पुल तोड़ेगा आपको और अपनी और दूसरे पुलों की इज्जत करवाएगा लोगों से। और फिर पब्लिक इसे देवता मान कर पूजने भी लगें तो कोई बडी बात नही होगी।
ये पुल जैसा भी है हमारा है। टेढ़ा है पर मेरा है। नालायक औलाद का रोना रोएँगे तो जगहँसाई के सिवाय और क्या हाथ लगेगा ? आपको निभाना और सब्र करना सीखना चाहिए।सब्र का फल मीठा होता है। पीसा की झुकी हुई मीनार समझिए इसे। क्या पता कल दुनिया भर से लोग इस पुल को देखने आने लगें और शहर की  आमदनी और रौनक बढ़ जाए।
और फिर ये पुल नहीं ज़िंदगी है। ज़िंदगी ऐसे ही तो अप्रत्याशित होती है। अचानक कब कहाँ मुड़ जाए। कब कहाँ पहुँचा दे। कब टपका दे। ये पुल दर्शन है दरअसल। आदमी पानी का बुलबुला भर। सो भगवान भरोसे रहिए। उसका हाथ सर पर है तो हम निश्चिंत हैं। वो रूठ गया तो उसकी मर्जी। ऐसे मे आप निकल गए तो पुल को कोसने या उसे बनाने वाले का मजाक बनाने की जरूरत नही। ज़िंदगी भवसागर है और पुल पार करवाने के लिए ही होते है और ये मुझे पूरा भरोसा है कि ये काम ये पुल बखूबी करेगा।
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Written by XT Correspondent