लेखिका डॉ. अनन्या मिश्र, आईआईएम इंदौर में मैनेजर – कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन एवं मीडिया रिलेशन के पद पर हैं।
एक्सपोज़ टुडे।
वर्तमान समय में हम सभी ‘सर्वश्रेष्ठ’ बनना चाहते हैं। शायद दूसरों से प्रशंसा पाने के लिए। या शायद रोज़ कुछ नया कर दिखाने के लिए। या शायद स्वयं का ही एक नया संस्करण बनने के लिए। ये अवधारणा पिछले कुछ समय में अत्यधिक लोकप्रिय हो गई है। लेकिन इसका वास्तविक अर्थ क्या है? या तो आप ‘स्वयं’ सबसे अच्छे बनना चाहते हैं,या आप ‘सबसे अच्छा जीवन’ जीना चाहते हैं। मेरे अनुसार, आपका सर्वश्रेष्ठ होना आपकी सहज क्षमता का पूर्ण इस्तेमाल है, वहीं सर्वश्रेष्ठ जीवन जीने का अर्थ है छह प्रमुख क्षेत्रों में खुशी और सफलता की संभावनाओं को अधिकतम करना: करियर, रचनात्मकता, आराम, रिश्ते, आध्यात्मिकता और कल्याण। यहाँ आत्म-सुधार का सम्बन्ध प्रयास करने की भावना के साथ सम्बद्ध है।
दुनिया बहुत विशाल है और कौशल की कोई कमी नहीं है। आप विभिन्न कार्यों निपुण हो सकते हैं, शायद आपकी सार्वजनिक छवि भी यही हो कि आप सभी कलाओं में पारंगत हैं, उत्कृष्ट हैं – किन्तु ये खूबियाँ ही आपको बेहतर नहीं बना रही हैं। ये सिर्फ कौशल हैं जो आपके पास हैं – और शायद औरों के पास भी। बेशक, इसमें आपका अभ्यास महत्वपूर्ण रहा होगा – किन्तु क्या आपको इन्हीं से अपनी ‘उत्कृष्टता’ प्रदर्शित होती दिख रही है? शायद आपको भी इस सत्य का आभास हो गया होगा। आपकी सर्वश्रेष्ठ बनने की चाहत आपके जीवन के सबसे बुनियादी हिस्सों को नहीं बदल सकेगी। शायद सर्वश्रेष्ठ बनना और सत्य, वास्तव में अवचेतन अहंकार के अभिन्न अंग हैं।
हम अपने जीवन की उलझन के बीच स्पष्टता के लिए तरसते हैं। मुझे लगता है कि हम चाहते हैं कि हम स्वयं का कोई ऐसा संस्करण बनें जिसे अपने आस-पास की दुनिया से सबसे अधिक स्वीकृति मिले। इन सभी में निहित है सुरक्षित, खुश और स्वस्थ रहने की आशा। लेकिन यह आकांक्षाहमें स्वतंत्रता नहीं देगी। यह आत्म-सुधार के बारे में कम, और ज़िन्दगी की कमियों बारे में अधिक है। हमें अमीर बनना है। मजबूत और शक्तिशाली और होशियार भी। हमें सौ लोगों के समक्ष स्वयं को अधिक बुद्धिमान प्रस्तुत करना है और इसलिए हम ऐसे लोगों से मिलते भी नहीं जिनकी उपस्थिति से हमारी मौजूदगी क्षीण हो – क्योंकि वे हमसे बेहतर हैं। हमें सोशल मीडिया की दुनिया में जीना है और वास्तविक जीवन में कार्य भी उसी के अनुसार करना है – क्योंकि कुछ भी किया तो सोशल–मीडिया–वासियों को बताना पड़ेगा ना! आखिर वे ही तो हमारी सराहना और प्रशंसा करेंगे – क्योंकि हमारे आसपास मौजूद लोगों का हमारे लिए उतना महत्त्व नहीं है। हम उन्हें निरंतर सलाह देते हैं, किन्तु शायद उसका पालन हम स्वयं नहीं करते।
परोपदेशवेलायां शिष्टाः सर्वे भवन्ति वै।
विसमरन्तीह शिष्टत्वं स्वकार्ये समुस्थिते॥
अर्थात, दूसरों के कष्ट में पड़ने पर हम उन्हें जो उपदेश देते हैं, स्वयं कष्ट में पड़ने पर उन्हीं उपदेशों को भूल जाते हैं। यहाँ किस प्रकार हम सर्वश्रेष्ठ हुए?
जीवन निष्पक्ष नहीं है और परिवर्तन अपरिहार्य है। निष्काम कर्म को वास्तव में आत्मसात करने वाले जानते हैं कि हम मात्र एक आत्मा हैं।उनके लिए बाह्य वातावरण महत्व नहीं रखता। आप चाहे पहाड़ों में रहें या महीनों समुद्र की यात्रा करें, राजनीती को अपना पेशा चुनें या डॉक्टर-इंजिनियर बन जाएं – स्वयं के लिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।हालाँकि, आपके अहंकार के लिए, यह बिल्कुल मायने रखता है। अहंकार के रास्ते में आए बिना, उचित पोषण, आराम और गतिविधि की आवश्यकताएं आत्म-सुधार की विचारधारा बदल देती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप महसूस करते हैं कि आप उचित पोषण नहीं ले रहे, तो आप उस दिशा में काम करते हैं। आपके शरीर की वास्तविकता को लाभ पहुंचाने के लिए आपके ज्ञान में सुधार होता है। इस स्थिति में आप “स्वयं का सर्वश्रेष्ठ संस्करण” नहीं हैं, लेकिन आप स्वस्थ महसूस करते हैं। इस दौरान अगर आप अपने आसपास मौजूद व्यक्तियों में सबसे ‘फिट’ हैं भी,तो भी यह ‘आपका’ सर्वश्रेष्ठ नहीं है – और आप जानते हैं। आपका अहंकार मात्र औरों से तुलना कर रहा है। साथ ही, जितना अधिक आप समझ पाते हैं कि आप ‘स्वयं’ कौन हैं, उतना ही कम आप इस बात की परवाह करते हैं कि आप किस प्रकार के “संस्करण” हैं।
सर्वश्रेष्ठ वास्तविक दुनिया में कहीं भी मौजूद नहीं है। यह केवल अहंकार की दुनिया में मौजूद है। आत्मा हर जगह मौजूद है, और बड़ी बात यह है कि आप स्वयं होने में कभी असफल नहीं होते हैं। आप पहले से ही स्वाभाविक रूप से सफल हैं। आपको बस इसका एहसास करना है।इसके लिए प्रामाणिकता, यानि आपका वास्तविक से परिचित होना; अपनी सच्चाई व्यक्त करना; यह जानना कि आप चीजों के बारे में कैसा महसूस करते हैं और आपको वास्तव में क्या चाहिए आवश्यक है। साथ ही, करुणभाव, नए विचारों के प्रति ग्रहणशील होना; उदारता और आत्म-भोग, सुखवाद और तत्काल संतुष्टि की इच्छा को छोड़ना भी सहायक हैं।वहीं, जीवन में बेहतर महसूस करने के लिए अन्य के साथ सहयोग,सामाजिक और भावनात्मक समर्थन, रचनात्मकता, सीखने का प्रयास करना, आशावाद और धैर्य मददगार होते हैं।