November 29, 2024

शहीदों का गाँव : हर तीसरे घर में फौजी, रिटायर्ड फौजियों की हर दिन चौपाल

सतना। सोमवंशी राजपूतों के इस गाँव में हर तीसरे घर का कोई न कोई जवान सरहद में मोर्चा लेते हुए शहीद हुआ है। औसतन हर घर में एक फौजी है। एक दो घर ऐसे भी हैं, जहां दो-तीन पीढ़ी एक के बाद एक शहीद हुई। गाँव में द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर अब तक हुए सभी युद्धों में इस माटी में पैदा हुए जवानों ने देश के लिए मोर्चा सँभाला है। फौज को लेकर बच्चों में ऐसा जज्बा कि तरुण होते ही दौड़कूद करके खुद को इस काबिल बनाने लगते हैं कि फौज में भर्ती हो सकें।

मध्यप्रदेश के सतना जिले में एक गाँव है चूँद। इलाके में इसे शहीदों के गाँव के तौर पर जाना जाता है। यहां रोज रिटायर्ड फौजियों की चौपाल लगती है,उनमें से कई ऐसे भी हैं जिनके जिस्म में युद्ध के दौरान गोलियों के निशान हैं, कुछ तो हाँथपाँव से विकलांग हैं। चौपाल में चर्चा के विषय में फौजी जीवन के किस्से ही रहते हैं।

स्कूल की बच्चियों ने चूँद के शहीदों के शौर्य पर गीत बनाए हैं। जब भी कोई हाकिम, अफसर, नेता किसी कार्यक्रम के सिलसिले में गाँव जाता है तो बच्चियां स्वागत गीत की बजाय शहीदों का गीत ही सुनाती हैं। फिल्मकार सभाजीत शर्मा ने ‘सलाम चूँद।।’ नाम से घंटे भर की एक डाक्यूमेंट्री बनाई है। कस्बे में उपलब्ध संसाधनों के जरिए इस फिल्म की गुणवत्ता भले ही कम हो लेकिन फिल्म देखकर जय जवान जय किसान।। का नारा स्वमेव निकल आता है।

चूँद गाँव में ज़्यादातर लोग किसान हैं और उनके बच्चे फौज में जवान। सेना, जवान, उनकी वर्दी,  उनके युद्ध और सैन्य जीवन के किस्से यहाँ के बच्चों को बचपन से रोमांचित करते रहे हैं।

इसी तरह रीवा जिले के गाँव बड़ीहर्दी में भी प्रायः हर घर से कोई न कोई फौज में रहा है। यहां भी द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर करगिल और आतंकवाद से मोर्चा लेने वाले फौजी हैं। इस गाँव को फौजियों की शहादत के लिए ही नहीं अपितु खेल की दुनिया में नाम कमाने के लिए पहचाना जाता है। यहाँ के बाशिंदे कैप्टन बजरंगी प्रसाद तैराकी के प्रथम अर्जुन पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें भारतीय तैराकी का पितामह कहा जाता है।

यहीं के रंगनाथ शुक्ल विश्व की दुर्गमतम जंस्कार वैली में व्हाइट वाटर एक्सपिडीशन टीम के सदस्य रहे जिन्होंने राफ्टिंग के जरिए इस जानलेवा बर्फीले अभियान को पूरा किया। सन् 1990 में इसे वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक में दर्ज किया गया। सन् 1965 और सन् 1971 के युद्ध के किस्से आज भी गाँव में सुने-सुनाए जाते हैं। यहाँ के लोग सेना, जवान, उनकी जिंदगी के काफी करीब हैं।

फौजी जीवन खासकर युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्में भी यहाँ चाव से देखी जाती है। जो किसी कारण से फ़ौज में नहीं जा पाए, उन्हें इसका ताज़िंदगी बड़ा अफसोस होता है।

ग्रामीण बताते हैं कि इजराइल जैसा छोटा सा देश। वहाँ हर नागरिक को सैन्यशिक्षा अनिवार्य है। यह शिक्षा सिर्फ़ युद्ध के लिए ही नहीं अन्य क्षेत्रों की श्रेष्ठता कायम रखने के काम आती है।हम भी ऐसा कर सकते हैं।रक्षामंत्री ने एनसीसी पर जोर देने की बात की है। हर नागरिक को अनिवार्य सैन्यशिक्षा न सही हर स्कूल में एनसीसी अनिवार्य कर दी जाए।

Written by XT Correspondent