कवर्धा। वे अपनी नई फसल को गुड और दूध चढ़ाकर मनुहार करते हैं कि अच्छी फसल आए तो उनके घरों में सुख-समृद्धि आ सके। बैगा आदिवासी इन दिनों गाँव-गाँव में देवली का परम्परागत रिवाज़ मन रहे हैं। बड़ी बात यह है कि जमाने में बड़े बदलाव भले ही आ गए हों लेकिन आदिवासियों की संस्कृति के तौर-तरीकों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। वे आज भी अपने रीति-रिवाज़ बड़ी श्रद्धा और विश्वास से उत्साहपूर्वक मनाते हैं।
कवर्धा जिले के पंडरिया आदिवासीबहुल इलाके में गाँव-गाँव कोदो-कुटकी और धान की रोपाई के लिए खेत का काम करने से पहले नई फसल की अगवानी की जाती है। मनुहार कर गाँव के किसान अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं। गाँव कांदावानी, बासातोला, रुखमीदादर, बिरुलडीह, दमगढ़, कुशियारी, तेलियापानी, लेदरा सहित कई गाँवों में यह रिवाज़ इस साल भी निभाया गया।
गाँव के मुकाद्दम यानी पटेल गाँव के किसानों की फसल में से दो-चार पौधे बुलाकर गाँव के चौक में उन्हें साफ़ जगह पर रखते हैं फिर पूरे गाँव के लोग जमा होते हैं और नई फसल के प्रतीक तौर पर इन पौधों को गुड, दूध और पूजा सामग्री चढाते हैं। आजकल नारियल भी रखने लगे हैं। पहले नारियल का रिवाज़ नहीं था। कुछ घंटों की पूजा की बाद हर किसान परिवार का एक सदस्य खेत पर जाकर काम करता है। इस तरह रोपाई का काम विधवत शुरू हो जाता है।
आदिवासी प्रकृति पूजक हैं और वे खेती का हर काम भी उसकी पूजा करने के बाद ही करते हैं। सुदूर वनांचल में बसे छोटे-छोटे गांवों में इन्हें इस तरह नयी फसल की मनुहार करते देखना बहुत अच्छा लगता है। ग्रामीण देवलाल और हवलदार बैगा ने बताया कि सावन के शुरूआती महीने में फसल बोते हैं और अब रोपे पौधे तैयार होने पर उन्हें फिर से लगाने के काम की शुरुआत इसी रिवाज़ से की जाती है।