September 23, 2024

मैंने भारत सरकार से आई रिपोर्ट खोलकर पढ़ी तो उसमें वही सब सलाह और सुझाव थे , जो मैं उस बंदे को बताया करता था।

लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
रविवारीय गपशप 
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                  बिना माँगे सलाह देना भारतीयों की आदत है , आप कहीं यात्रा में ट्रेन या बस से जा रहे हों तो पड़ोस में बैठा सहयात्री आपकी पारिवारिक परेशानी से लेकर स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों तक का इलाज बिना फ़ीस लिए बता देगा , पर व्यावसायिक मामलों में सलाह देने का काम जिसे कन्सल्टेंसी कहा जाता है , बड़ा महँगा और विशेषज्ञता से भरा हो चुका है । सरकारी महकमे में अलबत्ता ऐसी विशेषज्ञता पूर्ण सलाह लेने का सिलसिला कुछ देर से आरम्भ हुआ । जब हम नौकरी में आए तो सरकारी महकमे के लोग ऐसे सलाहकारों को अपने से कमतर समझते थे । डोंगरगढ़ में माँ बमलेश्वरी का मंदिर यूँ तो निजी ट्रस्ट के अधीन था , पर उसके विस्तार और विकास का कामकाज सरकारी विभाग ही देखा करते थे । एक मौक़े पर जब हम मंदिर के ऊपरी भाग और मंदिर कक्ष के विस्तार की योजना बना रहे थे तो मंदिर के ट्रस्टी व प्रबंधक भण्डारी जी रायपुर से एक निजी आर्किटेक्ट को लेकर मीटिंग में पधारे । पी. डब्ल्यू . डी . विभाग के इंजीनियरों ने आर्किटेक्ट महोदय को भाव ही नहीं दिया उल्टा भण्डारी जी से कहने लगे , अब ये प्रायवेट लोग हमें काम करना सिखायेंगे ।
               मध्यप्रदेश के भू अभिलेख विभाग में जब मैं ज्वाइंट कमिश्नर हुआ , तब प्रदेश में भू अभिलेखों यानी खसरा- नक़्शों के डिजिटाइजेशन का दौर ज़ोरशोर से चल रहा था । हमारा प्रदेश श्री एच. मिश्र. की दूरदर्शिता के चलते पहले से ही कम्यूटरीकरण में देश में अग्रणी माना जाता था । इसी विषय पर बुलाई गई एक बैठक में मैं अपने भू अभिलेख के आयुक्त श्री पुखराज मारू के साथ आगरा गया , जहाँ भारत सरकार के सचिव समेत स्वयं स्वर्गीय प्रमोद महाजन , जो आई. टी. विभाग के मंत्री थे , बैठक लेने वाले थे । बैठक में ये प्रस्ताव आया कि खसरे नक़्शे के अलावा बाक़ी ज़रूरतों को भी शामिल कर डिजिटाइजेशन के लिये प्रदेश के किसी ज़िले को चुना जायगा , और इस काम के लिए एक करोड़ रुपये की ग्रांट दी जाएगी । हम बड़े खुश हुए , और हमने अपने प्रदेश के गुना ज़िले को इस हेतु प्रस्तावित भी कर दिया , पर जब प्रस्ताव पर विस्तार से चर्चा हुई तो पता लगा इस एक करोड़ में चालीस प्रतिशत राशि कंसलटेंट फर्म को जाएगी जिसका चुनाव केंद्र स्तर से किया जायेगा । बहरहाल तब भी प्रस्ताव बुरा नहीं था , क्योंकि ज़िले की हर तहसील में इस राशि से हम नए कंप्यूटर दे सकते थे और सॉफ़्टवेयर तो एन.आई.सी. के सहयोग से हमें पहले से ही प्राप्त था जो अब डॉस से विण्डो में कन्वर्ट भी हो चुका था  । काम शुरू हुआ , हार्डवेयर-सॉफ़्टवेयर का इंतिज़ाम तो था ही कन्सल्टेंसी के लिए कलकत्ता से प्राइस हाउस वाटर कूपर का सजा संवरा बंदा मोतीमहल के कार्यालय में सी. एल. आर . के समक्ष उपस्थित हो गया । मारू साहब ने उसे मेरे हवाले कर कहा कि कम्युटराइजेशन का सारा काम यही देखते हैं , आप को जो चाहिए ये उपलब्ध करायेंगे । मैंने उसे प्रारंभिक व्यवस्थाएँ उपलब्ध करा दीं , कलेक्टर गुना और भू अभिलेख के हमारे अमले को उसके बाबत जानकारी और सहयोग के निर्देश बता दिये और कहा कि जब भी कोई और आवश्यकता हो बेझिझक मेरे पास आ जाये । लगभग हर दूसरे या तीसरे दिन वो शख़्स मेरे कमरे में आता , मैं उसे चाय पिलाता और उसके सवालों के जवाब देता । वो पूछता क्या परेशानियाँ होती हैं आम जनता को कामकाज़ में , मैं अपने दीर्घ अनुभव से उसे सुनाता , फिर वो पूछता कि कम्यूटरीकरण से उसे कैसे हल कर सकते हैं , मैं अपने ज्ञान के अनुसार उसे अपने सुझाव बताता , और इस तरह चाय की चुस्कियाँ लगाते गहरे मित्रों की तरह हम बातें करते रहते । बीच बीच में वो गुना का चक्कर लगाता और लौटकर अपनी सारी परेशानियाँ मुझसे साझा कर उनके हल प्राप्त करता । एक-दो माह ऐसा ही चलता रहा , फिर वो कलकत्ता चला गया । दो माह बाद भू अभिलेख आयुक्त पुखराज मारू जी ने मुझे अपने कमरे में बुलाया और क़रीने से जिल्द में मढ़ी एक मोटी किताब देते हुए कहा कि प्राइस वाटर हाउस कूपर की रिपोर्ट आ गई है जो उन्होंने भारत सरकार को सबमिट की है । मैंने रिपोर्ट पकड़ी और अपने कक्ष में आकर जब उसे खोलकर पढ़ा तो उसमें वही सब सलाह और सुझाव थे , जो मैं उस बंदे को बताया करता था ।
Written by XT Correspondent